निकाय चुनाव में भाजपा की पराजय
04-Feb-2013 08:47 AM 1234779

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने जब विधानसभा चुनाव, विधानसभा उप चुनाव सहित कुछ नगरीय निकाय चुनाव में जीत हासिल की थी तो लग रहा था कि प्रदेश में कांग्रेस समापन की ओर है। कांग्रेसी खेमें में भी लगातार पराजय के कारण हताशा का वातावरण देखा जा रहा था, लेकिन अब निकाय चुनाव में लगातार पांचवीं हार ने भारतीय जनता पार्टी के खेमें में खलबली मचा दी है। धार, गुना, खंडवा के बाद शिवपुरी और उमरिया में पराजय भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे का संकेत बनती जा रही है। शिवपुरी के नरवर, अनूपपुर की जैतहरी नगर परिषद चुनाव में भाजपा की पराजय कई सवाल खड़े कर रही है। कांग्रेस ने पीथमपुर, ओंकारेश्वर के बाद नए दो नगरीय निकाय में जीत का परचम फहराकर भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। खास बात यह है कि जहां भाजपा की हार हुई है वहां नवनिर्वाचित अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और संगठन महामंत्री अरविंद मेनन ने पूरी ताकत झोंक दी थी। लेकिन इसके बाद भी नरवर में तो भाजपा तीसरे नंबर पर चली गई। नरवर में जिस प्रत्याशी को भाजपा ने टिकट के लायक नहीं समझा उसे कांग्रेस ने टिकट देकर जितवा दिया। जैतहरी में भी यही दृश्य देखा गया। जब भाजपा का प्रत्याशी दिग्गज नेताओं की मौजूदगी के बावजूद पराजित हो गया।
भारतीय जनता पार्टी की इस पराजय से कार्यकर्ताओं में निराशा देखी जा रही है। इसका कारण यह है कि विकास कार्य जिस गति से होने चाहिए थे उस गति से हो नहीं पा रहे है। स्थानीय स्तर पर बहुत सी समस्याएं हैं जिन्हें सुलझाने में भारतीय जनता पार्टी नाकाम रही है। अभी भी कई गांव ऐसे हैं जिनकी बिजली कटी हुई है और सड़क मार्ग पूरी तरह जर्जर हो चुके हैं। पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी के समक्ष प्रदेश की खस्ताहाल सड़कों का मामला उठाया था तो जोशी ने उसे खारिज करते हुए बजट की समस्या बता दी थी। अब यह बजट की समस्या भाजपा के लिए भारी पडऩे वाली है क्योंकि जनता को सड़कों से मतलब है सड़क कौन बनाता है इससे जनता को कोई मतलब नहीं है। दूसरी तरफ जनता राजनीतिक दलों की आंतरिक लड़ाई से भी ज्यादा सरोकार नहीं रखती है। कौन सी पार्टी एकजुट हैं और कौन सी बिखरी हुई है इससे जनता को क्या लेना-देना वह तो केवल विकास चाहती है और विकास की बागडोर पर ही चुनाव आजकल जीते जा रहे हैं। गुजरात इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जहां संघ की नाराजगी और भाजपा में आपसी खींचतान के बाद नरेंद्र मोदी चुनाव जीतने में सफल रहे। स्थानीय निकाय के चुनाव में भी अब विकास प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है। यही हाल रहा तो विधानसभा चुनाव के समय सरकार को भारी मुश्किल हो जाएगी। प्रदेश में सड़क बनने की रफ्तार बहुत धीमी है। उज्जैन सागर और ग्वालियर संभाग की स्थिति बेहद खराब है। सरकार ने जल्दी सड़क न बनाने वाले चीफ इंजीनियरों को चेतावनी दी है कि उनकी छुट्टी हो जाएगी लेकिन सड़कों का रिपोर्ट कार्ड जो जनवरी माह में तैयार किया गया था उससे पता चलता है कि प्रदेश के सारे इंजीनियर बदलकर विदेशों से इंजीनियर लाए जाए तब भी काम संतोषजनक नहीं होने वाला। इसी कारण सरकार ने अपने मंत्रियों को अब सड़कों पर रहने का कहना है और सड़क निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता की सूची में रखने का सुझाव दिया है। चुनाव अब बमुश्किल 10 माह दूर बचे हैं। इसीलिए विधायकों और मंत्रियों में हड़बड़ी देखी जा रही है। जहां तक स्थानीय निकाय में पराजय का प्रश्न है भारतीय जनता पार्टी के भीतर कुछ लोगों ने इसे अपनों द्वारा किया गया विश्वासघात निरूपित किया है। ऑफ द रिकार्ड यह भी बोला गया है कि जिस तरह उत्तरप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव में पराजय का कारण बने 334 कथित भाजपा कार्यकर्ताओं को छह वर्ष के लिए पार्टी से निष्कासित किया गया था उसी तर्ज पर इस बार भी मध्यप्रदेश में अनुशासन का डंडा चलना चाहिए, लेकिन अनुशासन का डंडा चले भी तो कैसे। बहुत से बड़े नेताओं ने बार-बार अनुशासन तोड़ा है और उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। इसी कारण प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह लगातार चिंता में डूबे हुए हैं उनकी यह चिंता हाल ही में भोपाल में आयोजित युवा पंचायत और त्रिस्तरीय पंचायत महासभा में देखने को मिली। इन पंचायतों में असंतोष स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। युवाओं ने जहां सरकार द्वारा पर्याप्त समर्थन और सहयोग न मिलने के लिए असंतोष प्रकट किया। वहीं किसानों ने सरकार की भरपूर खिंचाई की। सरपंच द्वारा विकास कार्यों के लिए बजट राशि बढ़ाने के सरकार के फैसले का भी कोई खास असर नहीं देखा गया। इस महापंचायत में कई मुद्दों पर सरकार से नाराजगी स्पष्ट दिखाई दी। मानदेय बढ़ाने से लेकर बजट की सीमा बढ़ाने तक कई ऐसे विषय थे, जिन पर असंतोष साफ देखा जा सकता था। यही असंतोष अब चिंता का विषय बन गया है। शायद इसीलिए नवनिर्वाचित प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने अपनी कार्यकारिणी को संतुलित बनाने की कोशिश की है। पहली बार कार्यकारिणी में 297 सदस्य हैं जिनमें से 88 कार्यसमिति के सदस्य 58 विशेष आमंत्रित सदस्य और 151 स्थायी आमंत्रित सदस्य हैं। तोमर ने सभी गुटों को साधने का प्रयास किया है ताकि गुटबाजी न हो और संतुलन बना रहे। हालांकि उमा भारती को अभी भी हाशिए पर ही रखा जा रहा है। इसका कारण यह है कि वे अब मध्यप्रदेश में सक्रिय नहीं हैं और उनके दाहिने हाथ प्रहलाद पटेल भी प्रदेश की राजनीति में उतनी रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
उधर कार्यकारिणी में जगह पाने से वंचित रह गए कुछ नेतापुत्रों में भी मायूसी है यह लोग कार्यकारिणी के रास्ते राजनीति में लॉचिंग की योजना बना रहे थे, लेकिन उनकी आशाओं पर पानी फिर गया। जीतू जिराती को भी एक्सटेंशन मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उनकी जगह नरेंद्र सिंह तोमर ने अमरजीत मौर्य को अध्यक्ष बनाया। मौर्य की आयु मात्र 29 वर्ष है और वे अब तक  के सबसे कम उम्र के युवा मोर्चा अध्यक्ष है। वैसे भाजपा संविधान के मुताबिक युवा मोर्चा का पदाधिकारी 35 वर्ष तक का युवा हो सकता है। इस लिहाज से आने वाले समय में मोर्चा की मौजूदा कार्यकारिणी से मोर्चा के आधे से अधिक पदाधिकारी तो वैसे ही बाहर हो जाएंगे। शायद यही भांपकर तोमर ने मौर्य से कहा है कि वे अपनी उम्र के कार्यकर्ताओं को ही युवा मोर्चा की कार्यकारिणी मे लें। कार्यकारिणी के गठन में शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर ने पुराने मतभेदों को भी भूलने का प्रयास किया। शिवराज सिंह चौहान को घोषणावीर का खिताब देने वाले सांसद रघुनंदन शर्मा को फिर से उपाध्यक्ष बनाया गया है। शर्मा अपने बड़बोलेपन के कारण इसी पद से हटाए गए थे। कहा यह जा रहा है कि नई कार्यकारिणी में मेनन की सलाह को विशेष तवज्जो मिली है। कार्यकारिणी गठन के दौरान आंतरिक उठा-पटक भी देखने को मिली। प्रभात झा के खासमखास रहे ब्रिजेश लूनावत का नाम तोमर की टीम में नहीं था, लेकिन जब इस पर खींचतान हुई तो हितेश बाजपेयी ने बयान जारी करके सफाई दी कि लूनावत को स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया है। जारी हुई सूची में भूल वश उनका नाम नहीं छपा था। क्षेत्रीय, जातीय और गुटीय संतुलन के लिहाज से कार्यकारिणी को संतुलित कहा जा सकता है। आगामी चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं ने सरकार को चेतावनी देना भी शुरू कर दी है। हाल ही में राज्यसभा सदस्य अनिल माधव दवे ने अवैध उत्खनन का आरोप लगाते हुए कहा था कि मध्यप्रदेश में नेता, अफसर और खनन माफियाओं का गठजोड़ बन गया है।
उधर संगठन में भी थोड़ी खींचतान चल रही है। प्रदेश कार्यकारिणी घोषित करने के बाद प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को कुछ परेशानियां भी आ रही हैं। विरोध के स्वर भी उभरे हैं। बीते दिनों जब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज एक निजी कार्यक्रम में भाग लेने भोपाल आई थीं तो उनकी तोमर से लंबी बातचीत हुई थी। बताया जाता है कि कार्यकारिणी के गठन से नाखुश कुछ लोगों ने सुषमा स्वराज से शिकायत की थी। सुषमा स्वराज भी अपने कुछ चहेतों को जगह दिलवाना चाह रहीं थी, लेकिन इस बातचीत में क्या नतीजा निकला यह तो पता नहीं है पर मीडिया को यह बताया गया कि बातचीत आगामी लोकसभा चुनाव की रणनीति के संबंध में थी। उधर चुनावी वर्ष में जिलों की कार्यकारिणी न बन पाने के कारण कार्यकर्ताओं में असंतोष देखने को मिल रहा है। भाजपा के 699 मंडलों में से ज्यादातर मंडलों में नए अध्यक्ष का चुनाव तो हो चुका है किंतु कार्यकारिणी गठन की स्थिति संतोषजनक नहीं है। अभी तक कुल 99 मंडलों में ही कार्यकारिणी का गठन हुआ है। 600 मंडल ऐसे हैं जहां कार्यकारिणी का गठन नहीं हुआ है। उसी प्रकार 12 जिलों में भी भाजपा अध्यक्ष नहीं चुन पाए हैं। सात भाजपा अध्यक्षों को संगठन ने प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल कर लिया है। नियमानुसार वे दो पदों पर  नहीं रह सकते। नीमच, इंदौर शहर, उज्जैन शहर, शाजापुर, ग्वालियर शहर-ग्रामीण, धार, शिवपुरी, अशोकनगर, दमोह, शहडोल और खरगोन में चुनाव नहीं हुए हैं। भाजपा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि फरवरी में कार्यकारिणी का गठन कर लिया जाएगा। देखना है कि इससे कार्यकर्ताओं को कितनी राहत मिलती है। क्योंकि मुख्यमंत्री केवल पंचायतों में व्यस्त हो चुके हैं और भीतर के सूत्रों की मानें तो अपनी आगे की रणनीति पर क्रियान्वयन करने में जुट गए हैं। इधर संगठन का पूरा भार नरेंद्र सिंह तोमर के कंधों पर रख दिया गया है। वे मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र होने के कारण फ्री-हेंड पाने में सफल रहे हैं, लेकिन दिल्ली में जिस तरह से हालात पल-पल बदल रहे हैं उसका प्रभाव मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी पर पडऩा तय है। देखना है कि चुनावी वर्ष में किस तरह की रणनीति अपनाई जाती है।
-अजय धीर

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