01-May-2013 08:52 AM
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पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित चिट फंड घोटाले में अपने आपको कुछ ज्यादा ही पाक साफ घोषित करने की ममता बनर्जी की चाल अब उल्टी पड़ गई है। दरअसल ममता बनर्जी ने इस घोटाले के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराते हुए कहा था कि पूर्व में सत्तासीन वाममोर्चा सरकार और केंद्र सरकार ने इस घोटाले की नींव रखी थी, जिसके चलते गरीबों की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रुपए का डिपॉजिट डूबता नजर आ रहा है। उधर विपक्ष ने ममता के इन आरोपों को सिरे से नकार दिया है। विपक्ष का कहना है कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के सुदीप्तो सेन से नजदीकी रिश्ते हैं जो सारधा समूह के मालिक भी हैं। सारधा समूह ने ऊंची ब्याजदर का लालच देकर गरीबों से करोड़ों रुपए का डिपॉजिट लिया और बाद में खुद को दिवालिया घोषित कर दिया। उधर ममता बनर्जी का कहना है कि चिट फंड पर उनकी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। यह केंद्र के नियंत्रण में है और केंद्र निवेशकों के हितों की रक्षा करने में नाकामयाब रहा है। ममता बनर्जी का कहना है कि वे निवेशकों के हितों की रक्षा करने के लिए एक आर्डिनेंस लाना चाहती है, लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार को वर्तमान कानून वापस लेना होगा। ममता बनर्जी ऐसा कहकर केंद्र के पाले में ही गेंद डाल रही हैं। तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि सेबी जैसे बाजार नियंत्रकों का चिट फंड पर सीधा नियंत्रण रहता है जो कि केंद्र की संस्थाएं हैं इसी कारण राज्य सरकारें चाह कर भी चिट फंड कंपनियों को नियंत्रित नहीं कर पाती। लेकिन ममता बनर्जी केंद्र पर आरोप लगाकर सारधा समूह से उनकी पार्टी के लोगों की नजदीकियों को नजरअंदाज नहीं कर सकती। तृणमूल कांग्रेस के ही राज्यसभा सांसद कुनाल घोष न केवल सारधा समूह के मीडिया डिवीजन से जुड़े हुए थे बल्कि वे वहां से तनख्वाह भी लिया करते थे। अब घोष यह घोषणा कर रहे हैं कि उन्हें चिटफंड के बारे में कुछ नहीं मालूम।
इस बीच चौतरफा आलोचना झेल रही ममता बनर्जी की सरकार ने सेन को गिरफ्तार कर लिया है। उधर इस मामले में वित्तमंत्री पी. चिदंबरम की पत्नी का नाम आने से मामला संदिग्ध होता जा रहा है। सारधा समूह के एक निदेशक को भी गिरफ्तार किया गया है। ममता बनर्जी का कहना है कि चिटफंड के मामले में असली दोषी वाम पार्टियां हैं जिनके 33 वर्षीय शासनकाल में चिटफंड कंपनियों को फलने-फूलने का मौका दिया गया। उधर वामदलों ने इस आरोप को नकारते हुए कहा है कि वाम सरकार ने पश्चिम बंगाल में छोटे निवेशकों के हितों को साधे रखने के लिए एक कानून प्रस्तावित किया था लेकिन उस कानून को राष्ट्रपति का अनुमोदन नहीं मिल सका। इस राजनीतिक लड़ाई में उन लोगों की जान पर बन आई है जिन्होंने करोड़ों रुपए अपने पसीने की कमाई से सारधा चिटफंड कंपनी में निवेश कर दिए थे। कंपनी के राज्य में सभी आफिस बंद हो चुके हैं और चेक लगातार बाउंस हो रहे हैं। हालत यह है कि हताशा में लोग आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठाने लगे हैं। हाल ही में एक 50 वर्षीय महिला ने आत्मदाह करने की कोशिश की। इस महिला के 30 हजार रुपए इस कंपनी में निवेश किए हुए थे। सारधा समूह के कार्यालयों के आसपास प्रतिदिन हजारों की संख्या में एजेंट और निवेशक एकत्र होकर पैसों की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई कहीं नहीं हो पा रही है। राज्य में कई जगह सारधा समूह के आफिस में तोड़-फोड़ करने की शिकायतें भी मिली हैं। एक-दो स्थानों पर प्रदर्शनकारियों ने तृणमूल कांग्रेस के कार्यालयों के समक्ष भी प्रदर्शन किया और तोड़ फोड़ की। यह मामला अब प्रवर्तन निदेशालय सौंप दिया गया है।
ज्ञात रहे कि ममता बनर्जी स्वयं को गरीबों की मसीहा बताती हैं और लगातार यह घोषणा करती आई हैं कि उनके किसी भी कारोबारी घराने से ताल्लुकात नहीं हैं। लेकिन ममता का यह दावा खोखला ही साबित हुआ है। पिछले दिनों उनकी चित्रों की प्रदर्शिनी लगाई गई थी, जिसमें ज्यादातर चित्र हाथों-हाथ बिक गए। बताया जाता है कि ये चित्र उन्हीं कारोबारी घरानो ने महंगे दामों में खरीदे थे, जिन्हें ममता बनर्जी के इशारे पर सरकार का समर्थन मिलता रहा है। सुदीप्तो सेन से भले ही ममता बनर्जी की प्रत्यक्ष पहचान न हो लेकिन सुदीप्तो की सरकार में अच्छी खासी पकड़ थी। जिसका फायदा उठाकर वह इतना बड़ा घोटाला करने में कामयाब रहा। इस बीच भोले-भाले निवेशकों को लूटने वाली कंपनी पर लगाम लगाने में बंगाल सरकार की असफलता का दंश निवेशकों को झेलना पड़ रहा है।
पश्चिम बंगाल में सारधा चिट फंड नाम की कंपनी ने साबित कर दिया है कि भोले भाले निवेशकों को लूटने वाली कंपनियों पर लगाम लगाने में न तो राज्य सरकारें कुछ कर पा रही हैं और न ही केंद्र। पिछले तीन वर्षो के भीतर निवेशकों को चूना लगाने की देश भर में लगभग दर्जन भर घटनाओं के सामने आने के बाद भी केंद्र सरकार सख्ती नहीं दिखा पा रही है। हालत यह है कि वित्तीय अपराध करने वाली इन कंपनियों की छानबीन के लिए गठित गंभीर धोखाधड़ी जांच विभाग [एसएफआइओ] में नियुक्ति की कोई नीति भी नहीं तैयार हो सकी है। एसएफआइओ में अधिकांश पद खाली पड़े हैं।
एसएफआइओ को मजबूत बनाने का जो वादा 14,000 करोड़ रुपये के सत्यम घोटाले के बाद किया गया था, वह सरकारी दफ्तरों में धूल खा रहा है। यह देश में सबसे बड़ा कॉरपोरेट घोटाला था। एक तरफ एसएफआइओ पर इस तरह के वित्तीय घपलों की जांच करने का दबाव बढ़ता जा रहा है, जबकि उसके पास जांच अधिकारियों की नितांत कमी है। कंपनी कार्य मंत्रालय [एमसीए] के आंकड़ों के मुताबिक एसएफआइओं के कानूनी विभाग में आवश्यकता के महज 10 फीसद कर्मचारी ही कार्यरत हैं। प्रशासनिक स्तर के 40 फीसद पद खाली पड़े हुए हैं। एमसीए की तरफ से अभी तक इन खाली पदों को भरने की कोई नीति ही तैयार नहीं की जा सकी है।