17-Apr-2017 06:39 AM
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मप्र बाघों की मौत का गढ़ बनता जा रहा है जहां हर महीने औसत 2 से 3 बाघों की मौत हो रही है। पिछले 15 महीने में 37 बाघों (शावक भी शामिल) की मौत हो चुकी है। इसमें से 75 फीसदी बाघों की मौत करंट लगने, जादू-टोने के लिए शिकार करने, ट्रेन की चपेट में आने और बाघों के बीच आपसी लड़ाई के कारण हुई है। यह आंकड़ा देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। इसके बावजूद बाघों की मौत की घटनाएं थम नहीं रही है। दरअसल बाघों को बचाने में वनविभाग पूरी तरह फेल हो गया है। वनविभाग का अमला अपनी सक्रियता के दावे तो खूब कर रहा है, लेकिन देखा यह जा रहा है कि विभाग न तो हादसे रोक पा रहा है और न ही शिकार।
बाघों को शिकार होने से बचाने में असफल साबित हो रहे प्रदेश के वन विभाग के दामन पर बाघों की मौत के मामलों की जांच भी सुस्त रफ्तार से करने का दाग और लग गया। इसका खुलासा पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट 14 मार्च को संसद में पेश की गई है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में देशभर में हुई बाघों की मौत की जांच के सर्वाधिक लंबित मामले मप्र में हैं। इनकी संख्या आठ है। वर्ष 2014 में हुई बाघों की गिनती में मप्र में 308 बाघ होना सामने आया था। वहीं बाघों की अगली गणना दिसंबर 2017 में होनी है।
मप्र में पिछले दो सालों में 39 बाघों की मौत हुई है। इनमें से एक दर्जन बाघों का शिकार किया गया, जबकि शेष को प्राकृतिक व अन्य मामलों में मौत बताई गई। देश में इतनी बड़ी संख्या में बाघों की मौत सिर्फ मप्र में हुई है। यही स्थिति शिकार की भी है। मप्र में शिकार के 12 मामले भी देश में सर्वाधिक हैं। वर्ष 2016 में मप्र के अलावा उत्तराखंड में भी छह बाघों का शिकार हुआ, लेकिन प्रदेश में जहां 24 बाघों की मौत हुई उस तुलना में वहां नौ बाघ मारे गए। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में जहां मप्र में छह बाघों के शिकार हुए थे वहीं अगले साल यानी वर्ष 2016 में भी इतने ही बाघों को शिकारियों ने मौत के घाट उतार दिया। जिसका सीधा मतलब यह है कि प्रदेश का वन विभाग का अमला शिकार रोकने में पूरी तरह से असफल रहा है।
रिपोर्ट से इतर देखें तो प्रदेश में पिछले 15 महीने में 37 बाघों की जान चली गई। सबसे दुख की बात यह है कि बाघों की मौत ट्रेनों की चपेट में आने से हो रही है। मिडघाट-बुदनी सेक्शन में 23 मई 2015 को पहली बार बाघ की मौत ट्रेन की चपेट में आने से हुई। उसके बाद से 01 अप्रैल 2017 तक दो बाघ और एक तेंदुए की मौत इसी सेक्शन में ट्रेन की चपेट में आने से हुई। फिर भी कॉरिडोर का काम अटका है, वन विभाग ने जाली लगाने में देरी की। शहडोल, बालाघाट, छिंदवाड़ा, कान्हा व पेंच टाइगर रिजर्व में एक दर्जन बाघों की मौत करंट लगने से हुई। कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना और पेंच टाइगर रिजर्व में करीब 10 बाघों की मौत आपसी लड़ाई में हुई। मई-जून 2015 में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में बाघों का शिकार हुआ। बाघों की हड्डी और खाल दिल्ली व छिंदवाड़ा के नवेगांव थाने से जब्त की। इसी मामले में दिल्ली से एक आरोपी जे तमांग को गिरफ्तार किया। जिसके खिलाफ इंटरपोल ने नोटिस जारी किया। दरअसल प्रदेश के वनविभाग में मैदानी अमला आवश्यकता से काफी कम है। मैदानी अमला अफसरों की चाकरी में लगा हुआ है। इससे वनक्षेत्रों में वन्यप्राणियों की निरंतर निगरानी नहीं हो पा रही है। ऐसे में वन्यजीव हादसों के शिकार हो रहे हैं। प्रदेश के वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार करते हैं कि बाघों की प्राकृतिक मौतों पर रोक नहीं लगा सकते। शिकार और आपसी लड़ाई को कम करने के लिए हर स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। बरखेड़ा-बुदनी के बीच ग्रीन कॉरिडोर के लिए स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने अनुमति दे दी है। सेंट्रल वाइल्ड लाइफ बोर्ड के पास मामला है। आगे और कोशिश की जाएगी कि बाघों की मौत न हो।
तीन साल बाद पकड़ाए शिकारी
मप्र वन विभाग की सतर्कता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां शिकार करने के बाद शिकारी वर्षों तक उनकी गिरफ्त से बाहर रहते हैं। कई शिकारी तो आज तक हाथ नहीं लगे हैं। अभी हाल ही में वर्ष 2012-13 में एक बाघ और तेंदुए का शिकार करने वाले शिकारियों को गिरफ्तार किया गया है। इनको गिरफ्तार कर वन विभाग अपनी शेेखी बघार रहा है। जबकि मध्यप्रदेश राज्य स्तरीय टाइगर स्ट्राइक फोर्स कुछ दिनों से वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो एवं एनटीसीए से मिले अलर्ट के आधार पर कटनी, जबलपुर, सतना और समीपवर्ती क्षेत्रों में बाघ शिकारियों की तलाश में एक अभियान चला रही है। इसी अभियान ने इन शिकारियों तक एसटीएफ को पहुंचाया। वन विभाग की राज्य स्तरीय टाइगर स्ट्राइक फोर्स ने सतना जिले के उचेहरा से बाघ के शिकार में लिप्त कुख्यात शिकारी रोकिन, तिलिया और त्यौहारी को गिरफ्तार कर उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। पिछले 3 साल से सीबीआई इन शिकारियों की तलाश कर रही थी। एसटीएफ ने गिरफ्तारी के बाद इसकी सूचना सीबीआई की मुम्बई शाखा को दी।
-बिन्दु माथुर