01-May-2013 10:03 AM
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मध्यप्रदेश में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में हताशा है, असंतोष है, अनमना पन है और उन सबसे बढ़कर राज्य प्रशासनिक सेवा में आने पर पछतावा है। ये वे ही अधिकारी हैं जिन्होंने अपने जवानी के दिनों में कभी आईएएस बनने के सपने देखें थे, लेकिन आईएएस न बन पाने पर राज्य प्रशासनिक सेवा इस उम्मीद के साथ ज्वाइन की थी कि देर सवेर आईएएस बनने का मौका मिल ही जाएगा उनकी यह उम्मीदें धरी की धरी रह गई। राज्य प्रशासनिक सेवा में तो वे अपनी मेधा और लगन के बल पर आ गए किंतु इसके बाद उनका दुर्भाग्य जिस तरह उन्हें पदोन्नति पाने से वंचित करता रहा वह अपने आप में एक मिसाल कही जा सकती है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह राज्य प्रशासनिक अधिकारियों को मध्यप्रदेश प्रशासन की रीढ़ कहते हैं किंतु इन अधिकारियों के साथ हो रहे बदस्तूर अन्याय पर उन्होंने कोई ठोस कदम अभी तक नहीं उठाया है। उत्तरप्रदेश में सत्तासीन होते ही अखिलेश यादव ने जब राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के साथ अन्याय होते देखा तो दिल्ली में डेरा जमा लिया था और आनन-फानन में डीपीसी करवाकर 70-80 अधिकारियों की पदोन्नति सुनिश्चित की थी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी स्वयं आगे बढ़कर प्रदेश के राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की पीड़ा जानी और दिल्ली में डेरा जमाने के बाद वहां भी 50 के लगभग राप्रसे अधिकारियों की पदोन्नति तत्काल हो गई। सूत्र बताते हैं कि भारत सरकार के कार्मिक विभाग ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा है कि आपके यहां के प्रस्ताव शीघ्र भेजें आने वाले समय में परीक्षा के लिए नोटिफिकेशन जारी होने वाला है।
मध्यप्रदेश में राज्य प्रशासनिक सेवा संवर्ग वर्तमान में बड़ी कुण्ठा एवं निराशा के दौर से गुजर रहा है। राज्य की सबसे बड़ी सेवा माने जाने वाली इस सेवा की स्थिति बदलते दौर और राज्य शासन का इस सेवा के प्रति सौतेला व्यवहार के कारण अब स्थिति यह है कि लोक सेवा आयोग में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर डिप्टी कलेक्टर बने अधिकारी उसी परीक्षा में उनसे बहुत कम अंक प्राप्त कर अधीनस्थ सेवा में चयनित अधिकारियों से वेतनमान और श्रेणी में बहुत अधिक पीछे रह गये हंै। देखा जाए तो राज्य की इस महत्वपूर्ण सेवा की स्थिति इतनी खराब पहले कभी नही थी। इस सेवा में आने का एक सपना यह भी रहता है कि आने वालेे समय में भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश का एक अवसर मिलेगा। परंतु वर्तमान स्थिति यह है कि जहां प्रत्येक वर्ष राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश के लिए विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक होनी चाहिए यह बैठक दो-दो, तीन-तीन वर्ष में नही हो पा रही है।आज भी 1987 बैच के अधिकारी अपनी पदोन्नति का प्रतीक्षा करते-करते 55 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके हंै और पद रिक्त न होने के कारण बड़ी संख्या में नीचे के अधिकारी अपनी आगामी वेतनमान में पदोन्नति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। राज्य पुलिस सेवा से भारतीय पुलिस सेवा में और राज्य वन सेवा से भारतीय वन सेवा में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति है। इन दोनों सेवाओं में प्रति वर्ष विभागीय पदोन्नति समिति की बैठकें हो रही हैं और वर्ष 1989 बैच के अधिकारी आखिल भारतीय सेवा में चयनित हो चुके हंै। राप्रसे अधिकारियों को पदोन्नति न मिलने की एक कैफियत यह भी दी जाती रही है कि आईएएस को 3 साल के बाद पदोन्नति मिलती है किंतु राप्रसे को आईएएस अवार्ड होने के बाद उसे सीनियरिटी में पूर्व के सेवा वर्षों का लाभ भी मिलता है। उदाहरण किसी राप्रसे अधिकारी को 15 वर्ष की सेवा के उपरांत आईएएस अवार्ड हुआ तो उसकी सीनियरिटी उतनी ही मानी जाएगी। ऐसी स्थिति में सीधे आईएएस बनने वाले अधिकारी को राप्रसे प्रमोटी अधिकारी के नीचे काम करना गंवारा नहीं होता। हालांकि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव कृपा शंकर शर्मा इससे सहमत नहीं हैं। शर्मा का कहना है कि अपने सेवाकाल में उन्होंने ऐसा उदाहरण नहीं देखा। बल्कि यह कैडर मिस मैनेजमेंट का नतीजा है। ज्ञात रहे कि राज्य प्रशासनिक सेवा में 10 वर्ष की सेवा अवधि में प्रवर श्रेणी वेतनमान का प्रावधान है और इस वेतनमान में अधिकारी भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के लिए पात्र हो जाता है। जो अब बढ़ कर 25-26 वर्ष हो चुका है। और चयनित होने वाले अधिकारियों को मात्र 8-10 वर्ष ही भारतीय प्रशासनिक सेवा में कार्य करने का अवसर प्राप्त हो पा रहा है।
राज्य प्रशासनिक सेवा संवर्ग की खराब स्थिति के लिए मात्र भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन में विलम्ब ही एक मात्र कारण नहीं है। राज्य शासन द्वारा इस केडर के प्रबंधन के लिए कभी ध्यान ही नही दिया गया। लंबे समय से केडर का रिव्यू ही नहीं हुआ है। जो भारतीय प्रशासनिक सेवा की भांति प्रत्येक 5 वर्ष मे हो जाना चाहिए। वर्तमान में रा.प्र.से. केडर में 5 वेतनमानों का प्रावधान है। कनिष्ठ श्रेणी वेतनमान (15600-39100, ग्रेड पे-5400), वरिष्ठ श्रेणी (15600-39100, ग्रेड पे-6600), प्रवर श्रेणी (15600-39100, ग्रेड पे-7600), वरिष्ठ प्रवर श्रेणी (37400-67000, ग्रेड पे-8700) एवं अधिसमय वेतनमान (37400-67000, ग्रेड पे-8900) प्रचलित है। राज्य प्रशासनिक सेवा की लंबे समय से चली आ रही मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने अधिसमय वेतनमान विगत वर्ष दिया था और इसमें 14 पद निर्धारित किये थे।
उपरोक्त वेतनमान प्रदान करने के लिए राज्य सरकार द्वारा पात्रता निर्धारित की गई है। जिसमें कनिष्ठ श्रेणी वेतनमान सेवा में आने पर प्राप्त होता है। वहीं कनिष्ठ श्रेणी वेतनमान मे 6 वर्ष कार्य करने पर वरिष्ठ वेतनमान में 4 वर्ष कार्य करने पर प्रवर श्रेणी वेतनमान प्रवर श्रेणी वेतनमान में 6 वर्ष कार्य करने पर वरिष्ठ प्रवर श्रेणी और वरिष्ठ प्रवर श्रेणी वेतनमान में 6 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण करने पर एवं राज्य प्रशासनिक सेवा में कुल 22 वर्ष कार्य करने पर अधिसमय वेतनमान दिया जाता है।
5वें वेतनमान की शर्तें कितनी अव्यवहारिक रखी गई है कि 22 से अधिक की सेवा करने वाले अधिकारियों को भी अधिसमय वेतनमान नहीं मिल पा रहा है। क्योकि केडर प्रबंधन समुचित तरीके से न होने के कारण अधिकारियों को चतुर्थ वेतनमान बहुत विलम्ब से मिला आज भी अधिकारियों को चतुर्थ वेतनमान जो प्रवर श्रेणी वेतनमान में 6 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण करने पर मिल जाना चाहिए था वह 9 से 10 वर्ष की सेवा अवधि पूर्ण करने पर भी नही मिला है। यही स्थिति प्रवर श्रेणी वेतनमान के संबंध में भी है। जहां वरिष्ठ श्रेणी में 4 वर्ष की सेवा पूर्ण करने पर यह वेतनमान मिलता है। इसमे भी दोगुना समय अर्थात 8 वर्ष होने पर भी प्रवर श्रेणी वेतनमान नही मिल रहा है। संवर्ग के अधिकारियों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि जो यह विलंम्ब हो रहा है वह स्थाई रूप से नुकसान पहुचा रहा है। क्योंकि आगामी वेतनमान में पूर्व वेतनमान में निर्धारित अवधि पूर्ण करने के बाद ही वह मिल पाएगा। इसी कारण राप्रसे के अधिकारी आगामी 5 मई को कोई ठोस निर्णय ले सकते हैं।
राज्य प्रशासनिक सेवा में अभी चतुर्थ वेतनमान 1988 बेच को भी नही मिल सका है। जबकि राज्य पुलिस सेवा में 1994 बेच के अधिकारियों को यह वेतनमान मिल गया है वही 2002 बैच के डीएसपी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बन रहे हैं, जबकि राप्रसे के 1996 बैच के अधिकारी भी अभी अपर कलेक्टर नहीं बन सके हैं। जिलों में स्थिति तो और भी खराब है। विशेष रूप से ऐसे जिले जहां पर राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी पुलिस अधिक्षक के रूप में पदस्थ है। रायसेन में अपर कलेक्टर 1984 बैच के है। तो पुलिस अधिक्षक 1993 बैच के पुलिस अधिकारी है। एसडीएम अपने से 15-15 बैच जूनियर डीएसपी के साथ काम कर रहे है, तथा अपने से 5 से 6 बैच जूनियर डीएसपी जो अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बन गये है। उनके साथ काम करने में असहज महसूस कर रहे है। वेतनमान में भी बहुत ज्यादा अंतर आ गया है। 1988 बैच के डिप्टी कलेक्टर से इसी बैच के डीएसपी का वेतनमान लगभग 25 हजार रूपये अधिक है और यही स्थिति नीचे तक है। कुछ तो ऐसे भी हैं जो पदोन्नति का सपना देखते देखते रिटायर्ड हो गए, लेकिन राज्य सरकार ने उनकी कोई सुध नहीं ली। केएस शर्मा कहते हैं कि पदोन्नति में कई तरह की बाधाएं हैं। राज्य शासन यूपीएससी और केंद्र सरकार के बीच सही समन्वय न होने के कारण भी विलंब होता है। कई बार कुछ अधिकारी कोर्ट की शरण ले लेते हैं, जिसके चलते उन्हीं के केडर के अन्य अधिकारियों का भी नुकसान हो जाता है। ऐसी बहुत सी बाधाएं लगातार आ रही हैं।
राज्य पुलिस स्वास्थ्य योजना में अड़ंगा
गंभीर रूप से बीमार होने की स्थिति में सरकारी कर्मचारी/अधिकारी पहले इलाज करवाते हैं फिर सरकार द्वारा उनके इलाज का खर्चा, बिल इत्यिादि का परीक्षण करने के कई माह उपरांत दिया जाता है। मध्यप्रदेश पुलिस महकमे ने इस अनावश्यक देरी से बचने के लिए राज्य पुलिस स्वास्थ्य योजना प्रस्तावित की थी जिसकी मीटिंग मुख्य सचिव परशुराम की अध्यक्षता में हुई। जिसमें मुख्य सचिव महोदय ने स्वास्थ्य सेवाओं में देरी होना स्वयं स्वीकार किया और राज्य पुलिस स्वास्थ्य योजना की सराहना करते हुए कहा कि इससे पुलिस महकमें के मरीजों को अनावश्यक भाग दौड़ नहीं करनी पड़ेगी। दरअसल यह योजना एक दृष्टि से बहुत उपयोगी है क्योंकि इसमें सरकार द्वारा चिन्हित निजी अस्पतालों में पुलिस के आला अफसर के पत्र से अफसर और कर्मचारी का मुफ्त इलाज हो सकेगा और इलाज के उपरांत पैसा लेने में आने वाली कठिनाइयां स्वत: ही दूर हो जाएंगी, लेकिन इसमें पेंच यह है कि पुलिस महकमें के अधिकारियों और कर्मचारियों की निर्भरता स्वास्थ्य विभाग पर बिल्कुल नहीं रह जाएगी। स्वास्थ्य विभाग इस जिम्मेदारी को अपने हाथों में ही रखना चाहता है शायद इसीलिए प्रमुख सचिव स्वास्थ्य इस योजना में अड़ंगा डालने से बाज नहीं आए। उनका गम यह था कि आखिर आईपीएस अधिकारियों के हाथों में यह बागडोर क्यों चली जाए।
परशुराम बने रहेंगे तारणहार
मध्यप्रदेश के प्रशासनिक मुखिया एक्सटेंशन पूर्ण होने के बाद सितंबर 2013 में प्रदेश से विदा लेने नहीं जा रहे हैं बल्कि वे प्रदेश में ही रहकर मध्यप्रदेश की नैया के खिवइया बने रहेेंगे। दरअसल सितंबर में राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद खाली होने जा रहा है। यह पद संभालने वाले अजीत रायजादा सितंबर में 66 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे और जैसी की प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्य सचिव आर परशुराम का पुनर्वास इस पद पर किया जाएगा। राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर इससे पूर्व 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति हो जाया करती थी, किंतु वर्तमान में इसे बढ़ाकर 66 वर्ष कर दिया गया है और इससे अजीत रायजादा एक वर्ष अधिक सेवाएं दे चुके हैं। रायजादा की जन्म तिथि 17 सितंबर 1947 है। वहीं आर परशुराम 24 मार्च 1953 को जन्में हैं। उनका एक्सटेंशन सितंबर माह में पूरा हो रहा है। लगता है इसीलिए उन्हें छह माह का एक्सटेंशन दिलवाया गया है। जिससे वे राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर परशुराम अगले साढ़े पांच वर्षों तक राज्य को सेवाएं देते रहेंगे। राज्य निर्वाचन आयोग का दायित्व बहुत महत्वपूर्ण है वह नगरीय निकाय और ग्रामीण निकाय के चुनाव संपन्न कराता है।
कुमार राजेंद्र