04-Feb-2013 08:05 AM
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मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किए जाने की संभावना के बीच कांग्रेस पार्टी ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं। कांग्रेस का मानना है कि जनता भाजपा से नाखुश है और इसी कारण बदलाव चाहती है। यदि कांग्रेस उन्हें विश्वास में लेने में कामयाब रहती है तो चुनावी नतीजे पलट भी सकते हैं। इसी कारण कांग्रेस ने कुछ सीटों पर विशेष रणनीति बनाते हुए बीजेपी को घेरने की योजना बनाई है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सबसे बड़ी खामी गुटबाजी है, लेकिन कांग्रेस के एक आला नेता का कहना है कि गुटबाजी सभी दलों में है कोई भी दल इससे अछूता नहीं है और जनता को गुटबाजी से क्या लेना-देना। शायद इसीलिए कांग्रेस ने पीसीसी का विस्तार फिलहाल टाल दिया है। अब केवल मामूली फेरबदल होगा। कहा जा रहा है कि पीसीसी में पद पाने के बजाए ज्यादातर नेता चुनाव में जाना चाहते हैं क्योंकि एक गोपनीय सर्वेक्षण में कांग्र्रेस को यह बताया गया है कि थोड़ी सी मेहनत करने पर चुनावी नतीजे अलग भी हो सकते हैं। राहुल गांधी के सक्रिय होने के बाद अब यह तय माना जा रहा है कि पीसीसी मे जो भी फेरबदल होगा वह युवा नेतृत्व को ध्यान में रखकर किया जाएगा। फिलहाल प्रदेश मे युवा चेहरे के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया सर्वमान्य नेता है। यदि वे चुनावी मैदान में आते हैं तो भारतीय जनता पार्टी को कठिनाई हो सकती है। ज्योतिरादित्य ने इंदौर में क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव के दौरान कैलाश विजयवर्गीय को धूल चटाकर अपनी चुनावी कुशलता का परिचय पहले ही दे दिया है। उनके नाम पर प्रदेश में सर्वानुमति बनने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि ज्योतिरादित्य सीधे राहुल गांधी द्वारा ही प्रोजेक्ट किए जाएंगे।
वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया संगठन को सही दिशा देने में और भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रति आक्रामकता दिखाने में नाकाम रहे हैं। उन्होंने अनुशासन के नाम पर कुछ अजीब से फैसले किए जिसके चलते कई वयोवृद्ध नेता उनसे नाराज हो गए। अब यह वयोवृद्ध नेता कांग्रेस के लिए सरदर्द बन चुके हैं और लगातार भूरिया विरोधी बयान जारी कर रहे हैं। जिसका असर संगठन के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर विपरीत रूप से दिखाई दे रहा है। इसी कारण अब कांग्रेस में यह माना जाने लगा है कि राहुल गांधी युवा नेतृत्व के हाथ में कमान देकर पुराने नेताओं को साधेंगे और युवा पीढ़ी को लुभाने का प्रयास करेंगे। मध्यप्रदेश में युवा मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनावी समर में आते हैं तो युवा वर्ग का उनकी तरफ झुकाव सहज ही हो सकता है। इसीलिए कहा जा रहा है कि जो सूची पिछले वर्ष सितंबर में बीके हरिप्रसाद ने तैयार की थी उस सूची को अब पूरी तरह बदल दिया जाएगा और चुनाव लडऩे के इच्छुक पदाधिकारियों को दायित्व मुक्त करते हुए समन्वय समिति के द्वारा कुछ नए चेहरों को कमान सौंपी जाएगी। सवाल यह है कि ऐसी स्थिति में कौन से चेहरे सामने होंगे। क्योंकि जो चुनाव जीतने में सक्षम है वे ही संगठन की बागडोर संभालने के भी योग्य है। दूसरी तरफ समन्वय समिति की बैठक को लेकर भी केवल अटकले लगाई जा रही हैं। बैठक कब होगी इस बारे में कोई संकेत पार्टी की तरफ से नहीं मिला है। बीके हरिप्रसाद ने कुछ समय पहले कहा था कि यह बैठक फरवरी में होगी, लेकिन फरवरी की तारीख उन्होंने नहीं दी थी। इसीलिए पीसीसी के विस्तार में पद पाने की उम्मीद बहुत से नेताओं ने छोड़ दी है और अब वे टिकिट की कतार में लग गए हैं। प्रदेश कांग्रेस के 11 उपाध्यक्षों में से 4 तुलसीराम सिलावट, बिसाहुलाल सिंह, आरिफ अकील और अरुणोदय चौबे पहले ही विधायक हैं बाकी 7 चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं। जो विधायक हैं उनका टिकट कटने की संभावना न के बराबर है। बल्कि बाकी 7 को भी टिकट मिलना तय बताया जा रहा है। इसी तरह 16 महामंत्रियों में से 11 चुनाव लडऩे की कतार में हैं। बाकी पांच पहले से ही विधायक हैं। प्रभारी संगठन महामंत्री भी अपने-अपने चुनाव क्षेत्र में सक्रिय हो चुके हैं और पार्टी के 48 में से लगभग आधे से ज्यादा सचिव चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। चुनावी सक्रियता का कारण यह है कि कांग्रेस गुप्त सर्वेक्षण करवा रही है जिसमें उसे एनटीइनकमबैंसी का लाभ होता दिख रहा है। प्रदेश की दो दर्जन से अधिक सीटे ऐसी हैं जिन पर पिछले पांच विधानसभा चुनाव में से एक भी बार कांग्रेस को जीत नहीं मिली है। अब यह उम्मीद है कि सत्ता विरोधी रुझान इन सीटों पर कांग्रेस को बढ़त दिला सकता है। फिलहाल यहां कांग्रेस का हर प्रयोग असफल ही रहा है, लेकिन इस बार हालात बदल सकते हैं। प्रदेश के ताकतवर मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र पर भी कांग्रेस ज्यादा मेहनत कर रही है। बुंदेलखंड और बघेलखंड में कांग्रेस तथा भाजपा की स्थिति लगभग बराबर है। बुंदेलखंड तथा महाकौशल के ओबीसी वोटर शिवराज के साथ है, लेकिन अन्य समुदायों पर कांग्रेस की अच्छी पकड़ है। भोपाल के अतिरिक्त ग्रामीण इलाकों में भी कांग्रेस ने पकड़ बना ली है। इसी कारण यह माना जा रहा है कि आगामी चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। यद्यपि केंद्र सरकार की कारगुजारियों का असर मध्यप्रदेश में दिखाई पड़ रहा है। लेकिन विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाता है वह मुद्दे केंद्र के न होकर राज्य के होते हैं।
शोभन बनर्जी