कब मिटेगी लालच की भूख!
01-Apr-2017 10:58 AM 1234848
वर्ष 2015 में अपनाए गए 169 टिकाऊ विकास लक्ष्यों के साथ दुनिया से वर्ष 2030 तक गरीबी और भूख को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है। भारत ने इसके लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (जिसके तहत 9.94 करोड़ परिवार प्रति माह, प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम सब्सिडी वाले अनाज के हकदार हैं), मिड डे मील स्कीम (मध्यान्ह भोजन योजना, जिसके तहत प्राथमिक और ऊपरी प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों को मुफ्त भोजन प्रदान किया जाता है) और  भोजन व पोषण असुरक्षा से निपटने के लिए आंगनवाड़ी केंद्र (बच्चों के भूख और कुपोषण से निपटने के लिए स्थापित आंगनवाड़ी केंद्र्र) संचालित कर रखे है। लेकिन लगता नहीं है कि भारत अगले 13 सालों में गरीबी और भूख से मुक्त हो सकेगा। यह इसलिए कि गरीबी और भूख मिटाने के लिए जितनी भी योजनाएं हैं वे भ्रष्टाचार की जद में हैं। हैरानी की बात यह है की हमारी लालच की भूख ने बच्चों के निवाले यानी मिड डे मील योजना को भी निगलना शुरू कर दिया है। अभी तक मिड डे मील के तहत पोषण आहार में भ्रष्टाचार के मामले सामने आते थे, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा मिड-डे मील योजना को आधार से जोड़े जाने के बाद तीन राज्यों से भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। न स्कूल में नामांकन और न ही किसी कक्षा के छात्र, न रजिस्टर में नाम और न ही कभी स्कूल में झांकने आए। बावजूद इसके लाखों बच्चे मुफ्त का मिड डे मील खा रहे हैं। झारखंड, मणिपुर और आंध्र प्रदेश में सरकारें करीब 4.4 लाख ऐसे छात्रों को खाना खिला रही थीं, जो असल में हैं ही नहीं। ज्ञातव्य है कि मिड-डे मील योजना को 15 अगस्त, 1995 को देश में लागू किया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य बड़ी संख्या में बच्चों को स्कूल तक लाना और उन्हें कुपोषण से सुरक्षित रखना है। परंतु इसी महीने की शुरुआत में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मिड-डे मील के लिए छात्रों का आधार नंबर जरूरी कर दिया था। इस कदम का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ, मगर आंकड़ों से पता चला है कि इन तीन राज्यों के कई स्कूलों ने फर्जी छात्रों के नाम पर अतिरिक्त फंड्स मांगे। आंध्र प्रदेश के कुल 29 लाख आधार लिंक्ड छात्रों में से 2.1 लाख छात्र सिर्फ कागजों पर मौजूद थे। सरकार के संज्ञान में आने के बाद उनकी पात्रता रद्द कर दी गई। जितने आंकड़े आए हैं, उससे पता चलता है कि सरकारी स्कूलों में फर्जी पंजीकरण कराए गए थे। झारखंड में स्कूल रिकॉर्ड्स से 2.2 लाख छात्रों के नाम हटाए गए हैं। राज्य सरकार के स्कूलों में पंजीकृत 48 लाख छात्रों में से 89 प्रतिशत ने आधार नंबर दिए हैं, वहीं मणिपुर में मिले फर्जी छात्रों की संख्या 1,500 बताई गई है। यह कहानी इन राज्यों तक सीमित नहीं है। जब सभी राज्यों से डाटा आ जाएगा तो ये संख्या और बढ़ सकती है। दरअसल ज्यादातर राज्यों के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का हाल इतना बुरा है कि लोग अपने बच्चों को वहां भेजना ही नहीं चाहते। गांवों में भी इंग्लिश मीडियम प्राइवेट स्कूल धड़ाधड़ खुलने लगे हैं। ऐसे में जो भी थोड़ा समर्थ है, वह अपने बच्चों को इन्हीं स्कूलों में भेजता है। फिर भी सरकारी प्राइमरी स्कूल रजिस्टर पर फर्जी नामों के सहारे जिंदा हैं तो इसकी बड़ी वजह यह है कि इन स्कूलों के साथ हजारों शिक्षकों की रोजी-रोटी जुड़ी है। गांव के सरपंच वगैरह नहीं चाहते कि स्कूल बंद होने के कारण उनकी बदनामी हो, लिहाजा वे भी जैसे-तैसे स्कूल चलाए रखने के पक्ष में रहते हैं। मामले का खराब पक्ष यह है कि मिड डे मील और दूसरी स्कीमों में आने वाले पैसों की बंदरबांट के लिए भी स्कूल का रहना जरूरी है। मिड-डे मील योजना के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच खर्च में 60.40 का अनुपात होता है। उत्तरी-पूर्वी राज्यों में यह आंकड़ा 90.10 हो जाता है। भारत के 11.5 लाख स्कूलों में 13.16 करोड़ छात्र हैं, इनमें से 10.03 करोड़ छात्रों को 2015-16 में भोजन मिला। फर्जी छात्रों को बाहर करने के बाद सरकार का कितना पैसा बचेगा, एचआरडी मंत्रालय अभी इसकी गणना कर रहा है। आधार की नई योजनाओं के जुडऩे से कई राज बाहर आ रहे हैं। केरल के आम शिक्षा विभाग द्वारा 2014 में की गई एक पायलट स्टडी में पता चला कि वहां के स्कूलों में 3,892 शिक्षक ज्यादा थे। अब माना जा रहा है कि मिड-डे मील योजना के आधार से जुडऩे के बाद भ्रष्टाचार की सारी परते खुल जाएंगी। मिड-डे मील में लापरवाहियों की भरमार सामाजिक संस्थाएं या सुप्रीम कोर्ट भले ही मिड डे मील जैसी योजनाओं को आधार से जोडऩे के खिलाफ हैं लेकिन आधार से जुडऩे से इस योजना में व्याप्त भर्राशाही और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। ज्ञातव्य है कि मिड डे मील योजना देश ही नहीं बल्कि विश्व की सबसे बड़ी स्कूलों में खाना परोसने वाली योजना है। लेकिन कभी लापरवाही तो कभी भ्रष्टाचार के कारण यह योजना बच्चों का काल भी बन गई है। इस भोजन को खाने के कारण अक्सर बच्चों के बीमार व मौत के शिकार होने की खबर आती रहती है। -विशाल गर्ग
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^