03-Apr-2017 08:24 AM
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अमेरिका में नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कारण युवा संकट में है। खासकर भारतीय मूल के युवाओं की नागरिकता दहशत में है। अमेरिका जिस रास्ते जा रहा है वह भयभीत करने वाला है। अमेरिका में पिछले डेढ़ महीने में नस्लीय हिंसा और बदसलूकी की आधा दर्जन से अधिक घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जिसमें दो भारतीयों की मौत हो गई है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसकी घोर निंदा की है, लेकिन इसके पीछे चुनाव पूर्व के उनके भाषण वजह बने हुए हैं।
ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान ही लोगों से वादे किए थे कि वह अगर सत्ता पर काबिज हुए तो अमेरिका का प्रारूप बदल देंगे। उनके चुनावी वादों में एक वादा यह भी था कि वे सत्ता पर काबिज होने के बाद बाहरी मुल्कों से आकर अमेरिका में रोजगार करने वालों पर नकेल कसेंगे, ताकि अमेरिकी युवाओं को रोजगार मिल सके। ट्रंप के इस तरह के बायानों के बाद से बाहरी लोगों के प्रति अमेरिकी युवाओं में नफरत उभरनी शुरू हो गई हुई। हाल ही में अमेरिका में हुईं दो भारतीयों की मौत इसका ताजा उदाहरण है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों अमेरिका में तीन भारतीयों पर हमले हुए जिनमें से दो लोगों की मौत हो चुकी है और तीसरा घायल हो गया है। पहले इस तरह की घटनाएं एक समुदाय विशेष के साथ होती थीं। लेकिन अब इसने बढ़कर आक्रामक रूप ले लिया है। हाल ही में हैदराबाद के रहने वाले 32 साल के श्रीनिवास कुचिभोटला की अमेरिका में गोली मारकर हत्या कर दी गई। अमेरिका के कनसास शहर के बार में श्रीनिवास अपने दोस्त आलोक मदसानी के साथ बैठे थे। तब अचानक अमेरिका के एक रिटायर्ड नौसैनिक ने यह कहते हुए उन दोनों पर गोली चलाई कि निकल जाओ मेरे देश से इस हमले में श्रीनिवास की मौके पर ही मौत हो गई।
दूसरी घटना में भारतीय मूल के व्यवसायी हार्निश पटेल की उनके साउथ कैरोलीना के घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई है। पटेल की यह हत्या, ट्रंप के उस बयान के दो दिन बाद हुई है जिसमें उन्होंने कनसास बार में भारतीय इंजीनियर श्रीनिवास की हत्या को घृणा और बुराई से भरा कृत्य बताया था। एक नए मामले में 39 साल के सिख को एक शख्स ने गोली मार दी, जिसकी वजह से वह गंभीर रूप से जख्मी हो गया। गोली मारने वाला सिख शख्स को कह रहा था कि तुम अपने देश वापस चले जाओ।
माना जा रहा है कि ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से अमेरिका में घृणा से उपजी हिंसा लगातार बढ़ रही है। वहां रह रहे लोगों को आए दिन नस्ली टिप्पणियों और अपने देश वापस लौट जाने की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। जानकारों का मानना है कि बराक ओबामा के शासन में नस्लीय हिंसा में कुछ कमी आई थी। दरअसल अमेरिका में ओबामा की जीत ही नस्लीय हिंसा के खिलाफ जीत थी। बहरहाल इन घटनाओं से अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों और भारत सरकार की चिंता बढ़ी है। इन घटनाओं के बाद भारत सरकार ने विदेश सचिव और वाणिज्य सचिव को अमेरिकी प्रशासन से बातचीत के लिए भेजा और उन्हें आश्वासन मिला है कि भारतीयों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाएगा। लेकिन देखा यह जा रहा है कि अमेरिका में विदेशियों पर निरंतर हमले हो रहे हैं या फिर उनको नीचा दिखाया जा रहा है।
दरअसल ट्रंप के चुनावी बयानों के बाद उन्होंने विदेशियों के प्रति जो नीतियां अपनाईं उससे अमेरिकी नौजवानों में यह बात घर कर गई कि विदेशी वाकई अमेरिका में आकर अमेरिकी नौजवानों के लिए बेरोजगारी पैदा कर रहे हैं। जितनी जल्दी विदेशी यहां से चले जाएंगे उतनी जल्दी वहां बेरोजगारी खत्म हो जाएगी। उन्होंने पहले वीजा नियमों को सख्त किया। कुछ मुस्लिम देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर प्रतिबंध लगाया। हालांकि ट्रंप प्रशासन के फैसलों के खिलाफ अमेरिका में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हुए। जानकारों का मानना है इस तरह बाहरी लोगों को डरा-धमका या फिर उन पर हिंसक हमले और नस्ली टिप्पणियां कर उन्हें वापस लौटने को बाध्य किया जाना किसी भी रूप में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।
ट्रंप की पार्टी भी उनके खिलाफ
डोनाल्ड ट्रंप जिस पार्टी से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रहे हैं, वह पार्टी यानी रिपब्लिकन पार्टी उनके खिलाफ है। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि ट्रंप और उनके सहयोगी अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान रूसी खुफिया एजेंसी से जुड़े हुए थे। इस बात के भी सबूत मिले है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को रूस ने प्रभावित करने की कोशिश की। ट्रंप पर लगे इस तरह के आरोपों और हाल ही में लिए गए उनके निर्णयों से रिपब्लिकन पार्टी की छवि खराब हुई है। इसलिए रिपब्लिकन पार्टी को कुछ सांसद ट्रंप के खिलाफ हैं। यह आशंका जताई जा रही है कि ट्रंप को आगे चलकर इन सबका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। ओबामा केयर की जगह नया हेल्थकेयर बिल पारित कराने की ट्रंप की कोशिशों को बड़ा झटका लगा है। पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा पाने की वजह से मतदान के ठीक पहले बिल को वापस ले लिया गया। बताया जाता है इससे ट्रंप को सबक मिलेगा।
-धर्मेंद्र सिंह कथूरिया