मोदी मैजिक से ममता धराशाई!
01-Apr-2017 09:37 AM 1234782
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भले ही यूपी चुनाव में एक भी उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था, लेकिन चुनाव के परिणाम का इंतजार उसी बेसब्री से कर रही थी जैसे सपा-बसपा को था। चुनाव परिणामों के अपने व्यक्तिगत आंकलन से जब ममता बनर्जी आश्वस्त नहीं हुई तो उन्होंने पत्रकारों से इस विषय में बात की और उन राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियों को जानने लगीं। 11 मार्च को परिणाम के दिन, वो सुबह से ही टीवी के सामने बैठ गईं थीं। जैसे-जैसे यूपी में भगवा रंग चढऩे लगा उनकी बेचैनी बढ़ती गई। अंत में अधीर होकर ममता चैनल सर्फिंग करने लगीं कि कहीं से भाजपा के हार की खबर मिले। हालांकि अखिलेश और राहुल के विपरीत, ममता यूपी के चुनावी समर में मैदान पर पसीना नहीं बहा रही थीं। लेकिन फिर भी अखिलेश यादव और राहुल गांधी की तरह ममता पर भी हार का गहरा असर हुआ। यूपी चुनाव के परिणामों का महत्व ममता बनर्जी के लिए व्यक्तिगत कारणों से जरूरी था। प्रधानमंत्री के साथ उनके नूरा-कुश्ति जाहिर है। पीएम मोदी ने सीधा-सीधा ममता बनर्जी की ईमानदारी पर तो सवाल खड़ा किया ही था साथ ही उनकी राष्ट्रीय राजनीति की आकांक्षाओं के लिए भी एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आ खड़े हुए हैं। इसलिए अपने कट्टर दुश्मन की इतनी बड़ी जीत उनके लिए किसी सदमें से कम नहीं था। हालांकि भाजपा ने ये जीत ममता के ही एक और प्रतिद्वंदी के खिलाफ ही पाई थी लेकिन फिर भी मोदी की जीत ज्यादा भारी पडऩी थी, सो पड़ी। शाम को ममता बनर्जी ने चुनावी नतीजों पर एक ट्वीट किया- विभिन्न राज्यों में विजेताओं को बधाई। मतदाताओं को बधाई कि उन्होंने अपनी पसंद के नेता को वोट दिया। जो लोग चुनाव हार गए वो दिल छोटा ना करें। लोकतंत्र में हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। हार और जीत जीवन का हिस्सा है। कुछ जीतेंगे तो कुछ हारेंगे भी। हमें लोगों पर विश्वास करना चाहिए। चुनावों में जीतने वाली हर पार्टी के साथ-साथ यूपी में भगवा ब्रिगेड को भी बधाई संदेश देकर ममता ने अपने मंसूबे साफ कर दिए। भाजपा के साथ रिश्ते सुधारने का इसे शुरुआती कदम कहा जा सकता है। ममता के इस कदम से तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने राहत की सांस ली है। पर इससे सबसे ज्यादा खुशी सारदा और रोज वैली घोटालों में फंसे आरोपियों को हुई। नोटबंदी के समय ममता बनर्जी और पीएम मोदी के बीच की शब्दों के वार से तृणमूल कांग्रेस के कम से कम आधा दर्जन कैबिनेट मंत्री, सांसद और विधायक ये मान बैठे थे कि सीबीआई से बुलावा कभी भी आ सकता है। सीबीआई ने तृणमूल कांग्रेस के दो सांसदों को गिरफ्तार कर इस बात के साफ संदेश पहले ही दे दिए थे। यूपी चुनाव आने के बाद सारी निगाहें इसके परिणाम पर ही लगी थी। अब जब वहां भाजपा को प्रचंड बहुमत से जीत मिल गई है तो कई क्षेत्रीय पार्टियों का सिरदर्दी बढऩा लाजमी है। यूपी में क्लिन स्वीप का मतलब है कि अब भाजपा को राज्यसभा में ज्यादा उम्मीदवारों की संख्या से जूझना नहीं पड़ेगा और किसी भी बिल को पास कराने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों पर निर्भरता कम होगी। अतीत में मोदी ने ममता को राज्यसभा में महत्वपूर्ण बिलों के पारित कराने के लिए उन्हें खूब तवज्जो दी थी। लेकिन यूपी चुनावों में बंपर जीत के बाद मोदी सरकार की ये राजनीतिक मजबूरी अब समाप्त गई है। तो ये माना जा रहा है कि वो ममता बनर्जी को अधर में ही लटका कर छोड़ सकते हैं। ममता के एक कैबिनेट मंत्री बताते हैं कि- ममता आधा-अधूरा काम करने में विश्वास नहीं करती। वो जो भी करती हैं पूरे उत्साह और ताकत के साथ करती हैं। मोदी के खिलाफ अपनी लड़ाई में भी उन्होंने बिना डरे आमने-सामने की भिड़त की थी और भागने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा था। ममता ने ना केवल मोदी की आलोचना की थी बल्कि उन्हें- तुगलक, गब्बर सिंह, डाकू जैसे नामों से भी पुकारा। पूरे हिन्दी बेल्ट में ममता ने जी जान से समूचे विपक्ष और सभी क्षेत्रीय दलों को अपने मोदी विरोधी अभियान में एकजुट करने का प्रयास किया था। सत्ताधारी पार्टी से इस तरह की लड़ाई का मतलब वो जानती थी। उन्हें इस बात का भी अच्छे से एहसास था इस लड़ाई की क्या कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी। लेकिन फिर भी मोदी के खिलाफ ममता ने पूरी ताकत लगा दी। चुनाव विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं कि ममता की जिंदगी की एक ही फिलॉसफी है बिना जोखिम के कभी विजय नहीं मिलती। इसलिए वे बार-बार जोखिम उठाती हैं। खाई पाटने की कोशिश स्वाभाविक रूप से ममता चिंतित हैं। वो ऐसी हारी हुई दिख रही हैं मानों यूपी चुनाव वो खुद हार गई हैं। अब समझ और सम्मान की बात करके वो केन्द्र और राज्य सरकार के बीच की खाई को पाटने की कोशिश कर रही हैं। ये सब प्रतिबद्धता के लंबे दावे हैं जिसका राजनीति में भविष्य कम ही है। ये सब जानते हुए भी ममता, मोदी के लिए बड़ी-बड़ी बातें करके रिश्ते में आई गर्माहट को कम करना चाहती हैं। लेकिन तब तक वो भाजपा के साथ अपना राजनीतिक और चुनावी समीकरण ठीक रखने की ही कोशिश कर रही हैं। लेकिन क्या यह खाई पट पाएगी इसको लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। -इन्द्र कुमार
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^