22 साल से गिरवी है नदी
17-Apr-2017 06:09 AM 1234824
छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी को यूं तो अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के जमाने में एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया था लेकिन तब सरकार का विरोध करने वाली राज्य की भाजपा सरकार के मुखिया डॉ. रमन सिंह इस पर चुप्पी साधे हुये हैं। छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी को गिरवी रखे जाने की फाईल छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्रिमंडल में कैद है। विधानसभा की लोक लेखा समिति ने जो अनुशंसाएं की थी, उस पर विधि मंत्री और जल संसाधन मंत्री फाइल-फाइल खेलते रहे। दावा ये किया जा रहा है कि मंत्रिमंडल के निर्देशानुसार अग्रिम कार्रवाई की गई है लेकिन यह कार्रवाई क्या है, यह बताने की हालत में कोई नहीं है। गौरतलब है शिवनाथ नदी के 23 किलोमीटर हिस्से को रेडियस वाटर नामक निजी कंपनी को 22 सालों के लिये गिरवी रखने का समझौता तत्कालीन मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर के प्रबंध संचालक गणेश शंकर मिश्रा ने 5 अक्टूबर 1998 को किया था। देश और दुनिया भर में नदी को बेचे जाने को लेकर हंगामा हुआ। भाजपा ने भी तत्कालीन दिग्विजय सिंह और बाद में अजीत जोगी की सरकार के खिलाफ खूब हंगामा किया। इसके बाद सरकार ने मामले की जांच विधानसभा की लोक लेखा समिति से करवाने की घोषणा की। रमन सिंह की सरकार में लोक लेखा समिति ने 16 मार्च 2007 को जब विधानसभा में जांच रिपोर्ट भी पेश कर दी लेकिन पिछले 10 सालों से लोक लेखा समिति की अनुशंसा को जाने किस दबाव और प्रलोभन में आज तक दबा कर रखा गया है। 16 मार्च 2007 को लोक लेखा समिति ने तीन प्रमुख अनुशंसाएं की थीं- रेडियस वॉटर लिमिटेड के साथ मध्य प्रदेश औद्योगिक केन्द्र विकास निगम लिमिटेड, रायपुर (वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक केन्द्र विकास निगम लिमिटेड, रायपुर) के मध्य निष्पादित अनुबंध एवं लीज डीड को, प्रतिवेदन सभा में प्रस्तुत करने के एक सप्ताह की अवधि में, निरस्त करते हुए समस्त परिसम्पत्तियों एवं जल प्रदाय योजना का अधिपत्य छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम द्वारा वापस ले लिया जाए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि- जल प्रदाय योजना की परिसम्पत्तियां निजी कंपनी को लीज पर मात्र एक रुपये के टोकन मूल्य पर सौंपा जाना तो समिति के मत में ऐसा सोचा समझा शासन को सउद्देश्य अलाभकारी स्थिति में ढकेलने का कुटिलतापूर्वक किया गया षडय़ंत्र है, जिसका अन्य कोई उदाहरण प्रजातांत्रिक व्यवस्था में मिलना दुर्लभ ही होगा। लोक लेखा समिति ने सिफारिश की थी कि रेडियस वाटर लिमिटेड के साथ मध्य प्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम लिमिटेड रायपुर (वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम) के तत्कालीन प्रबंध संचालक गणेश शंकर मिश्रा द्वारा किये गये अनुबंध एवं लीज-डीड को प्रतिवेदन सभा में प्रस्तुत करने के एक सप्ताह की अवधि में निरस्त करते हुए समस्त परिसम्पत्तियां एवं जल प्रदाय योजना का आधिपत्य छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकाल निगम द्वारा वापस ले लिया जाए। इस आपराधिक षड्यंत्र में सहयोग करने और छलपूर्वक शासन को क्षति पहुंचाते हुए लाभ प्राप्त करने के आधार पर रेडियस वॉटर लिमिटेड के मुख्य पदाधिकारी के विरुद्ध भी अपराध दर्ज कराया जाए। सिफारिश में कहा गया था कि मध्य प्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम लिमिटेड, रायपुर एवं जल संसाधन विभाग के तत्कालीन अधिकारी जिनकी संलिप्तता इस सम्पूर्ण षड्यंत्र में परिलक्षित हो, इस संबंध में भी विवेचना कर उनके विरुद्ध भी कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाही एक माह की अवधि में आरंभ की जाए। लेकिन कांग्रेस सरकार में शिवनाथ नदी को गिरवी रखे जाने के मुद्दे पर हाय-तौबा मचाने वाली भाजपा जब सरकार में आई तो उसने एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई करने की विधानसभा की लोक लेखा समिति की रिपोर्ट अभी भी धूल खा रही है और शिवनाथ नदी अनाथ बनी हुई है। 10 साल से फाइलों में कैद दस्तावेज बताते हैं कि 16 मार्च 2007 को विधानसभा में पेश की गयी लोक लेखा समिति की रिपोर्ट 21 मार्च 2007 को प्राप्त होती है और इसे विधि विभाग के माध्यम से 4 महीने बाद 19 जुलाई 2007 को महाधिवक्ता, उच्च न्यायालय की राय के लिये भेजा गया। उच्च न्यायालय के महाधिवक्ता को इस फाइल पर अपनी राय देने में 7 महीने लगे और सरकार को 11 फरवरी 2008 को उनकी राय मिल गई। इसके महीने भर बाद 6 मार्च 2008 को इस मामले को मंत्रिमंडल में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया गया। लेकिन तमाम प्रक्रियाओं के बाद भी नदी की मुक्ति की फाइल पिछले 10 साल से फाइलों में ही कैद है। -रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला
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