18-Mar-2017 10:57 AM
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प्रदेश में एक बार फिर से जलसंकट की आहट सुनाई दे रही है। ऐसे में सरकार और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन की चिंता सताने लगी है। यही नहीं सरकार ने प्रदेश के 51 जिलों में पेयजल के लिए 2017-18 के बजट में 2493 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी प्यास लगने पर कुंआ खोदने की मप्र सरकार की नीति लोगों की प्यास बुझा पाएगी इसमें संदेह है।
प्रदेश में हर घर तक सरकार की हर योजना का लाभ पहुंचाने का कागजी खाका तैयार किया गया है। सरकार का दावा है कि प्रदेश की सभी 22,825 ग्राम पंचायतों और 54,904 गांवों में पेयजल की व्यवस्था कर दी गई है। लेकिन हकीकत कुछ और है। योजनाएं भले ही लोक कल्याण के लिए बनाई गई हैं लेकिन उनका बेहतर क्रियान्वयन न होने के कारण लोगों को लाभ नहीं मिल पा रहा है। योजनाएं या तो कागजों में ही तैयार कर दी गई हैं या फिर बजट का अभाव बताकर बीच में ही रोक दी गई हैं। आलम यह है की करोड़ों रुपये बर्बाद होने के बाद भी जनता को लाभ नहीं मिल रहा है।
स्थिति कुछ ऐसी है कि प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी नलजल योजना के नाम सुनते ही पंचायतों में लोगों का गुस्सा फूटने लगता है। 8 साल पहले शुरू की गई योजना आज भी अंतिम छोर तक नहीं पहुंच पाई है। योजना के नाम पर हर साल लोगों को झुनझुना पकड़ाया जाता है, लेकिन गर्मी में न अधिकारी नजर आते हैं और न ही माननीय। पंचायत ग्रामीण विकास विभाग को पंचायतों ने जो आंकड़े भेजे हैं उसके मुताबिक 8 हजार पंचायतों में आज तक यह योजना नहीं पहुंची है, जबकि प्रदेश की 22,825 ग्राम पंचायतों में 14 हजार पंचायतों में योजना पहुंची तो है, किंतु वहां भी स्थिति बुरी है।
प्रदेश में नल-जल योजनाओं की हकीकत क्या है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हजारों ग्राम पंचायतों में नल-जल योजनाओं के बारे में लोग जानते ही नहीं। दरअसल, कहीं योजना के तहत बिछाई गई पाइप लाइन गायब है, तो कहीं पानी की टंकियां ही रख-रखाव के अभाव में क्षतिग्रस्त होती जा रही हैं। जिलों की कई नल-जल योजनाएं तो ऐसी हैं, जहां चार साल में भी टंकियों से पानी की एक बूंद भी ग्रामीणों को नहीं मिल सकी है। इसके विपरीत ग्राम पंचायतें और पीएचई आमने-सामने की स्थिति में हैं। पंचायतों का आरोप है कि पीएचई टंकियों को शुरू नहीं करा पा रही है, तो पीएचई अधिकारी कहते हैं कि हमारा काम योजना तैयार कर पंचायतों को हैंडओवर करना है। इसके बाद रख-रखाव का जिम्मा पंचायतों का होता है। इस तरह ग्राम पंचायत और पीएचई के बीच झूलती नल-जल योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है।
मप्र की साढ़े सात करोड़ आबादी की प्यास बुझाने के लिए हर साल आंकड़ों की ऐसी बाजीगरी की जाती है जिससे ऐसा लगता है प्रदेश में जलधारा बह रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 15,270 नलजल योजनाएं स्थापित हैं। प्रदेश में 5,23,247 हैंडपंप हैं। लेकिन सरकारी दावे ऐसे हैं जैसे लगता है सरकार ने हर घर को पानी मुहैया करा दिया है। मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा पेयजल आपूर्ति के लिए विभिन्न योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं। विभाग का दावा है कि ग्रामीण क्षेत्रों की कुल एक लाख 27 हजार 552 बसाहट में से एक लाख 7 हजार 708 बसाहट में 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मान से पेयजल की व्यवस्था की जा चुकी है। शेष 19 हजार 844 बसाहट में 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मान से पीने के पानी के सप्लाई की व्यवस्था की गई है, जिसे बढ़ाकर 55 लीटर के मान से किए जाने के प्रयास हो रहे हैं। इसके बावजूद प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में गर्मी आते ही जलसंकट सुरसा की तरह मुंह फैलाकर खड़ा हो जाता है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री का दावा
प्रदेश की लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं जेल विभाग मंत्री कुसुम मेहदेले का कहना है कि प्रदेश में बंद पाई गईं 3 हजार 474 नल जल योजनाओं को चालू करने के लिए विस्तृत प्राकलन बनाकर शासन स्तर से स्वीकृतियां जारी कर दी गई हैं। वह कहती है कि प्रदेश की कुल 15 हजार 270 नल जल योजनाओं में से सर्वेक्षण के दौरान 3 हजार 474 नल, जल योजनाएं बंद पाई गईं हैं। मेहदेले ने बताया कि बंद नल जल योजनाओं के 2 लाख रूपए लागत तक के कार्य ग्राम पंचायतों के माध्यम से करवाये जा रहे हैं तथा इससे अधिक लागत के कार्य विभाग द्वारा करवाए जाएंगे। इस हेतु पंचायतों को धनराशि भी उपलब्ध करवा दी गई है। बंद नल जल योजनाओं को चालू करने के कार्यों की केन्द्रीकृत निविदा प्रणाली के माध्यम से निविदाएं आमंत्रित की गईं हैं। इन योजनाओं को चालू करने का कार्य 3 माह की अवधि में पूर्ण किया जाएगा तथा 45 दिन के ट्रायल रन के पश्चात 5 वर्ष की अवधि तक संधारण का कार्य भी करवाया जाएगा।
-विशाल गर्ग