01-Apr-2017 09:30 AM
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बुन्देलखण्ड के विकास के लिए सरकार ने जितनी भी योजनाएं संचालित की हैं वे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी हैं। मनरेगा में तो यहां जमकर मनमानी हुई है। ललितपुर जनपद से पूर्व दिशा में करीब 48 किमी दूर स्थित महरौनी ब्लाक की ग्राम पंचायत जखौरा में इन दिनों मनरेगा के भुगतान में धांधली का खेल चल रहा है। ग्रामीणों का आरोप है, प्रधान व पंचायत कर्मचारी की मिलीभगत से फर्जी भुगतान हो रहा है। शिकायतों के बाद भी संबंधित अधिकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं।
ग्राम पंचायत जखौरा में मनरेगा के तहत अप्रैल 2016 में सात कुओं के निर्माण के लिए प्रति कूप 5.12 लाख रुपए जारी हुए थे। जून-जुलाई तक सभी कुएं खोद लिए गए, लेकिन सिर्फ दो कुओं पर पत्थर लगने का काम हुआ। बाकी पांच कुएं बारिश होने के कारण मिट्टी धंसकने से भर गए। अभी तक उन कुओं की सफाई नहीं हो सकी, लेकिन प्रधान और सेक्रेटरी ने फर्जी तरीके से भुगतान करा लिए और इसे इंटरनेट पर अपलोड कर दिया। लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हो सका। जखौरा गांव के एक कुएं के मालिक किसान बताते हैं, बरसात के मौसम में कुआं धंसक गया, सारी मिट्टी कुएं में गिर गयी, लेकिन अभी तक उसे साफ नहीं किया गया। मनरेगा सोशल ऑडिट समिति के सदस्य सूर्य प्रताप सिंह बताते हैं, मनरेगा काम पाने के लिए पंचायत में लिखित या मौखिक आवेदन करने पर 15 दिन के अंदर काम उपलब्ध कराया जाता है। कार्य स्थल पर एमआर शीट रखी जाती है। कार्य होने पर जेई फाइनल करता है और मजदूरों का पैसा मिलता है। ललितपुर जनपद से पूर्व दिशा में (47 किमी) महरौनी ब्लॉक की जखौरा पंचायत बेवसाइट के अनुसार, पंचायत में 699 पंजीकृत जॉब कार्ड धारी हैं। वेबसाइट के अनुसार, मनरेगा के सात कुओं पर 125 से अधिक मजदूरों ने काम की मांग (डिमान्ड) 30 दिसंबर 2016 को की। पंचायत ने एक जनवरी 2017 से 12 दिन का काम सात कुओं पर सवा सौ मजदूरों को लगाकर कराने की बात कही है, जिसकी मजदूरों को कोई जानकारी नहीं है। कूपो पर एक पैसे का काम नहीं हुआ! सात कुओं पर 30 एमआर पर दो लाख, दो हजार, दो सौ 75 रुपए के फर्जी भुगतान को वेब पर फीड कराया गया।
जब पूरे प्रकरण की पड़ताल की गई तो भ्रष्टाचार का मामला सामने आया ग्रामीण बताते हैं, बरसात से यानी जून के महीने से अभी तक छह महीने से मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिला है। अक्टूबर 2016 में प्रधान और सेक्रेटरी ने बताया था कि ऊपर से ही काम बंद है। जब इस संबंध में ग्राम विकास अधिकारी मोहन से बात की, तो जबाव देने से किनारा काट लिया! खण्ड विकास अधिकारी प्रदुम्म नारायण द्धिवेदी ने व्यवहारिकता की बात करते हुए बताया कि जो कुएं पूरी तरह बंध गए है उनका पेमेंट अभी पूरी तरह नहीं हुआ है तो ऐसे में हो सकता है मजदूरों ने पहले काम किया हो, भुगतान पूरा नहीं हो पाया हो! ऐसे में व्यवहारिकता के आधार पर भुगतान हो सकता है, सातो कूपो की जांच करायी जायेगी, जांच के बाद वास्तविकता का मालूम हो पायेगा! हालांकि जिले के आला अधिकारियों ने इस मामले में मौन साध लिया है वह कुछ भी कहने से कतरा रहे है।
कूपो के निर्माण में फर्जी भुगतान
मनरेगा के तहत जिन कूपो का निर्माण किया गया है उसमें फर्जी भुगतान करने का मामला सामने आया है। एक तरफ बुंदेलखण्ड में पानी की किल्लत लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए मनरेगा जैसी योजनाओं का बंटाढार किया जा रहा है। बुंदेलखण्ड में मनरेगा योजना के तहत जितना भ्रष्टाचार हुआ है उतना अन्य किसी क्षेत्र में नहीं हुआ है। अगर बुंदेलखण्ड पैकेज और मनरेगा में हुए कार्यों की जांच कराई जाए तो यह तथ्य सामने आ जाएगा कि बुंदेलखण्ड की बदहाली के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है। दरअसल बुंदेलखण्ड नेताओं और अफसरों के लिए हमेशा से चारागाह बना हुआ है। विकास के नाम पर मिलने वाली योजनाओं का पैसा मिल बांट कर खाया जा रहा है।
-जबलपुर से सिद्धार्थ पाण्डे