मिटाने का मंसूबा
20-Mar-2017 06:41 AM 1234794
सत्ता का अपना दर्द होता है। सर्व शक्तिशाली की बात जो मानता नहीं, उसे मिटा दिया जाता है। फिलहाल मिटाने का मंसूबा बन रहा है। इसे धमकी भी समझा जा सकता है। चीन की सीमा से लगा उत्तर कोरिया में कानून नाम मात्र का है। यहां सिर्फ उसकी चलती है जो सबसे ज्यादा क्रूर है। जिसके किस्सों से दुनिया वाकिफ है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में शुमार चीन और अमेरिका जैसे देशों को अक्सर मिटाने की धमकियां देता रहता है। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की चेतावनी के बावजूद हाइड्रोजन बमों का बार-बार परीक्षण करता रहता है। यहां के तानाशाह किम जोंग उन के खिलाफ अगर कोई देशवासी आंख दिखाता है तो उसे तोप से उड़ा देने, भूखे कुत्तों से नोचवा देने जैसी सजाओं से गुजरना पड़ता है। दरअसल उत्तर कोरिया अपने शासक के कारनामों के चलते अक्सर दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचता रहा है। वह अमेरिका की ताकत की परवाह किए बगैर उसे धमकाता रहता है। पिछले एक साल में उत्तर कोरिया अंतरराष्ट्रीय कानून की परवाह किए बगैर कई बैलेस्टेक मिसाईल का प्रक्षेपण और हाईड्रोजन बमों का परीक्षण किया है। जनवरी 2016 में उसने हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर विश्व को चिंता में डाल दिया था। तब से अब तक उसके कई हाईड्रोजन बम परीक्षण हो चुके हैं। इन परीक्षणों के बाद संयुक्त राष्ट्र ने उस पर कई तरह के कड़े प्रतिबंध लगा दिए। यूएन के प्रतिबंध के बावजूद वह मिसाइलों के परीक्षणों से बाज नहीं आ रहा है। उत्तर कोरिया के इस तरह के परीक्षणों से अक्सर दुनिया को खतरा रहता है। लेकिन अब उसकी मनमानी ज्यादा दिन नहीं चलने वाली है। क्योंकि उत्तर कोरिया के खिलाफ हाल ही में चीन और अमेरिका एक साथ हो गए हैं। इन दोनों देशों एक द्विपक्षीय संबंध पर सहमत हुए। संबंध के मुताबिक दोनों देश उत्तर कोरिया को बार-बार दुनिया के लिए खतरा पैदा करने वाले उसके परीक्षणों को रोकेंगे। दरअसल ये खतरे उत्तर कोरिया के बार-बार बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षणों की वजह से हैं। इससे पहले अमेरिका और जापान ने उत्तर कोरिया से अपील की थी कि वह अपना परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम छोड़ दे। उन्होंने प्योंगयांग को चेतावनी भी दी थी कि वह आगे कोई भड़काऊ काम न करे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षणों के बाद जो कठोर प्रतिबंध लगाए थे, उनके तहत उत्तर कोरिया अपने सभी परमाणु हथियारों और मौजूदा परमाणु कार्यक्रम को त्याग देगा। वर्ष 2017 में उत्तर कोरिया को 7.5 मिलियन टन से अधिक कोयले का निर्यात करने से प्रतिबंधित किया गया है। इस प्रतिबंध से 2015 की तुलना में उत्तर कोरिया के कोयले के निर्यात में 62 फीसदी की कमी आएगी। उस वक्त तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा था कि इस प्रतिबंध से यह स्पष्ट संदेश जाता है कि उत्तर कोरिया को अपनी उकसाने वाली कार्रवाई को समाप्त करना होगा। साथ ही अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पूरी तरह से पालन करना होगा। इसी साल फरवरी 2017 में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अनुरोध किया था कि वह उत्तर कोरिया के मिसाइल प्रक्षेपण पर चर्चा करने के लिए एक आपात बैठक बुलाए। तीन पीढिय़ों की तानाशाही झेल रहा यह राष्ट्र एक काल कोठरी की तरह है, जिसकी जनता अपने देश से बाहर की हवा या प्रकाश पाने से वंचित है। उत्तरी कोरिया, चीन का मित्र है जिसके कारनामों से कई दफा चीन को शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ती है, किन्तु चीन उसे छोड़ भी नहीं सकता क्योंकि उत्तरी कोरिया उसके हाथ में एक ऐसी हुंडी है जिसे वह कभी भी अमेरिका के विरोध में भुना सकता है। आज मुश्किल यह है कि जिन घोड़ों पर लगाम कसी होती है उस पर तो सब घुड़सवारी करने को तैयार रहते हैं किन्तु जिन पर लगाम नहीं होती उस पर घुड़सवारी करने से अच्छे-अच्छे सूरमा भी पीछे हट जाते हैं। ऐसे घोड़ों पर लगाम कसना आज महाशक्तियों की प्राथमिकता होनी चाहिए। सनकी और क्रूर है किम उत्तर कोरिया का युवा तानाशाह किम जोंग-उन बेहद सनकी और क्रूर है। दिसंबर 2011 में अपने तानाशाह पिता के निधन के बाद उन्होंने सत्ता हाथ में ले ली थी। तब से उत्तर कोरियाई जनता पर तरह-तरह के जुल्म ढा रहे हैं। गुस्सैल किम जोंग ने फरवरी में सेना प्रमुख रि यंग को फांसी पर लटका दिया था। डर था कि वह उसका तख्ता पलट देंगे। उन्होंने रक्षामंत्री को एंटी-एयर क्राफ्ट गन से उड़ा दिया था। रक्षामंत्री की गलती सिर्फ यह थी कि वे एक सैन्य कार्यक्रम के दौरान चंद सेकेंड सो गए थे। वर्ष 2011 में सत्ता संभालने के बाद किम जांग करीब सौ नेताओं और शीर्ष अफसरों को मौत के घाट उतार चुके हैं। संदेह था कि ये लोग उसकी सत्ता को चुनौती दे सकते हैं। आज के समय में उत्तर कोरिया की जेलों में करीब दो लाख लोग कैद हैं। उन्हें यातनाएं दी जाती हैं। करीब ढाई करोड़ की आबादी वाले उत्तर कोरिया में कोई पचास लाख लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। यह देखने वाली बात होगी कि अमेरिका और चीन क्या रणनीति बनाते हैं जिससे उत्तर कोरिया दुनिया के लिए खतरे पैदा करने वाले काम न करे और अंतरराष्ट्रीय कानून को मानने को बाध्य हो। -इन्द्र कुमार
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