क्यों बौखला रही ममता?
02-Feb-2017 10:26 AM 1234857
दिल्ली की गद्दी की चाह ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बावला कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुलेआम चुनौती देने वाली ममता अब इस कदर बौखला गई हैं कि वे चाहती हैं कि बंगाल में न तो भाजपा और न ही संघ का कोई नामोनिशान रहे। स्थिति यह बन गई है कि अब तो बंगाल के आमजन में यह चर्चा का विषय बन गया है कि लगता है, अब ममता डर गई हैं। एक व्यक्तिगत बातचीत में राज्य के वरिष्ठ मंत्री तक यह कहते सुने जा चुके हैं। दरअसल इस बात के पीछे संघ का वह कार्यक्रम है जो अभी उच्च न्यायालय की अनुमति के बाद मकर संक्रांति पर संपन्न हुआ है। मकर संक्रांति कार्यक्रम को लेकर करीब 2 महीने पहले ही संघ की ओर से पुलिस को अनुमति के लिए आवेदन पत्र भेजा गया था। लेकिन पुलिस ने उसे दबाकर रखा और उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। उधर संघ के कार्यकर्ताओं को बराबर चिंता बनी हुई थी क्योंकि प्रतिवर्ष संघ के सरसंघचालक की उपस्थिति में यह कार्यक्रम संपन्न होता रहा है। लेकिन कार्यक्रम को लेकर पुलिस का जिस तरह का रवैया अपनाए हुए थी वह कुछ ठीक नहीं लग रहा था और जैसा अंदेशा जताया जा रहा था, ठीक वैसा ही हुआ। कार्यक्रम के केवल एक सप्ताह पूर्व भू-कैलाश मैदान में पुलिस ने इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया। इसके पहले मोन्युमेंट मैदान में भी कार्यक्रम करने की अनुमति नहीं थी। फिर संघ ने सेना के अधीन ब्रिगेड परेड ग्राउंड की अनुमति मांगी तो प्रतिरक्षा विभाग ने तुरंत यह अनुमति दे दी। संघ को फिर से कोलकाता पुलिस के पास जाना पड़ा, क्योंकि कानूनन यह जरूरी था। लेकिन यहां भी ममता के दबाव में पुलिस आयुक्त राजीव कुमार ने यह कहते हुए अनुमति देने से इंकार कर दिया कि 14 जनवरी को लाखों लोग कोलकाता होकर गंगा सागर में पुण्य स्नान के लिए जाते हैं, इस समय अगर संघ का आयोजन हुआ तो कानून व्यवस्था बिगडऩे का खतरा है। ऐसे में राज्य प्रशासन खतरा मोल लेने के लिए तैयार नहीं है। पुलिस आयुक्त ने यह कहते हुए स्पष्ट शब्दों में सम्मेलन करने की अनुमति रद्द कर दी। संघ ने कोई रास्ता न देखकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। मामले पर कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जयमाल्य बागची ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस तरह से नागरिकों का लोकतांत्रिक अधिकार छीना नहीं जा सकता। इसलिए सरसंघ चालक मोहन भागवत की उपस्थिति में यह कार्यक्रम होगा। उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति बागची ने कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि इसके पहले संघ के सम्मेलन के विषय में 24 घंटे के अंदर जो रिपोर्ट पेश करने के लिए बताया गया था, वह काम आयुक्त ने खुद न करके अतिरिक्त आयुक्त को सौंपा था जो कि सरासर अदालत की अवमानना है। न्यायमूर्ति बागची ने पुलिस आयुक्त कुमार पर अदालत की अवमानना का मुकदमा भी दर्ज किया। गौरतलब है कि राजीव कुमार राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खास होने के कारण न तो किसी की सुनते थे और न ही किसी की परवाह करते थे। एक और घटना का उल्लेख करना जरूरी है। आसनसोल में केन्द्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के मामले में कोलकाता उच्च न्यायालय पहले भी पुलिस को फटकार लगा चुका है। ऐसे में अब राजनीतिक गलियारों से जो खबरें आ रही हैं उनकी मानें तो तृणमूल कांग्रेस में आपस में झगड़े हो रहे हैं। सुब्रत मुखर्जी जैसे मंजे हुए नेता भी नोटबंदी आंदोलन को लेकर ममता जहां पहुंची हैं, उसकी आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि ममता ने नोटबंदी आंदोलन को बेवजह इतना तूल दिया है। दीदी ममता की यह राजनीति न केवल तृणमूल को क्षति पहुंचायेगी बल्कि आगे चलकर वह पार्टी के भविष्य को खत्म भी कर सकती है। विरोध की दमनात्मक नीति राजनीति में विरोध करना कोई नई बात नहीं है। लेकिन किसी दल के द्वारा हरेक काम का विरोध किया जाए तो यह शंका जरूर पैदा करता है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि ममता अपने विरोधियों के प्रति एक सीमा से ज्यादा दुराभाव रखती हैं और समय-समय पर उन्होंने इसे साबित भी किया है। बात 14 मार्च, 2007 की है। पुलिस और माकपा के संयुक्त अभियान में नंदीग्राम में अनेक ग्रामवासियों की मौत हुई। तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा कि नंदीग्राम में सूर्योदय हुआ है। नंदीग्राम, जंगल महल जैसे कुछ स्थानों में माओवादियों की गतिविधि बढ़ी। विपक्षी नेता ममता बनर्जी ने उस समय कहा था कि राज्य में कहीं भी माओवादी नहीं दिखाई देते। नंदीग्राम में रास्ता रोकने से लेकर सिंगूर और धरमतल्ला के आमरण अनशन में ममता के साथ अतिवामपंथी भी नजर आते थे। जनता ने उन नेताओं को भूलना शुरू कर दिया है नहीं तो ममता नामक एक फासिस्ट सत्ता में आ जाएगी। पश्चिम बंगाल के वामपंथी बुद्धिजीवी, नवद्वीप में इस्कॉन के कीर्तन में भी सीआईए की साजिश और कलकत्ता के यूद्धी केक की दुकान नाहूम में भी फासिज्म की छाया देखते हैं। -कोलकाता से इन्द्रकुमार
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