भाजपा-शिवसेना में दूरियां बढ़ीं
15-May-2013 06:35 AM 1234772

देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी चुनाव के वक्त जब शिवसेना ने एनडीए से अलग हटकर यूपीए के प्रत्याशी मुखर्जी के पक्ष में मतदान किया था तब लगा था कि यह शिवसेना की अपनी कार्यशैली है। उस वक्त दोनों दलों के बीच मतभेद की खबरों को लालकृष्ण आडवाणी और बालासाहब ठाकरे ने ठुकरा दिया था। ठाकरे भाजपा से तमाम मतभेदों के बावजूद यह अच्छी तरह जानते थे कि महाराष्ट्र में भाजपा को साथ लेकर चलना आवश्यक है अन्यथा सत्ता मिलना संभव नहीं है। ठाकरे के दिवंगत होने के बाद एक तरफ जहां शिवसेना का करिश्मा समाप्त होता दिख रहा है वहीं दूसरी तरफ शिवसेना और भाजपा के संबंध अब पहले की तरह मजबूत नहीं रह गए हैं। बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जिन पर शिवसेना की संकीर्ण राजनीति भाजपा के लिए सरदर्द बनती जा रही है। उधर भाजपा का राष्ट्रीय चरित्र शिवसेना जैसी क्षेत्रीय पार्टी के दिल में खलबली पैदा कर रहा है। हाल ही में जब शिवसेना के मुखपत्र सामना में भाजपा को हिंदुत्व से न हटने की चेतावनी दी गई तो यह दरार और बढ़ी नजर आई। किंतु हद तो तब हो गई जब शिवसेना कर्नाटक में भाजपा की पराजय से खुश होती नजर आई और शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से खुश हैं क्योंकि सीमावर्ती इलाकों के लोगों के साथ सदैव नाइंसाफी करने वाली भाजपा सत्ता से अपदस्थ हो गई है।
उद्धव का यह खुशी जताना भाजपा को नगवार गुजरा है। इसे देखकर लग रहा है कि दशकों से भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन रखने वाली शिवसेना अब भाजपा से शायद किनारा करने का मन बना रही है। जबकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के साथ महाराष्ट्र में गठबंधन करने की सोच रही है। निश्चित रूप से यह राजनीतिक समीकरण शिवसेना द्वारा अपने नफा-नुकसान को ध्यान में रखकर किया जा रहा होगा। या यह भी हो सकता है कि भाजपा पर दवाब बनाने की यह कोई नई रणनीति होगी। जैसा कि विगत कुछ दिनों से ठाकरे परिवार के दो युवा नेता उद्धव और राज ठाकरे नजदीक आते दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि अतीत में हुए नुकसान और भविष्य के नफे का आकलन करके ही ठाकरे बंधु एक सुर में बोलते दिख रहे हैं। इसका मकसद भाजपा पर दवाब बनाकर रखा जाना भी बताया जा रहा है। मालूम हो कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के भतीजे राज ने वर्ष 2007 में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नाम से नई पार्टी बनाई थी। उद्धव को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से राज नाराज थे। काफी जद्दोजहद के बाद राज ने मनसे पार्टी का गठन किया। राज को उम्मीद थी कि उनकी तेजतर्रार छवि के कारण जल्द ही वह मनसे को शिवसेना का विकल्प बना देंगे। लेकिन, तब से मुंबई महानगरपालिका के दो और लोकसभा तथा विधानसभा का एक-एक चुनाव बीतने के बावजूद मनसे, शिवसेना का विकल्प नहीं बन सकी है। हां, अपने वोटबैंक के बल पर वह कुछ सीटें जीतने और शिवसेना को सत्ता से दूर रखने में कामयाब जरूर हुए हैं। अपने इस नुकसान को अब शिवसेना तो समझने ही लगी है, राज को भी महसूस हो गया है कि अपनी वर्तमान भूमिका में रहते हुए वह कांग्रेस का फायदा तो कर सकते हैं, लेकिन खुद सत्ता में नहीं आ सकते। इसके बजाय शिवसेना-भाजपा गठबंधन का अंग बनकर चुनाव लडऩे से समान विचारधारा वाले मतदाताओं का धु्रवीकरण तीनों दलों के लिए फायदेमंद हो सकता है। संभवत: यही सोचकर राज ने चचेरे भाई उद्धव और उनके बीच खाई को पाटने की शुरुआत कर दी है। उद्धव की बीमारी के वक्त वह उन्हें लेने अस्पताल जा पहुंचे थे। मतभेद दूर होने से उद्धव ठाकरे अपने दोनों हाथों में लड्डू देख रहे हैं। तेजतर्रार युवा मराठी नेता के रूप में राज का साथ मिलने से मराठी वोटबैंक भी मजबूत होगा। इसके बल पर शिवसेना वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर दावा भी ठोंक सकती है। बता दें कि हमेशा चुनाव के वक्त सीट बंटवारे को लेकर शिवसेना की भाजपा के साथ तकरार होती रही है। महाराष्ट्र की बात करें तो यहां शिवसेना शुरू से ही भाजपा को नजरअंदाज करती रही है। चुनाव के समय दोनों पार्टियों के बीच मतभेद अक्सर सुनने को मिलती रही थी। हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे से मुलाकात के बाद फिर सुलह हो जाती थी पर अब ठाकरे जीवित नहीं हैं इसलिए मतभेद बढ़ रहे हैं। बाल ठाकरे द्वारा अपनी मृत्यु के कुछ सप्ताह पूर्व भाजपा की वरिष्ठ नेता व सांसद सुषमा स्वराज को प्रधानमंत्री के लिए उपयुक्त उम्मीदवार बताना, गुजरात विधानसभा चुनाव में शिवसेना द्वारा अपने बलबुते चुनाव में उतरना और महाराष्ट्र में मनसे के साथ मिलन की तैयारी जैसे कदमों से यही लग रहा है कि शिवसेना जानबुझकर भाजपा में अंदरूनी कलह को बढ़ाकर उससे किनारा करने की फिराक में है। क्योंकि शिवसेना का एक ही लक्ष्य है कि महाराष्ट्र में अगर सत्ता मिले तो मुख्यमंत्री पद उसी के पास होना चाहिए जबकि दोनों पार्टियों के बीच यही करार रहता है कि जिसकी अधिक संख्या होगी मुख्यमंत्री पद उसके पास होगा। इस पद पर फिलहाल भाजपा निगाहें गड़ाए बैठी है। बाल ठाकरे के जाने के बाद भाजपा की यह महत्वाकांक्षा प्रबल हुई है।
मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^