घूंघट की आड़ से बाहर आया गांव !
17-Apr-2017 07:04 AM 1235028
रूढ़ीवादी विचारधारा और कट्टरपन की बात करें तो जो नाम सबसे पहले जेहन में आता है वो है हरियाणा। रीति रिवाज के नाम पर महिलाओं पर बंदिशें लगाने में यहां की खाप पंचायतों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पर आश्चर्य की बात है कि आज जब हम सामाजिक बदलाव की बात कर रहे हैं तो इसी राज्य ने वो कर दिया जो शायद देश में कहीं और नहीं हुआ है। हरियाणा के जींद में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया जिसकी उम्मीद भी किसी को नहीं थी। यहां पर्दा प्रथा को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। जींद के तलौड़ा गांव में महिलाएं हमेशा से ही पर्दा करती आई हैं। पर्दा प्रथा को भले ही घर के बड़ों के सम्मान से जोड़ा जाता हो या फिर ये लोगों की बुरी नजरों से बचने का तरीका हो, पर जो भी हो, सदियों से इसे महिलाओं ने अपना धर्म समझकर निभाया, लेकिन आज के प्रगतिशील जमाने में ये रूढ़ीवादी प्रथा कहीं न कहीं रास्ते का रोड़ा बन रही थी। इस गांव में ये बदलाव लाने का श्रेय बीबीपुर मॉडल ऑफ विमेन इन्वायरमेंट नाम के एनजीओ को जाता है, जिन्होंने गांव भर की महिलाओं को समझाया और बाकायदा एक कार्यक्रम का आयोजन करके इस प्रथा को खत्म किया। महिलाओं का कहना था कि घूंघट कभी-कभी परेशानियों का सबब बन जाया करता था, कई बार तो ठोकर लगने से वो गिर जाती थीं। इस पहल से महिलाएं बेहद खुश हैं उनका कहना है कि अब वो सड़क पर चलते वक्त खुद को सशक्त महसूस करेंगी और सबसे बड़ी बात जो यहां की महिलाओं ने कही, वो ये कि जब निगाहें पुरूषों की बुरी हों तो महिलाएं पर्दा क्यों करें। बुजुर्ग महिलाएं हों या फिर नई बहुएं ये पहल हर किसे के चेहरों पर खुशी लेकर आई। हम अक्सर देखते हैं कि बहू के ससुराल आते ही घर की बुजुर्ग महिलाएं रीति रिवाज और परंपराओं के नाम पर बहुओं को कई सारे नियम कायदे समझा डालती हैं। घर की इज्जत, मान, मर्यादा जैसे भारी भरकम शब्दों का बोझ अलग, और शिफॉन की साड़ी का पल्लू अगर सर से जरा भी सरका तो महाभारत अलग, क्योंकि पल्लू के साथ बड़े बुजुर्गों का सम्मान भी सरक जाता है (जैसा कि माना जाता है)। अब भला ऐसी सोच को और कितने दिनों तक ढोया जा सकता है। एक न एक दिन तो सोच बदलनी ही थी। आज भले ही ये एक गांव है, लेकिन सोच से ही समाज बदलता है, शायद ये कल के हरियाणा की झलक भर है, आने वाला समय हरियाणा ही नहीं बल्कि रूढ़ीवादी विचारधारा समेटे उन सभी राज्यों के बदलाव का होगा। पर उम्मीद है कि लोग बदलाव के लिए किसी एनजीओ का रस्ता न देखें, रूढिय़ों को तोड़ें और खुद बदलाव की ओर रुख करें। आज खुद महिलाएं न केवल अपने परिवार को संभाल रही हैं, बल्कि साथ ही साथ उन्हें आर्थिक रूप से भी मजबूत कर रही हैं। लेकिन उनके मजबूत हौंसलों को कहीं न कहीं समाज के कुछ अपवाद बुलंद नहीं होने दे रहे हैं। महिलाओं को स्वतंत्रता तो मिल गई किंतु आज भी उसे वह सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जा सकी, जिसकी वह हकदार है। महिलाएं न केवल सृष्टि का विस्तार करती हैं बल्कि समाज को आईना भी दिखाती हैं। सीमा पर देश की रक्षा के लिए तैनात बहादुर जवानों को अपने खून से सींचती हैं। ताकि कोई भी हमारे देश का बाल भी बांका न कर सकें। इन सबके बावजूद इतनी सहनशील और त्याग की प्रतिमा को हमारा समाज सृष्टि में नहीं आने देता और गर्भ में ही उसकी हत्या कर महापाप का भागी बन जाता है। लड़के की चाह में इस जघन्य कृत्य को अंजाम देने वालों को कौन समझाए कि जब बेटी ही नहीं रहेगी, तो बेटा कहां से पाओगे। भ्रूण हत्या, बलात्कार और दहेज उत्पीडऩ हमारे समाज का वह कटु सच है, जो हमेशा हमें शर्मिंदा करता है। आज नारी का चाल-चेहरा और चरित्र बदल रहा है आज नारी का चाल-चेहरा-चरित्र बदल रहा है। वह अगुवा बनने के लिए संघर्ष करने को भी तैयार है। वह आज राजनीति, फिल्म, फैशन, खेल जगत, मीडिया, यूनिवर्सिटी में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। वह चांद पर पहुंच गई हैं। विदेशों में जाकर अपने देश का नाम रोशन कर रही हैं। आज जिस तरह से वह एक के बाद एक उपलब्धि हासिल कर रही हैं, ये देश के लिए गर्व की बात है। जी हां, महिलाओं को लेकर कहीं न कहीं आज भी लोगों का वही नजरिया है जो सदियों पहले था। लड़कियों को बड़े-बड़े सपने दिखाकर उनकी अस्मत को लूटना, दहेज के लिए उन्हें प्रताडि़त करना, मंदिरों में प्रवेश करने से रोकना, उन्हें केवल बच्चे पैदा करने की मशीन समझना और प्यार में असफल होने पर उन पर तेजाबी हमले करना। यह सब एक पिछड़ी सोच है महिलाओं के प्रति, जो बहुत ही वाहियात है। -ज्योत्सना अनूप यादव
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