शाह के रडार पर विधायक
17-Apr-2017 07:09 AM 1234780
वैसे तो मध्यप्रदेश में विपक्ष नाम की कोई पार्टी इतनी मजबूत नहीं है कि वह भाजपा का मुकाबला कर सके। फिर भी भाजपा आलाकमान किसी खुशफहमी में नहीं रहना चाहता। वह जानता है कि मप्र में भाजपा को लगातार चौथी बार सत्ता में लाने के लिए शिवराज सिंह चौहान काफी हैं, लेकिन वह इतने से संतुष्ट नहीं है। भाजपा आलाकमान मप्र में भी उत्तरप्रदेश वाले रिजल्ट की आशा करता है। इसलिए पार्टी अभी से प्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। इसके लिए बनाई गई कार्ययोजना में सबसे पहले करीब पांच दर्जन विधायकों को कार्यशैली सुधारने के लिए राडार पर लिया गया है। यह वे विधायक हैं जिनकी सर्वे रिपोर्ट खराब आयी है। पार्टी के अलावा सरकार और संघ द्वारा अपने स्तर पर कराए गए सर्वे में इनकी अपने क्षेत्र में मतदाताओं पर पकड़ कमजोर बताई गई है। इसके अलावा पार्टी की नजर उन सीटों पर भी है, जहां बीते आम चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। इसके लिए भाजपा आलाकमान की पूरी नजर प्रदेश पर है। पार्टी इस चुनाव को मिशन 2018 के रूप में देख रही है। जिस तरह से यूपी में विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ हुआ ठीक वैसे ही एमपी में भी पार्टी कुछ ऐसा ही करना चाहती है। इसके लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सरकार, पार्टी और विधायकों पर नजर रखे हुए है। आगामी दिनों में शाह प्रदेश का दौराकर संगठन के पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का रिपोर्ट कार्ड चेक करेंगे। गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा संगठन और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने-अपने स्तर पर जनता के बीच सरकार और संगठन की नब्ज टटोलने के लिए सर्वे करती रहती है और उसी के आधार पर संंबंधित विधायकों को पार्टी द्वारा समय-समय पर सचेत भी किया जाता रहा है। संघ की बैठकों और पार्टी के प्रशिक्षण वर्गों में इस तरह के सर्वे की बात भी सामने आती रही है, जिसमें यहां तक कहा गया है कि विधायक यदि अपने क्षेत्रों में ध्यान नहीं देंगे तो पार्टी द्वारा उनके क्षेत्रों में उनका विकल्प तलाशा जाएगा। इसके लिए पार्टी द्वारा रोडमैप भी तय किया जा रहा है। पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो संगठन और संघ के सर्वे में पार्टी के पांच दर्जन से अधिक विधायकों की स्थिति कमजोर बताई गई है। इनमें से कई सीटें ऐसी भी हैं जहां भाजपा वर्ष 2008 के चुनाव में भी 1000 वोट के कम अंतर से जीत सकी थी। इस बार भी पार्टी को अपनी सेमरिया, देवतालाब, रामपुर, बाघेलान, त्योंथर, गुनौर, कटंगी, धौहनी सहित 21 ऐसी सीटों की चिंता है जहां पर सर्वे में पार्टी की स्थिति खराब बताई जा रही है। इनके अलावा सतना जिले के रैगांव, अमरपाटन, मुरैना जिले दिमनी, अम्बाह और बालाघाट जिले के कटंगी सहित 20 सीटों पर पार्टी की अपेक्षाकृत स्थिति को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। यहां पर गैर भाजपा विधायक हैं जहां पिछले चुनाव में हारने के बाद भाजपा अपनी स्थिति मजबूत नहीं बना सकी है। बताया जाता है कि पार्टी अपने सभी विधायकों और हारे हुए क्षेत्रों के संगठन से जुड़े नेताओं को बुलाकर उन्हें मजबूत होने के लिए प्रशिक्षित करेगी। जानकारी के अनुसार आने वाले दिनों में इन विधायकों और नेताओं के अलावा केंद्रीय संगठन के नेताओं और संघ के पदाधिकारियों द्वारा विभिन्न आयामों की शिक्षा दी जाएगी। जिसके जरिए वे अपने क्षेत्रों में सक्रिय होकर अपनी और पार्टी की स्थिति को बेहतर बना सकें। इसके लिए शाह ने पॉलिटिक्स ऑफ परफार्मेंस का फार्मूला तैयार किया है। इसके तहत जिस विधायक का परफारमेंस बेहतर होगा उसे ही टिकट दिया जाएगा। यह बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कई बार विधायकों को कह चुके हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार जहां पर पार्टी को पिछले चुनाव में करारी हार मिली थी, जहां पार्टी तीसरे स्थान पर थीं वहां संगठन दूसरे दलों के ऐसे नेताओं पर भी नजर बनाए हुए हैं। सूत्रों की मानें तो पार्टी अगले चुनाव के पहले तक कांगे्रस व बसपा के कई ऐसे विधायकों को अपने दल में शामिल करा सकती है जो व्यक्तिगत छवि के चलते भाजपा की टिकट पर चुनाव जीतने में सक्षम होंगे। इस बार भाजपा मप्र में भी उत्तरप्रदेश की शैली से चुनाव लड़ेगी। इसके लिए शीघ्र ही प्रदेश भाजपा की एक टीम को उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान अमल मेें लाई गई पार्टी की रणनीति का अध्ययन करने भेजा जाएगा।  पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने जहां भाजपा के आधार को मजबूत किया है तो वहीं इसे अंदर से डरा भी दिया है। क्योंकि इन राज्यों के परिणाम वहां की तत्कालीन सरकारों के खिलाफ आए हैं जिसे एंटी इनकंबैंसी के रूप में देखा जा रहा है और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। राजनैतिक विशलेषकों का मानना है कि भाजपा के लगातार तीन बार से सत्ता में होने की वजह से सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबैंसी है। कर्मचारी और सामाजिक संगठन सरकार से अपनी मांगें पूरी नहीं होने की वजह से जहां नाराज हैं। यही नहीं भ्रष्टाचार की वजह से सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं आम आदमी तक नहीं पहुंचने से लोग अपने आप को उपेक्षित मान रहे हैं। प्रदेश संगठन को इस बात का आभास है। हालांकि उसे अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भरोसा भी है, इसके बाद भी वह जोखिम नहीं लेना चाहता। इधर, पार्टी हाईकमान ने यह सुनिश्चित कर लिया है कि मध्य प्रदेश में चौथी बार सत्ता वापसी के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को फ्री हैंड रहेगा। इस सिलसिले में भाजपा हाईकमान और संघ की तरफ से संकेत दे दिए गए हैं। कहा जा रहा है कि इस फ्री हैंड के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पार्टी में समन्वय करने के बाद पुअर परफारमेंस करने वाले विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को सामने ला सकते हैं। यह सब प्रदेश में लगातार चौथी बार भाजपा की सरकार बनाने के लिए होगा। पार्टी के कठोर कदम का कोई नेता विरोध न कर सके इसलिए अभी से सभी को अपनी परफारमेंस सुधारने की हिदायत दे दी गई है। बाद में किसी के शिकवे-शिकायत को संगठन तवज्जों नहीं देगा। यूपी पैटर्न पर होगा मप्र चुनाव भाजपा अब मध्य प्रदेश में भी यूपी के पैटर्न पर विधानसभा चुनाव लडऩे की तैयारी में है। पार्टी के अंदर इसे लेकर तेजी से काम शुरु हो गया है। जिसका आधार पॉलिटिक्स ऑफ परफार्मेंस के एजेंडे को आगे बढाना और बरीयता देना है। फिलहाल इसके तहत पार्टी ने जो फार्मूला तैयार किया है, उसके तहत प्रत्येक सांसद को विधानसभा चुनाव के दौरान 70फीसदी से ज्यादा रिजल्ट देना होगा। मध्य प्रदेश के नजरिए से देखे,तो इस फार्मूले के तहत प्रदेश के प्रत्येक सांसद को अपने लोकसभा क्षेत्र की कम से कम छह सीटों पर जीत दर्ज करानी होगी। पार्टी के वरिष्ठ रणनीतिकारों की मानें, तो लोकसभा चुनाव के दौरान सांसदों का यही परफार्मेंस उनके टिकट का भी मजबूत आधार बनेगा। साथ ही इससे सांसद की क्षेत्र में सक्रियता और लोगों से जुड़ाव का भी पता चलेगा। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने इस फार्मूले पर काम किया था। जिसका परिणाम यह रहा कि सांसद पूरे समय क्षेत्र में जनता के बीच में रहे। उनकी समस्याओं को सुना और उन्हें खत्म कराने की कोशिश भी की। जिसके चलते चुनाव में पार्टी को लेकर कोई नकारात्मक माहौल नहीं बन पाया था। पार्टी अब इसी फार्मूले के तहत मध्य प्रदेश सहित आने वाले सभी चुनावी राज्यों में काम करना चाहती है। पार्टी से इतर बयान देने वालों पर कसी जाएगी लगाम सत्तारुढ़ दल भाजपा का संगठन और सरकार अपने ही नेताओं द्वारा की जाने वाली बयानवाजी के कारण लंबे समय से परेशान है। पार्टी के बयानवीरों की वजह से कई बार संगठन और सरकार के सामने परेशानी खड़ी हो चुकी है, लिहाजा अब संगठन ने इस तरह के लोगों की लगाम कसने का मन बना लिया है। इसके लिए जल्द ही पार्टी गइडलाइन जारी करेगी। संगठन सुत्रों की माने तो आगामी बैठकों में पार्टी में पनप रहे अंदरूनी असंतोष पर चर्चा के साथ ही नेताओं द्वारा सरकार और संगठन के खिलाफ बयानबाजी का मुददा भी उठेगा। इस विषय पर कार्यवाही के लिए रायशुमारी कर निर्णय लिया जाएगा। गौरतलब है कि पिछले दिनों जिस तरह से भाजपा नेताओं द्वारा संगठन और सरकार के खिलाफ अलग अलग मुददों पर अपने तरह से विरोध दर्ज कराया जा रहा है और सोशल मीडिया के जरिए संगठन और सरकार के निर्णयों को कटघरे में खड़ा किया है उसने पार्टी को इस मामले में सत एक्शन लेने को मजबूर किया है। शराबबंदी जैसे मुददों पर नेताओं के अलग-अलग बयान ने भी पार्टी को दुविधा में डाल दिया है। बताया गया है कि पिछले दिनों प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह ने अपने पदाधिकारियों से सावधानी बरतने की हिदायत दी थी किंतु उसका कोई खास असर नहीं दिखा।  साथ ही पार्टी नमामि देवी नर्मदे यात्रा को भुनाने की भी कोशिश करेगी। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में नर्मदा किनारे विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर जनता से सीधा संवाद कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी और सरकार ने नई सिरे से जान फंूक दी है। मुख्यमंत्री ने नर्मदा सेवा यात्रा के तहत करीब 100 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में घूम-घूमकर जनता से सीधा संवाद बना लिया है। भाजपा के लिए यह संजीवनी साबित हो रहा है। आगामी चुनाव में भाजपा इस यात्रा को हथियार बनाएगी। -भोपाल से अजयधीर
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