लोगों को मुफ्तखोर बनाती सरकार
01-Apr-2017 09:45 AM 1234780
दिल्ली में हर घर को हर महीने 20 हजार लीटर पानी मुफ्त मिलता है। मोहल्ला क्लिनिकोंÓ में दवाएं मुफ्त मिलती हैं। कुछ जगहों पर वाईफाई मुफ्त है। दिल्ली के सभी 262 रैनबसेरों में रात गुजारने वालों को चाय और रस्क मुफ्त बांटे जाते हैं। अब आम आदमी पार्टी की सरकार इससे भी एक कदम और आगे निकल गई है। पिछले दिनों ऐलान किया गया कि दिल्ली के 10 रैनबसेरों में अब 2 वक्त के बजाय 3 वक्त का खाना भी मुफ्त दिया जाएगा। अगर सरकार लोगों को रहने को ठिकाना, ऊपर से चायनाश्ता व तीन वक्त का खाना भी मुफ्त में मुहैया करा रही है, तो सोचने की बात है कि भला कोई काम करने की जहमत क्यों उठाएगा? रैनबसेरों के आसपास नजर डालें, तो जहां-तहां गंदगी पसरी दिखाई देगी। उनमें रहकर मुफ्त खाने व रात बिताने वाले कामचोर कभी खुद हाथ तक नहीं हिलाते। जहां रहते हैं, वहां पर अकेले या मिलकर कभी सफाई तक नहीं करते। दरअसल, वोट बैंक बढ़ाने के लिए नेता करदाताओं का पैसा पानी की तरह बहाने व सरकारी खजाने को लुटाने में भी कोई गुरेज नहीं करते। मुफ्त में खाने-पीने की चीजें बांट कर वे सिर्फ अपना मकसद पूरा करने में लगे रहते हैं। दिल्ली में ही नहीं, देश के कई दूसरे राज्यों में भी इसी तरह मुफ्त का सामान बांटा जाता रहा है। उत्तर प्रदेश में साइकिलें व लैपटौप की रेवडिय़ां बांटी गई थीं। पंजाब में किसानों को मुफ्त बिजली-पानी मुहैया कराने के लिए बीते 7 सालों में 32 हजार करोड़ रुपए का भुगतान सरकार कर चुकी है। तमिलनाडु, कर्नाटक वगैरह कई दूसरे राज्यों में भी किसानों को बिजली मुफ्त दी जा रही है। चुनाव के वक्त वोटरों को लुभाने के लिए शराब, कबाब व नकदी बांटने की होड़ मच जाती है। उत्तर प्रदेश व पंजाब में मुफ्त स्मार्टफोन देने के वादे किए गए, तमिलनाडु में मुफ्त चावल, मिक्सी व टैलीविजन बांटे गए। आखिरकार गरीबों के सामने यह चारा किसलिए डाला जाता है? निजी कंपनियां अपना माल बेचने के लिए अकसर मुफ्त की स्कीमें चलाती हैं, लेकिन सरकारें ऐसा करें, तो बात गले से नीचे नहीं उतरती। किसी के खुदकुशी करने पर भी उसके परिवार को एक करोड़ रुपए दे दिए जाते हैं। कई नेता ऐसे हैं, जो अपने विवेकाधीन कोष से चुपचाप अपनों को लाखों-करोड़ों रुपए बांटते रहते हैं और आम जनता को उनकी दरियादिली की कानों-कान खबर तक नहीं होती। हमारे देश में मुफ्तखोरी की आदत बहुत गहराई तक घर कर गई है। कहीं भी कुछ जरा सा मुफ्त मिलने की खबर मिलते ही लोग पागलों की तरह बेकाबू हो जाते हैं। उसे लूटने के लिए लोग अंधाधुंध टूट पड़ते हैं। लखनऊ में गरीब औरतों को साडिय़ां बांटने के दौरान मची भगदड़ में कई औरतों की जानें चली गई थीं। इसके अलावा देश के कई दूसरे इलाकों में भी मुफ्त का सामान बांटने के दौरान जानलेवा हादसे हो चुके हैं, लेकिन लालची लोगों की आंखें नहीं खुलतीं। यह सच है कि मुफ्त में मिली चीज की कभी भी कद्र नहीं होती। उसका अंधाधुंध व बेजा इस्तेमाल होता है। साथ ही, जब सरकारें मुफ्त में सामान बांटती हैं, तो उसका हिसाब-किताब भी सही नहीं होता। सूखा, बाढ़ व आपदा राहत में खाने-पीने के सामान व सरकारी कंबल बांटते वक्त छीना-झपटी, सेंधमारी व अपने घर भरने का खूब खेल होता है। भ्रष्टाचार में गले तक डूबे सरकारी मुलाजिम, अफसर, छुटभैए नेता व ठेकेदार सब मिलकर बहती गंगा में हाथ धोते हैं। हमारे समाज में अनगिनत दाढ़ी-चोटी वाले पाखंडी धर्म के नाम पर बिना करे खीर-पूरी खाते हैं। निकम्मे रोज सुबह से शाम तक पान व चाय की दुकानों पर बेवजह बैठे रहते हैं। करोड़ों भिखारी भीख मांग कर अपना पेट भरते हैं। गरीब दिखने के लिए खुद गंदे रहते हैं और अपने आसपास भी जहां-तहां गंदगी फैलाते रहते हैं। नशा करने में वे जम कर पैसा खर्च करते हैं। जो मेहनत व रोजगार का कुछ काम नहीं करता, वह कर्ज लेता है। अदा न करके, बल्कि उसे मार लेता है और फिर जब देने की बारी आती है, तो अपराध करने लगता है। अपने नहीं जनता के पैसे पर ही रहमदिली गौरतलब है कि अपनी जेब से खर्च करके कहीं कोई नेता जरा सी भी रहमदिली नहीं दिखाता। दरियादिली हमेशा जनता के पैसों से ही दिखाई जाती है, इसलिए इस पर पाबंदी लगना जरूरी है। वैसे भी बूढ़े, बीमार, लाचार व अपाहिजों के अलावा कौन ऐसा है, जो अपने लिए कुछ खर्च न कर सके, अपना तन-बदन न ढक सके या पेट भी अच्छी तरह से न भर सके? आगे बढऩे के लिए लोगों को अपने पैरों पर खड़ा होने देना बहुत जरूरी है। ऐसे लोग कम ही हैं, जो मुफ्त की चीजों के पीछे नहीं भागते। उनके अंदर अपना जमीर जिंदा है। वे खुद कमा कर खाने में यकीन रखते हैं। उनकी गिनती बढऩा जरूरी है, क्योंकि एक इंसान और जानवर में यही फर्क होता है। अगर रहनुमा ही भटके हुए हों, तो जनता को जागना होगा। खुद ही इस सच्चाई को समझने की पहल करनी होगी। मुफ्त में दी जाने वाली चीजें धीमा जहर हैं। इनसे बचना होगा। -रेणु आगाल
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