01-Apr-2017 09:57 AM
1234942
यूपी विधानसभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत के पीछे मुस्लिम वोटों को एक बड़ा कारण माना जा रहा है। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि चुनाव में मुस्लिम महिलाओं ने ट्रिपल तलाक के मामले में भाजपा के रूख के लिए जमकर वोटिंग की है। इधर भाजपा और विपक्ष दोनों ही अभी तक इसी जोड़-घटाव, गुणा-भाग में लगे हैं कि आखिर भाजपा की जीत के पीछे मुस्लिम वोट का हाथ है या नहीं। और उधर देश भर से लगभग 10 लाख मुस्लिमों ने ट्रिपल तलाक की एक याचिका पर साइन कर इस बात की पुष्टि कर दी है। चौंकाने वाली बात ये है कि ये याचिका आरएसएस समर्थित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) की ओर से जारी की गई है और इस पर हस्ताक्षर करने वालों में ज्यादा संख्या मुस्लिम महिलाओं की है। मुस्लिम महिलाएं खुलकर ट्रिपल तलाक के विरोध में रही हैं और भाजपा का इस मुद्दे पर समर्थन में सामने आने से भी अब गुरेज नहीं कर रहीं हैं।
मुस्लमानों के लिए भाजपा अब अछूत नहीं ंएमआरएम ने कहा- यह एक समुदाय की समस्या है। इस समुदाय का लोगों के साथ-साथ राज्य के प्रतिनिधियों और सरकारों को भी इस समस्या पर ध्यान देना चाहिए और एक राष्ट्व्यापी बहस शुरू करने के लिए साथ बैठना चाहिए। मुस्लिम महिलाओं को उनका सम्मान दिलाना है तो इतना करना होगा। पार्टी खुद मानती हैं कि यूपी में उनकी जीत के पीछे सबसे बड़ा कारण मुस्लिम महिलाओं का वोट मिलना है। इन महिलाओं ने ट्रिपल तलाक पर पार्टी के रूख के लिए उसका समर्थन किया है। मुस्लिम महिलाएं लंबे समय से इस दमनकारी व्यवस्था को बंद करने की मांग कर रहीं हैं।
इलाहाबाद पश्चिम के नए निर्वाचित विधायक और पार्टी सचिव सिद्धार्थनाथ सिंह कहते हैं- यूपी में इस भारी जीत के पीछे मुझे लगता है तीन कारकों ने अहम रोल अदा किया। पहला- उज्ज्वला योजनाÓ। इसके तहत् पार्टी ने गरीब महिलाओं को एलपीजी सिलेंडर देने की शुरूआत की थी जिससे गांवों में महिलाओं को बहुत फायदा पहुंचा और जीवन आसान हुआ। दूसरा- स्वच्छ भारतÓ कार्यक्रम के तहत हमने जो शौचालयों का निर्माण किया जिसने महिलाओं को हमारी तरफ खींचा और सबसे जरूरी रहा ट्रिपल तालाक पर हमारा रुख। एमआरएम का हस्ताक्षर अभियान अभी भी चल रहा है। संगठन ने मुस्लिम धर्म के परंपरागत रूढि़वादी लोगों और मौलानाओं को चेतावनी दी है कि इस सामाजिक समस्या को धर्म ना ही जोड़ें तो बेहतर होगा। ट्रिपल तलाक एक सामाजिक समस्या है और इसको खत्म करना सभी की जिम्मेदारी है। मुस्लिम महिलाओं ने जमकर वोट किया। एमआरएम के राष्ट्रीय संयोजक मुहम्मद अफजल ने कहा- यूपी में भाजपा को मुस्लिम वोटों का मिलना, देवबंद जैसी परंपरागत सीट जो जमाने से कट्टर उलेमाओं का गढ़ माना जाता है वहां भी भाजपा का जीतना इस बात का इशारा है कि अब पार्टी को मुस्लिम महिलाओं की बात सुननी चाहिए। यूपी चुनावों में मुस्लिम महिलाओं के वोटों का मिलना ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर भाजपा के रूख की तस्दीक करता है। नाम ना बताने की शर्त पर एमआरएम के एक कार्यकर्ता ने बताया कि- चुनाव में बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को खड़ा नहीं किया था लेकिन फिर भी मुस्लिम महिलाओं ने बढ़-चढ़कर उसे वोट दिया। मुहम्मद अफजल ने कहा कि मुस्लिम मौलानाओं को अब जागना होगा। एक आंतकी के मारे जाने पर उसके पिता ने उसके मृत शरीर तक को देश की खातिर स्वीकार करने से मना कर दिया और एक छोटी सी बच्ची के गाना गाने पर फतवा जारी करना दर्शाती है कि देश में परिस्थितियां बदल रही हैं। अब मुल्ला-मौलानाओं को बदलना चाहिए। उन्हें अब सामाजिक मुद्दों को धार्मिक उन्माद में बदलना बंद करना होगा। ट्रिपल तलाक एक सामाजिक मुद्दा है और इसे वो धार्मिक मुद्दा ना बनाएं तो ही बेहतर होगा। यहां तक भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की धूरी रहे मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद के परपोते फिरोज अहमद बख्त ने मुस्लिमों के प्रति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रवैये को जमकर सराहा। उन्होंने कहा कि- उलेमा मुस्लिम समुदाय को पुरातन काल में नहीं बल्कि पाषाण काल की तरफ लेकर जा रहे हैं।
धर्म के नाम पर कुरीतिÓ नहीं चलेगी
भारत में नारियों से संबंधित सामाजिक मुद्दों की जीत हमेशा धार्मिक कुरीतियों पर भारी पड़ती आई है। भारत के इतिहास ने ऐसे बहुत से सामाजिक मुद्दों को विजयी होते देखा है, फिर चाहे वह सती प्रथा रही हो, बाल विवाह रहा हो, हिन्दू विधवाओं की मुण्डन प्रक्रिया रही हो या फिर स्त्री शिक्षा की बंदिशें रही हों। प्राय: ये सभी सामाजिक मुद्दे धर्म से जोड़कर जबरन स्त्रियों पर थोपे गए थे। स्त्रियों ने सहनशीलता की पराकाष्ठा तक इनकी पीड़ाओं को सहा, लेकिन जब दर्द नासूर बनने लगे, तो धर्म के नाम पर चलाई जा रहीं इन कुरीतियों को दूर करने के सफल प्रयास हुए और आज भारत लगभग 99 प्रतिशत इन सामाजिक कुरीतियों से मुक्त हो चुका है।
-ज्योत्सना अनूप यादव