16-May-2013 06:49 AM
1234780
इस बार अक्षय तृतीया पर जब मध्यप्रदेश में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी सरकार के मंत्री सारे प्रदेश में बड़ी संख्या में सामुहिक विवाह करवा रहे थे तो उनके जेहन में एक ही सवाल था कि अगले वर्ष

भी वे इसी हैसियत से विवाह संपन्न करवा पाएंगे? दुल्हनों को दहेज, बारातियों को भोजन से लेकर अन्य करोड़ों रुपए के संसाधन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने सारे प्रदेश में सामूहिक विवाह समारोहों में झोंक दिए। इस उम्मीद से कि नव विवाहित युगलों की दुआएं एक बार फिर सत्ता के करीब पहुंचा देगी। मध्यप्रदेश में इस बार भारतीय जनता पार्टी पहले की अपेक्षा ज्यादा दुविधा में और परेशानी में दिखाई दे रही है। वर्ष 2012 के मई माह में भाजपा का जो आत्मविश्वास था वह अब उतना नहीं है। शिवराज सिंह चौहान को चुनाव की कमान सौंपी गई है, लेकिन वे सोच समझकर रणनीति बना रहे हैं। अनिल माधव दवे भी अब सक्रिय हो गए हैं। पिछली बार भारतीय जनता पार्टी के समक्ष कांग्रेस की चुनौती लगभग शून्य ही थी। उमा भारती के अलग होने के बावजूद भाजपा ने अच्छी खासी तादाद में सीटें जीती थी। लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं। जनता केंद्र सरकार से त्रस्त है तो राज्य सरकार से भी बहुत खुश नहीं है। राज्य सरकार के कई मंत्रियों का प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा है। बहुत से नेता अहंकार में भी चूर हो चुके हैं। इसी कारण चुनाव जीतना अब उतना आसान नहीं है। यदि आज का रिपोर्ट कार्ड देखा जाए तो कांग्रेस से भाजपा फिलहाल पीछे दिखाई दे रही है। यह बात अलग है कि कुछ चाटुकार किस्म के लोग भाजपा को आगाह करने के बजाए उसे बार-बार यही आश्वासन दे रहे हैं कि सरकार आप ही बनाएंगे पर सच तो यह है कि 1998 में सब कुछ पक्ष में होते हुए जिस तरह भाजपा सत्ता पाने में नाकामयाब रही थी इसी प्रकार की स्थिति इस बार बनने लगी है। नरेगा में गड़बड़ी, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क, पानी सहित अन्य सुविधाओं को सही तरीके से उपलब्ध करा पाने में सरकार की नाकामी, भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही और भाई-भतीजावाद ये कुछ ऐसी कमियां हैं जो भाजपा संगठन के शुभ चिंतकों को चिंता में डाल रही हैं। इस बार उमा भारती साथ हैं, लेकिन उनके आने के साथ ही भाजपा में गुटबाजी स्पष्ट दिखाई देने लगी है। इसकी बानगी उमा भारती के जन्म दिन में भी देखने को मिली। जब कुछ खास नेताओं ने खास अंदाज में उमाश्री को बधाई दी तो कुछ नेताओं ने जानबूझकर उनसे दूरी बनाए रखी।
इन हालातों में भाजपा ने चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि वसुंधरा और रमन सिंह की तरह शिवराज रथयात्रा में तेजी नहीं ला पाए हैं, लेकिन भाजपा संगठन चुनाव पूरे होने के बाद करीब छह माह से अटके छह जिले के भाजपा अध्यक्षों की घोषणा से स्थिति स्पष्ट हो गई है। कहा जाता है कि बड़े नेताओं को उनकी पसंद से जिले के कमान सौंपी गई है। कुछ खास मंत्रियों ने अपनी पसंद के जिला अध्यक्षों को नियुक्त करवाकर चुनाव में उन्हें तैनात करने के लिए कमर कसी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इन नियुक्तियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अभी भी कुछ जिले ऐसे हैं जहां जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की जाना बाकी है।
कर्नाटक में भाजपा की हार अप्रत्याशित नहीं है किंतु जिस बुरी तरह भाजपा हारी है उससे यह लगने लगा है कि कांग्रेस के विरोध में जिस माहौल की चर्चा की जा रही थी वह उतना नहीं है। मध्यप्रदेश में तो खासतौर पर हालात भाजपा के पक्ष में उतने मजबूत दिखाई नहीं दे रहे हैं। शायद इसीलिए भाजपा विधायक दीपक जोशी ने कर्नाटक में हार पर कहा था कि मध्यप्रदेश को इससे सबक लेने की जरूरत है नहीं तो मध्यप्रदेश में भी कर्नाटक जैसा ही हाल होगा। दीपक जोशी ने यह टिप्पणी फेसबुक पर की थी। बाद में जब विवाद बढ़ा तो उन्होंने टिप्पणी डिलीट कर दी, लेकिन तब तक बहुत कुछ सामने आ चुका था। दीपक जोशी ने अपनी टिप्पणी में जिस पट्ठावाद और परिवारवाद का जिक्र किया था वह भाजपा की असल कमजोरी बनती जा रही है। इसी कारण आदिवासी अंचलों में जनाधार घट गया है और इस घटे हुए जनाधार ने भारतीय जनता पार्टी को चिंता में डाल दिया है। भीतरी खबर यह है कि एक बड़े नेता को मुख्य रूप से आदिवासी अंचल में भाजपा की स्थिति सुधारने के लिए अभियान चलाने की अनुमति देने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि इसमें गुटबाजी भी देखने में आई है। प्रभात झा भी दीपक जोशी की तरह तल्ख अंदाज में कह चुके हैं कि भाजपा कर्नाटक में अपनी वजह से ही हारी है। झा का इशारा उन नेताओं की तरफ है जो सबको लेकर चलने में यकीन नहीं रखते हैं। यही कारण है कि शिवराज अभी तक अपनी चुनावी यात्रा पर नहीं निकल पाए हैं। पार्टी के एक नेता ने ऑफ द रिकार्ड यह टिप्पणी की थी कि शिवराज को पंचायत करने की बजाए अब जनता के समक्ष जाकर जनता से मिलना चाहिए। अन्यथा बहुत देर हो जाएंगी। टिकिट वितरण को लेकर भी सरगर्मी का दौर जारी है। कुछ समय पहले एक बयान की चर्चा भी मीडिया मेें हुई थी, जिसमें कथित रूप से शिवराज ने महिलाओं को 50 प्रतिशत टिकिट देने की बात कही थी किंतु बाद में स्वयं उन्होंने ने ही इस बयान का खंडन कर दिया। वैसे भी जातिवाद और क्षेत्रवाद की राजनीति को ध्यान में रखते हुए टिकिट वितरण करना होगा। महिलाओं का सवाल ही कहां है?