हंगामा क्यों है बरपा?
17-Apr-2017 06:12 AM 1235000
स्वच्छ भारत अभियान के तहत खुले में शौच से मुक्ति के लिए चलाए गए कार्यक्रम को औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त बताने पर आईएएस अफसर दीपाली रस्तोगी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन पर शासन की नीति के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर आलेख लिखने को लेकर कार्रवाई हो सकती है। पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा ने तो रस्तोगी की टिप्पणी को सर्विस रूल्स का उल्लंघन करार दिया है। वहीं प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिका में दीपाली रस्तोगी के लेख को लेकर हंगामा सा मचा हुआ है। जबकि उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान की आलोचना नहीं की है। उन्होंने तो यह बताने की कोशिश की है कि हम भारतीय पश्चिमी योजनाओं का अंधानुकरण कर रहे हैं, जबकि हमें किसी भी योजना को अपने देश की स्थिति और परिस्थिति के अनुसार लागू करना चाहिए। वर्तमान में आदिवासी विकास आयुक्त के पद पर कार्यरत दीपाली रस्तोगी के इस लेख पर हंगामा करने से पहले हमें यह सोचने की जरूरत है की क्या पश्चिम की नकल हमारे लिए उपयोगी है। विकास करना मनुष्य की प्रवृति है, लेकिन वही विकास बेहतर होता है जो संतुलित हो। संतुलित विकास तभी होगा जब वह क्षेत्रानुकूल हो, जो प्रकृति संरक्षक हो। लेकिन देखा यह जा रहा है कि हमारी विकास योजनाएं धरातल पर गए बिना बन रही हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि वे अधर में ही लटकी रह जाती हैं। अगर मप्र की बात करे तो यहां खुले में शौच मुक्त गांव या शहर की कल्पना बेमानी लगती है। क्योंकि आज भी प्रदेश में 4.75 लाख आबादी सिर पर पानी ढोने को मजबूर है। गांवों में लोग कई-कई किलोमीटर से लोग पीने का पानी ढोकर लाते हैं। ऐसे में ये लोग उस पानी का इस्तेमाल शौचालय में कैसे कर सकते हैं। प्रदेश में कुल 1.28 लाख ग्रामीण बसाहटें है, जिनमें से 1.05 पूर्ण बसाहट हैं। 9 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को ही नलों के माध्यम से पानी मिल पाता है। जबकि 38 फीसदी ग्रामीण आबादी स्पॉट नलजल योजनाओं से लाभांवित होती है। विभागीय अफसरों के मुताबिक फरवरी तक आधे से ज्यादा हैंडंपप सूख जाते हैं और 70 फीसदी नलजल योजनाएं ठप हो जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना पानी के लोग घरों में शौचालय का उपयोग कैसे करेंगे। कई गांवों में ग्रामीणों का पूरा दिन स्वयं और मवेशियों के लिए पानी की व्यवस्था करने में बीत जाता है। हैंडपंप या स्पॉट नलजल योजना से सिर पर पानी लाकर शौचालय इस्तेमाल करने की अपेक्षा ग्रामीण खुले में शौच जाना उचित मान रहे हैं। दीपाली रस्तोगी ने अपने लेख में इसी समस्या को अपने अंदाज से उल्लेखित किया है। दरअसल, हम पश्चिमी देशों की देखा-देखी वहां की योजनाओं को अपने यहां थोपने में लगे हुए हैं। जबकि वहां की स्थिति-परिस्थिति अलग है और हमारी अलग। शौचालय निर्माण हो या प्रधानमंत्री आवास योजना, स्मार्टसिटी, सुपरकॉरीडोर, बुलेट ट्रेन या इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन सभी योजनाओं का क्रियान्वयन क्षेत्र की स्थिति और परिस्थिति के अनुसार हो।  दरअसल, भारत में विकास थोपने की परंपरा है। स्वच्छ भारत अभियान की बात करें तो मध्य प्रदेश में सरकारी मशीनरी इस जनता पर थोप रही है। इसे सफल बनाने के लिए नए-नए प्रयोग कर रही है। कहीं लोगों को प्रताडि़त किया जा रहा है, कहीं पोस्टर लगा डराया जा रहा है कि अगर करोगे खुले में शौच-जल्दी दी जाएगी मौत, कहीं घर में शौचालय न बनवाने वाले लोगों के खिलाफ कई सख्त कदम उठाए जा रहे हैं, गरीबी रेखा के नीचे वाले लोगों का राशन बंद किया जा रहा है, बंदूक के लाइसेंस के साथ भी घर में शौचालय की शर्त जोड़ी गई है, खुले में शौच करने वालों का पीटा जा रहा है। क्या महात्मा गांधी ने स्वच्छ भारत का सपना इसी आधार पर देखा था। सरकार को यह भी सोचने की जरूरत है कि जिस देश में लोगों के पास खाने के लिए पैसे नहीं है उस देश में शौचालय की कल्पना क्यों? प्रकृति को सबसे अधिक नुकसान आईएएस दीपाली ने लिखा कि, गोरों के कहने पर पीएम मोदी ने खुले में शौचमुक्त अभियान चलाया, जिनकी वॉशरुम हैबिट भारतीयों से अलग है। उन्होंने लिखा कि अगर गोरे कहते हैं कि खुले में शौच करना गंदा है तो हम इतना बड़ा अभियान ले आए लेकिन हम मानते हैं कि टायलेट पर पानी की जगह पेपर का उपयोग करना गंदा होता है तो क्या वे कल से पानी लेकर टायलेट जाने लगेंगे? भाजपा सांसद प्रहलाद पटेल भी आईएएस दीपाली रस्तोगी की बात का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि मैंने भी इस मामले को संसद में उठाया था। उन्होंने भी कहा था कि पानी नहीं है तो शौचालयों का क्या औचित्य है? आज कई गांव और वहां के स्कूलों में शौचालय बनाए गए हैं, लेकिन वे गंदगी का भंडार बनकर रह गए हैं। सिर्फ आंकड़े दिखाने के लिए हम दनादन शौचालय बना रहे हैं। जबकि स्थिति यह है कि उससे निकलने वाली गंदगी के निस्तार के लिए हमारे पास कोई योजना नहीं है। शहरों और गांवों के सीवेज का पानी जाकर नदियों में मिल रहा है। इससे प्रकृति का सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। जिस तरह पश्चिमी देशों में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हुई है उसी तरह अब हमारे यहां भी प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के लिए पश्चिमी योजनाओं को अपनाया जा रहा है। -भोपाल से कुमार राजेन्द्र
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^