02-May-2017 07:22 AM
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ना और हांÓ ये दोनों ऐसे शब्द हैं, जिन के प्रयोग मात्र से बिना किसी स्पष्टीकरण के मन की भावना को व्यक्त किया जा सकता है। लेकिन हमारे समाज ने भाषा को भी अपने सांचे में ढाल लिया है जैसे स्त्री की ना को हां ही माना जाता है। कहा जाता है कि लज्जावश स्त्री अपनी हां को हां नहीं कह पाती, इसलिए ना कहती है। दरअसल, उस ना का अर्थ हां ही है और जब स्त्री किसी बात का समर्थन कर हां कहती है, तो उसे अनेक उपनामों जैसे घमंडी, मौडर्न, बेहया आदि कहा जाता है। लेकिन आज की लड़कियां तमाम बंधनों को तोड़कर आसमान छू रही हैं और समाज के लिए आदर्श बनी
हुई हैं।
अमूमन समाज में लड़कियों को लड़कों से कमतर आंका जाता है। शारीरिक सामथ्र्य ही नहीं अन्य कामों में भी यही समझा जाता है कि जो लड़के कर सकते हैं वह लड़कियां नहीं कर सकतीं, जबकि इसके कई उदाहरण मिल जाएंगे जिन में लड़कियों ने खुद को लड़कों से बेहतर साबित किया है। पिछले वर्ष संपन्न हुए रियो ओलिंपिक और रियो पैरालिंपिक खेलों में खिलाडिय़ों की इतनी बड़ी फौज में से सिर्फ लड़कियों ने ही देश की झोली में मैडल डाल कर देश का नाम रोशन किया। यही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी लड़कियां लड़कों से न केवल कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं बल्कि आगे हैं। हमेशा देश में 10वीं और 12वीं कक्षा के रिजल्ट में लड़कियां ही पहले पायदान पर रहती हैं। चाहे आईएएस बनने की होड़ हो, विमान या लड़ाकू जहाज उड़ाने की या फिर मैट्रो चलाने की, लड़कियां हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं। इस के बावजूद लड़कियों को लड़कों से कमतर आंकना समाज की भूल है।
कुछ धार्मिक पाखंडों, सामाजिक कुरीतियों और परंपराओं ने भी लड़कियों को लड़कों से कमतर मानने की भूल की है। इसी के चलते भ्रूण हत्या तक हो रही है। आज जरूरत है इस दकियानूसी विचार को झुठलाने व खुद को साबित करने की, जिसका सबसे सरल उपाय है पढ़ लिख कर काबिल बनना। आप को बता दें कि घर में सब्जी बनाने से लेकर देश चलाने तक में लड़कियां व महिलाएं आगे हैं और उन्होंने यहां खुद को साबित कर दिखा भी दिया है कि हम किसी से कम नहीं हैं।
जीवन में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा और परिवार का साथ मिले, तो कोई भी ऐसा कार्य नहीं जिसे कर पाना असंभव हो। इसका जीता-जागता उदाहरण है उपमा विरदी। 26 साल की उपमा विरदी को आस्ट्रेलिया में बिजनैस वूमन औफ द ईयर अवार्ड भारतीय चाय की पहचान आस्ट्रेलिया में कराने के कारण मिला। वहां के लोग कौफी ज्यादा पीते हैं, लेकिन उपमा ने उन्हें अपनी मसाला चाय का ऐसा चसका लगाया कि अब वे उनके फैन हो गए हैं। उपमा जो मूल रूप से चंडीगढ़ की हैं, ने किसी काम को छोटा नहीं समझा, तभी तो पेशे से वकील होने के बावजूद वे खाली समय में चाय बनाकर लोगों को सर्व करती थीं, अब तो बड़े-बड़े इवैंट्स में उन्हें बुलाकर उन से मसाला चाय बनाना सीखा जाता है। आज वे पूरी दुनिया में चाय वाली के नाम से मशहूर हो गई हैं। ऐसी अनेकों लड़कियां हैं जो आज आदर्श बनी हुई हैं।
इनकी हिम्मत के आगे सभी फीके
जहां हम हलकी सी चोट लगने पर हिम्मत हार जाते हैं, वहीं दीपा मलिक ने रियो पैरालिंपिक में शौटपुट में पैरालाइसिस की शिकार होने के बावजूद सिल्वर मैडल जीत कर देश का मान बढ़ाया। वे इस खेल में सिल्वर मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उन्होंने साबित कर दिया कि जब तक हम खुद को लाचार मानते रहेंगे तब तक कभी जीत नहीं पाएंगे, लेकिन जिस दिन हमने सोच लिया कि हमारे हौंसले के आगे हमारी दिव्यांगता भी आड़े नहीं आ सकती, उस दिन हम असंभव को भी संभव कर सकते हैं। रियो ओलिंपिक में लड़कियों ने ही देश की लाज बचाई। भारतीय वायुसेना में पहली बार 3 महिला लड़ाकू पायलटों की नियुक्ति हुई, जिस में अवनि चतुर्वेदी मध्य प्रदेश से, भावना कंठ बिहार से और मोहना सिंह राजस्थान से हैं। उपरोक्त के अलावा पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पहली महिला आईपीएस किरण बेदी, राजनेत्री सुषमा स्वराज और कई अन्य मिसाल हैं इस बात की कि लड़कियां लड़कों वाला हर काम कर सकती हैं और कहीं भी लड़कों से कमतर नहीं हैं।
-ज्योत्सना अनूप यादव