17-Apr-2017 05:57 AM
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ग्वालियर, चंबल संभाग में अवैध खनन रोकने के लिए दो साल से एसएएफ के 120 जवान तैनात किए गए हैं, लेकिन खनन माफिया आज भी बेखौफ होकर अवैध खनन कर रहे हैं। आलम यह है कि भिंड जिले में संचालित रेत खदानों पर सशस्त्र माफियाओं द्वारा थ्रीडी से रात में खनन कराया जा रहा है। खदानों से रात 8 बजे से अल सुबह 5 बजे तक रेत निकाली जाती है। जबकि आधी रात के बाद ट्रक तथा डंपरों के माध्यम से रेत का परिवहन किया जा रहा है।
भिंड जिले में रौन क्षेत्र के इंदुरखी व निवसाई रेत खदान पर हथियारबंद धड़ल्ले से रात में खनन कर रहे हैं। वहीं अमायन थाना अंतर्गत कछपुरा एवं रुहेरा रेत खदान पर भी इसी तर्ज पर सशस्त्र माफिया रेत निकालने में लगे हुए हैं। रौन क्षेत्र से एक रात में 60 से 70 ट्रक तथा डंपर दोनों रेत खदानों से रेत भरकर गुजरते हैं, जबकि अमायन क्षेत्र की रेत खदान से 75 से 80 ट्रक व डंपर रेत ले जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि अवैध खननकर्ता किसी जेब में रख लेने वाली छोटी सी किसी चीज से नहीं बल्कि विशालकाय थ्रीडी के माध्यम से खनन करते हैं। बीहड़ी इलाकों में जिसके दौडऩे की गति महज 15 से 20 किमी प्रतिघंटा होती है। बावजूद इसके थ्रीडी मशीनों को पकड़ पाना प्रशासन के लिए मुश्किल भरा है। चंबल अभयारण्य से रेत उत्खनन रोकने के लिए आई 120 जवानों की पूरी की पूरी कंपनी पर सरकार हर महीने 50 लाख से अधिक का खर्च कर रही है। दो साल में इस कंपनी पर सरकार के 12 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं। इसके बाद पूरी की पूरी कंपनी के रहने और डाइट पर खर्च हो रहा है। तीसरा और सबसे बड़ा खर्च पेट्रोलिंग पर हो रहा है। लेकिन इस बल का वन विभाग न तो ठीक तरह से उपयोग कर पा रहा है और नहीं इस बल के आने के बाद माफिया को कोई फर्क पड़ा है। पूरी की पूरी एसएसफ मुरैना रेंज में रखी गई है।
चंबल अभयारण्य में तीन गेम रेंज हैं। इनमें से श्योपुर सह सबलगढ़ गेम रेंज, देवरी-मुरैना गेम रेंज और भिंड सह अंबाह गेम रेंज शामिल हैं। तीनों ही गेम रेंज के तीन अधीक्षक हैं। जिनमें श्योपुर अधीक्षक, मुरैना अधीक्षक और भिंड अधीक्षक हैं। इन तीनों ही गेम रेंज में खनन रोकने साल 2014 में वन विभाग को 120 जवानों की एक एसएएफ कंपनी मिली, लेकिन यह सारे जवान देवरी गेम रेंज में ही तैनात हैं। श्योपुर और भिंड गेमरेंज में एक भी एसएएफ का जवान नहीं है। ऐसे में यहां पर पेट्रोलिंग या आकस्मिक कार्रवाई के दौरान वन कर्मी अकेले पड़ जाते हैं।
अभयारण्य की 3 गेम रेंज में से दो पूरी तरह खाली हैं। ऐसे में रेत माफिया वन विभाग के अधिकारियों पर जानलेवा हमले कर रहा है और आम लोगों की जान का दुश्मन भी बन गया है। रेत माफिया पिछले एक माह में कई हमले कर चुके हैं। 19 मार्च को भिंड के अटेर चौराहे पर वन विभाग के प्रभारी गेम रेंज ऑफीसर, 2 फॉरेस्ट ऑफीसर, 4 फॉरेस्ट गार्ड और एक ड्राइवर को पीटा और जीप पर ट्रक चढ़ाकर उन्हें मार डालने की धमकी भी दे डाली। उसके बाद भी लगातार माफिया खनन रोकने वालों पर हमले कर रहे हैं। इन घटनाओं के बाद फिर से एक बार वही सवाल खड़ा हुआ कि आखिर 120 जवानों की हथियारबंद एसएएफ कंपनी का चंबल अभयारण्य में क्या उपयोग हो रहा है।
जितने पुल सिंध पर उतने और कहीं नहीं
भिंड जिले में रौन, असवार, लहार, ऊमरी एवं नयागांव थाना क्षेत्र में सिंध नदी की रेत खदानों पर खनन माफिया ने आधा दर्जन कच्चे पुल निर्माण कर लिए हैं। एक ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री अवैध खनन व परिवहन के खिलाफ सख्त निर्देश दे रहे हैं। दूसरी ओर रेत के खननकर्ता नियम व कानून को दरकिनार कर पॉकलेन, थ्रीडी मशीनों के अलावा पनडुब्बियों से रेत निकाल रहे हैं। इतना ही नहीं रेत का परिवहन कच्चे पुलों के माध्यम से किया जा रहा है। शासन को जहां नदी पर एक पुल बनाने में कई महीनों का समय लगता है वहीं रेत खननकर्ता 24 घंटे में पुल बनाकर तैयार कर देते हैं। हैरानी की बात ये है कि अवैध खनन, परिवहन एवं कच्चे पुल निर्माण को लेकर खनिज विभाग पूरी तरह से अनजान बना है। जिले में सिंध नदी में संचालित तीन दर्जन रेत खदानों पर पनडुब्बियों ने 35 से 40 फीट गहरे गड्ढे कर दिए हैं। यहां बता दें कि पनडुब्बी पानी के अंदर से रेत निकालकर बाहर फेंकने का काम करती हैं। ककहरा, बिरौना, टेहनगुर, धौर, मटियावली, इंदुरखी, गिरवासा आदि खदानों पर रेत से भरे वाहनों के आवागमन के लिए अवैध कच्चे पुल तैयार कर लिए गए हैं। लेकिन इसे रोकने वाला कोई नहीं है।
-राजेश बोरकर