तस्करों की ऐशगाह बनी खुली सीमा
01-Apr-2017 11:02 AM 1234798
भारत-नेपाल सीमा पिछले कई वर्षों से तस्करों की ऐशगाह बनी हुई है। मानव तस्करी का आलम यह है कि वर्ष 2010 से लेकर 2016 तक सुरक्षा एजेंसियों ने 331 लड़कियों और 165 नाबालिगों को तस्करों के चंगुल से छुड़ाया। सीमा के आर-पार रह रहे दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी के रिश्तों को देखते हुए यहां सीमा खुली हुई है। तस्कर इसका नाजायज फायदा उठाते रहे हैं। जंगली जीवों की खालों और अंगों की तस्करी के मामले तो आए दिन सामने आते रहते हैं। सीमा पर एनएसबी की कड़ी निगरानी को देखते हुए तस्कर अब पुलों के बजाए ट्यूब के जरिए नदी पार कर अपना धंधा चला रहे हैं। भारत-नेपाल की 250 किमी. की खुली सीमा मानव एवं वन्य जीव तस्करी के साथ ही अवैध आवाजाही का अड्डा बनी हुई है। तस्करों पर शिकंजा कसने के लिए पुलिस सशत्र सीमा बल (एसएसबी) एवं वन विभाग द्वारा चलाए जा रहे सघन चेकिंग अभियान एवं काबिंग के बाद भी आए दिन सीमा पर मादक पदार्थों व मानव तस्करी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। यह खुली सीमा तस्करों की ऐशगाह बनी हुई है। इस खुली सीमा का लाभ भले ही दोनों देशों के आम नागरिकों को न मिल पा रही हो लेकिन तस्कर इसका जमकर फायदा उठा रहे हैं। नेपाल के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से लड़कियों, महिलाओं, बच्चों की बड़े पैमाने पर खरीद फरोख्त करने में यह खुली सीमा तस्करों की मददगार बनी हुई है। आंकड़ों पर नजर डालें तो सीमा पर मानव तस्करी की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। वर्ष 2010 से लेकर 2016 तक सुरक्षा एजेंसियों ने 331 लड़कियों व 165 नाबालिग बच्चों को तस्करों के चंगुल से छुड़ाया। करीब 3280 बच्चों की सरकार द्वारा संचालित उज्जवला परियोजना के तहत अब तक काउंसलिंग हो चुकी है। अनुमान है कि सुरक्षा एजेंसियां जिन बच्चों व महिलाओं को छुड़ा पाने में सफल होती हैं वे कुल मानव तस्करी का 30 प्रतिशत ही होते हैं। ज्यातादार मजबूर व लाचार मानव संसाधन को देह मंडियों में पहुंचाने में तस्कर कामयाब हो जाते हैं। नेपाल के पश्चिमांचल, महाकाली, सेती आदि अंचल के साथ ही पिथौरागढ़ के नेपाल सीमा से लगे दूरस्थ क्षेत्रों में तस्करों की पंसदीदा जगह बनते जा रहे हैं। इसके अलावा अवैध आवाजाही के लिए भी यह सीमा कुख्यात बनती जा रही है। खुली सीमा का फायदा उठाकर बड़ी संख्या में नेपाल से लोग अवैध रूप से भारत पहुंचते हैं और कोई निगरानी तंत्र न होने से स्थाई रूप से यहीं बस जाते हैं। प्रदेश के पलायन ग्रस्त गांव इनके ठिकाने बन रहे हैं। आज भी बिना पहचान वाले लाखों नेपाली स्थायी रूप से भारत में रह रहे हैं। वर्ष 1950 की भारत नेपाल की शांति व मैत्री संधि अब भारत के लिए मुसीबत बनती जा रही है। नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री शमशेर जंग बहादुर राणा व नेपाल में भारतीय राजदूत चंद्रेश्वर प्रसाद नारायण सिंह ने तब जिस संधि पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, उसके अनुसार भारत व नेपाल के नागरिक सीमा से बिना बीजा, पासपोर्ट के आवागमन कर सकते हैं। नेपाल के नागरिक भारत में नौकरियां कर सकते हैं। संधि के अनुसार उन्हें यहां निवास करने की भी छूट है। इसी का कुछ चालाक नेपाली नागरिकों द्वारा नाजायज फायदा उठाया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार आज भारत में करीब दो लाख ऐसे लोग हैं जो नेपाल से भारत तो आए लेकिन वापस नेपाल नहीं गए। अकेले नेपाल से भारत आने वाले लोगों पर नजर डालें तो वर्ष 2013 में 94 हजार व 2014 में 1 लाख 30 हजार, 2015 में 1 लाख 40 हजार व 2016 में 8 लाख से अधिक नेपाली नागरिक भारत पहुंचे। आंकड़े कहते हैं कि नेपाल से भारत आने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन नेपाल वापस जाने वालों में कमी आई है। मजबूत निगरानी तंत्र के अभाव में अवैध आवाजाही व मानव तस्करी के साथ ही वन्य जीव तस्करी के लिए भी खुली सीमा का जमकर उपयोग हो रहा है। भारत-नेपाल सीमा की सुरक्षा के लिए भारत व नेपाल पुलिस के साथ ही एसएसबी व वन विभाग आपस में मिलकर असामाजिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने की जितनी कोशिश करते हैं तस्करों का गिरोह उतना ही अधिक सक्रिय होते जाता है। लगातार पकड़ा रहे तस्कर जंगली जानवरों का अवैध व्यापार बढऩे में खुली सीमा मददगार बनी हुई है। गंगोलीहाट से 10 किलो गुलदार की हड्डियों के साथ एक व्यक्ति पकड़ा गया था। टनकपुर के डांडा मिडार क्षेत्र से भी दो युवक तेंदुए की खाल के साथ पकड़े गए थे। उत्तराखण्ड से सटे नेपाली जिलों में लगातार इस तरह के मामले प्रकाश में आ रहे हैं। वन्य जीव तस्करी के कई मामलों में पुलिस इस बात की पुष्टि कर चुकी है कि वन्य जीव अंग भारत से नेपाल और फिर चीन तक पहुंच रहे हैं। पूर्व में नेपाल के डडेलधूरा में भारी मात्रा में गुलदार के अंगों के साथ तस्कर पकड़े गए थे। नेपाल से भारत लाई जा रही गुलदार की खाल व हड्डियां पिथौरागढ़ पुलिस ने पूर्व में झूलाघाट के पास पकड़ी। गैंडे की सींग के साथ कई लोगों को नेपाल पुलिस ने पकड़ा। पूर्व में हिम तेंदुएं की खाल व हड्डियों के साथ कई तस्कर पकड़े जा चुके हैं। -ऋतेन्द्र माथुर
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