चक्रव्यूह में कौन?
17-Apr-2017 06:48 AM 1234886
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रात्रि भोज आमंत्रण पर बेरुखी दिखाने वाले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कई तरह से जता दिया है कि कुछ भी हो जाये वे भाजपा को हल्के में ही लेते रहेंगे। महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना गठबंधन टूट चुका है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार में इसका बना रहना हैरत की बात है। निकाय चुनाव में शिवसेना का अधिकतम नुकसान भाजपा ने किया, पर मुंबई में पिछड़ गई तो युति बनाए रखने भाजपा ने खामोशी से मेयर पद शिवसेना को तोहफे में दे दिया इसके बाद भी उद्धव की नाराजगी दूर नहीं हो रही है। शिवसेना सांसद संजय राऊत का यह कहना एक कूटनीति है कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए राष्ट्रपति पद के लिए आर एस एस मुखिया शिवसेना की पहली पसंद होंगे और शिवसेना उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित भी कर सकती है। दरअसल में यह उद्धव ठाकरे की लिखी स्क्रिप्ट है जिसे लेकर भाजपा और खासतौर से नरेंद्र मोदी बेक फुट पर जाने मजबूर हो चले हैं। भागवत की उम्मीदवारी का एक ही शख्स विरोध कर सकता है और वे खुद मोहन भागवत हैं जिन होने अपने पत्ते अभी खोले नहीं हैं। नरेंद्र मोदी को घेरने का कोई मौका यदि उद्धव चूक नहीं रहे तो बात बेहद साफ है कि वे औरों की तरह उनका रुतबा रसूख और दबदबा नकार रहे हैं। जाहिर है उनकी नजर में मोदी एक भरोसेमंद साथी या सहयोगी नहीं हैं। राष्ट्रपति पद के लिए भाजपा अपने पितामह लालकृष्ण आडवाणी का नाम यह कहते हुए उछाल चुकी है कि मोदी उन्हें गुरु दक्षिणा देना चाहते हैं। यह दीगर बात है कि कथित और अपुष्ट सूत्रों के हवाले से आई इस खबर पर कोई आसानी से भरोसा भी नहीं कर रहा। मुद्दे की बात भाजपा और मोदी को लेकर उद्धव की मंशा है, लगता ऐसा है कि वे अब भाजपा को और ज्यादा झेलने के मूड में नहीं है और बाद के अंजामों की परवाह भी नहीं कर रहे। तो बारी अब भाजपा की है कि वह और कैसे-कैसे उन्हें मेनेज करेगी। उद्धव गठबंठन तोडऩे का गुनाह भी अपने सर नहीं लेना चाह रहे। इसलिए भाजपा को उकसा रहे हैं ताकि उसकी छवि खराब की जा सके। महाराष्ट्र निकाय चुनावों में शिवसेना हार कर भी जीती है, उसने साबित कर दिया है कि बगैर भाजपा के भी वह चल सकती है और झुककर तो कतई बात नहीं करेगी। भाजपा अगर गठबंधन तोड़ती है तो तय है महाराष्ट्र के लिहाज से घाटे का सौदा करेगी। शरद पवार के साथ बाबत वह आश्वस्त नहीं, वैसे भी एन सी पी का साथ उसके वोटर को बिदकाने वाला ही साबित होगा। अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा क्या करेगी, क्योंकि ज्यादा दिनों तक वह उद्धव को होल्ड पर रखने की स्थिति में भी नहीं है और यह भी समझ रही है कि राष्ट्रपति पद के लिए अब उद्धव उसके साथ नहीं हैं। भागवत देश का यह सर्वोच्च पद लेने में दिलचस्पी लेंगी या नहीं यह भी कम रोमांच की बात नहीं। उधर शिवसेना केन्द्र सरकार के सामने मुसीबतें खड़ी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। अभी हाल ही में शिवसेना के सांसद रवींद्र गायकवाड़ ने एयरइंडिया की फ्लाइट में उसके 60 वर्षीय स्टाफ के साथ मारपीट कर हंगामा किया। हालांकि एयरइंडिया सहित कई एयरलाइंस ने सांसद को इसके लिए सबक भी सिखाया और उन्हें ब्लेक लिस्ट कर दिया। अब संसद के हस्तक्षेप के बाद सांसद को विमान से यात्रा करने की अनुमति दे दी गई है। रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गया कभी बालासाहब के नेतृत्व में देशभर में अपनी पैठ जमाने वाली शिवसेना के अब महाराष्ट्र से भी पैर उखडऩे लगे हैं। इसके पीछे मुख्य वजह शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की अक्खड़ नीति है। जिस तरह बालासाहब ठाकरे समन्वय के साथ काम करते थे ठीक उसके विपरीत उद्धव ठाकरे असहयोग करते नजर आ रहे हैं। हद तो यह है कि नगरीय चुनाव में बड़ी हार के बाद भी उनकी ऐंठन बरकरार है। आलम यह है कि वे भाजपा के साथ हर कदम पर रार करते नजर आ रहे हैं। इससे महाराष्ट्र का मराठी मानुस भी चिंतित है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश में मराठियों को एकजुट करने और उनके अधिकारों को लेकर शिवसेना जिस तरह संघर्ष करती आ रही है, अब शिवसेना पर ही खतरा मंडराने लगा है। लेकिन उद्धव ठाकरे को शायद इसकी भनक नहीं है। जानकार बताते हैं कि अगर महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना गठबंधन टूटा तो प्रदेश से शिवसेना का सफाया होते देर नहीं लगेगी। -मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर
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