ताजपोशी के मायने
03-Apr-2017 08:19 AM 1234829
उत्तराखण्ड में भाजपा ने स्थापित नेताओं को दरकिनार कर त्रिवेंद्र रावत को कमान सौंपी है। इसके स्पष्ट संकेत हैं कि पार्टी अब घिसे-पिटे नेताओं के बजाए ऊर्जावान युवा नेतृत्व को आगे लाना चाहती है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को कमान सौंपना भी इसी दृष्टि से देखा जा रहा है। त्रिवेंद्र की कैबिनेट में भी एकाध को छोड़कर बाकी सारे चेहरे युवा ही हैं। कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आए पांच नेताओं को कैबिनेट में शामिल कर पार्टी ने यह भी संदेश दिया है कि भाजपा का कोई पुराना नेता अपने भीतर अहम न पाले। आलाकमान जरूरत के अनुसार प्रदेश में नया नेतृत्व खड़ा कर सकता है। यहां तक की पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व की भावना के विरूद्ध भितरघात करने वालों को ठिकाने भी लगाया जा सकता है। दरअसल, प्रदेश में भाजपा की लीडरशिप खण्डूरी, कोश्यारी और निशंक के ही इर्द गिर्द घूम रही है। ऐसे में पार्टी का हर कार्यकर्ता कहीं न कहीं इस त्रिमूर्ति के ही दायरे में अपने को देखता रहा है। अब नई लीडरशिप के आगाज से कार्यकर्ताओं और नेताओं को संदेश गया है कि आने वाले समय में पार्टी नए तेवर और कलेवर में होगी। जिसमें कार्यकर्ताओं को अपनी पहचान कायम करने के लिए त्रिमूर्ति के चक्कर काटने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि राजनीतिक जानकार मानते हैं कि प्रदेश में यह नया प्रयोग समय के अनुसार भाजपा के लिए बेहतर तो है लेकिन लीडरशिप की मजबूती और कार्यकर्ताओं पर उसकी पकड़ से ही नए प्रयोग की सफलता और असफलता सामने आ पाएगी। विधानसभा चुनाव की आहट शुरू होते ही भाजपा ने यह संदेश दे दिया था कि अब पार्टी किसी नेता या चेहरे के बिना ही चुनाव में उतरेगी। राजनीतिक गलियारों में भाजपा का यह फैसला किसी के गले नहीं उतर रहा था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को ही पार्टी ने प्रमुख चेहरे के तौर पर सामने रखकर चुनाव लड़ा और बम्पर जीत हासिल की। इससे राज्य में पार्टी के लिए एक नए युग की शुरूआत करना बेहद आसान हो गया। इस नए युग में त्रिमूर्ति को कोई खास महत्व नहीं दिया गया है। संभव है कि आगामी दिनों में पार्टी लोकसभा चुनाव में भी नए चेहरों पर दांव लगाए। ऐसे में 2019 के उन सांसदों को सजग होने की जरूरत है। जिनका राजनीति में अभी लंबा कैरियर हो सकता है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की बात करें तो वह शुरू से ही लोप्रोफाइल नेता के तौर पर जाने जाते हैं। वह अपनी सांगठनिक क्षमता के चलते भाजपा में अपना बड़ा स्थान बना पाए हैं, जबकि खण्डूरी निशंक और कोश्यारी अपने-अपने बड़े कद के चलते पार्टी में स्थापित रहे हैं। इन तीनों नेताओं की राजनीति में कार्यकर्ताओं के साथ-साथ मीडिया का एक वर्ग भी जुड़ा रहा। लेकिन त्रिवेंद्र के बारे में कभी भी देखने को नहीं मिला कि मीडिया ने उनको ज्यादा महत्व  दिया हो। जबकि त्रिमूर्ति हर समय मीडिया की सुर्खिंयों में बनी रही। संभवत: त्रिवेन्द्र रावत की यही छवि भाजपा हाई कमान से जुडऩे में मुफीद रही। आज वह प्रदेश भाजपा में एक नए युग का आरंभ कर रहे हैं। अब देखना है कि वह प्रदेश भाजपा संगठन और सत्ता के साथ किस तरह से तालमेल बिठाकर काम करते हैं। जनता की अपेक्षाओं पर किस तरह से खरा उतरते हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने डोईवाला सीट से जीत दर्ज की है। उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हीरा सिंह बिष्ट को हराया। वे यहां से 2002 में पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद लगातार दो बार यहां से विधायक रहे हैं। 2007-2012 के बीच वे कृषि मंत्री भी रहे। संघ और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। रावत छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रभारी रह चुके हैं। उन्हें लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश का सह प्रभारी बनाया गया था। तब पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी इन्होंने चुनाव प्रचार में अहम भूमिका निभाई थी। जिसके बाद उन्हें झारखंड का प्रभारी बनाया गया। जहां चुनाव में पहली बार भाजपा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही। वह 1983 से लेकर 2002 तक संघ से जुड़े रहे। संघ प्रचारक के तौर पर काम करने की वजह से उन्हें संघ का बेहद करीबी माना जाता है। एक कदम से पूरे देश को संदेश... त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा आलाकमान ने स्पष्ट संदेश दिया है कि प्रदेश में जरूरत के अनुसार नया नेतृत्व पैदा किया जा सकता है। उचित मौका आने पर राष्ट्रीय नेतृत्व को आईना दिखाने वाले नेताओं को भी दरकिनार किया जा सकता है। त्रिवेंद्र  सिंह रावत की उम्र 56 साल है। उन्होंने उच्च शिक्षा गढ़वाल विश्वविद्यालय से ली है। एमए के बाद उन्होंने पत्रकारिता की शिक्षा भी ग्रहण की। त्रिवेंद्र सिंह रावत का परिवार एक आम पहाड़ी परिवार जैसा है। उनके पिता प्रताप सिंह रावत गढ़वाल रायफल के सैनिक रहे। उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध में भाग लिया था। त्रिवेंद्र के भाई आज भी गांव में संगध पौधों की खेती कर रहे हैं। आठ भाई और एक बहन में त्रिवेंद्र सबसे छोटे हैं। उनके एक भाई बृजमोहन सिंह रावत आज भी खैरासैंण स्थित गांव के पोस्ट ऑफिस में पोस्टमास्टर हैं। जो सपरिवार गांव में ही रहते हैं। उनके दो बड़े भाइयों का इस बीच निधन हो चुका है। उनका परिवार भी गांव में पैतृक घर में ही रहता है।  रावत के एक भाई का परिवार सतपुली कस्बे में रहता है। जबकि उनसे ठीक बड़े वीरेंद्र सिंह रावत जयहरीखाल में रह कर पहाड़ में नई तरीके की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। -रजनीकांत पारे
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^