20-Mar-2017 06:39 AM
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पांच राज्यों के परिणाम आने के साथ ही मप्र में दोनों उपचुनावों के लिए चुनावी बिगुल बज गया है। 9 अप्रैल को अटेर और बांधवगढ़ विधानसभा के लिए उपचुनाव होना है। प्रदेश में एक बार फिर से चुनाव की बिसात बिछने लगी है। चुनाव आयोग द्वारा भिंड जिले के अटेर और उमरिया जिले के बांधवगढ़ (अनुसूचित जनजाति) विधानसभा उप चुनाव की घोषणा किये जाने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस मेें हलचल तेज हो गई है। दोनों पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। कांग्रेस ने अटेर विधानसभा उपचुनाव के लिए हेमंत कटारे और बांधवगढ़ उपचुनाव के लिए सावित्री सिंह को कांग्रेस पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है। जबकि भाजपा ने अटेर से अरविंद भदौरिया को और बांधवगढ़ से शिवनारायण सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। ये नाम कोई अप्रत्याशित नहीं हैं। पहले से ही इन नामों के कयास लगाए जा रहे थे। कांग्रेस को उम्मीद है कि अटेर विधानसभा सीट सहानुभूति के दम पर वह जीत लेगी। उसके लिए बांधवगढ़ कठिन चुनौती है।
भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भरोसे जीत की उम्मीद लगाए बैठी है वहीं कांग्रेस को उम्मीद है कि उसके दिग्गज नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी और प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव अपना दम दिखाएंगे। अटेर कांग्रेस के कब्जे वाली सीट है। अत: यहां कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है वहीं बांधवगढ़ पर कब्जा जमाने की उम्मीद। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड चुनाव में करारी हार के बाद मध्यप्रदेश में धड़ों में बिखरी कांग्रेस को एकता दिखाने के लिए अटेर के रूप में रणक्षेत्र मिला है। यहां न केवल कांग्रेस की एकता का परीक्षण होगा बल्कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां भी परख उठेंगी। दिग्गज कांग्रेस नेता सत्यदेव कटारे को इस क्षेत्र में सभी वर्गों का समर्थन मिलता था। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस सीट से कटारे के बेटे के टिकट की पैरवी की थी। कुछ माह पूर्व भिण्ड में हुई रैली में भी सिंधिया ने हेमंत को प्रत्याशी बनाए जाने के संकेत दिए थे। इस रैली में हेमंत ने भी ताकत दिखाते हुए भरोसा दिलाया था कि अगर पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी बनाती है तो वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। हालांकि अब देखना यह है कि सत्यदेव कटारे के बेटे के लिए कांग्रेस के सभी धड़े ताकत लगाते हैं या नहीं। बता दें कि सिंधिया की भिण्ड में हुई रैली में कांग्रेस के अन्य धड़े गायब रहे थे। ऐसे में ग्वालियर के कांग्रेस नेताओं को इस चुनाव में बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी जानी हैं।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि इस बार कांग्रेस भाजपा को इन चुनाव में करारा जवाब देगी। वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान का कहना है कि कांग्रेस की दिखावटी एकता कोई काम नहीं आने वाली। हमारे पास शिवराज सिंह चौहान हैं। इन उपचुनाव में एक तरफ कांग्रेस के पास अटेर सीट बचाए रखने की चुनौती है, तो वहीं भाजपा उपचुनावों में लगातार जीत का सिलसिला कायम रखते हुए बांधवगढ़ सीट के अलावा अटेर सीट कांग्रेस से छीनने की पुरजोर कोशिश कर रही है।
गौरतलब है कि अटेर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र तत्कालीन विधायक और नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के निधन के कारण खाली हुई है। वहीं बांधवगढ़ विधानसभा सीट तत्कालीन विधायक ज्ञान सिंह के शहडोल संसदीय क्षेत्र से सांसद निर्वाचित होने के कारण खाली हुई है। जहां तक सत्ताधारी दल की चुनावी तैयारियों की बात करें तो भिंड की अटेर विधानसभा सीट से पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सत्यदेव कटारे से हारे अरविंद भदौरिया को टिकट दिया गया है। हालांकि अरविंद भदौरिया की राह में पूर्व विधायक मुन्नासिंह भदौरिया रोड़े अटकाए हुए थे। मुन्नासिंह भदौरिया को सरकार ने पहले ही लालबत्ती से नवाज दिया है, लेकिन मुन्नासिंह भदौरिया अंत तक अपनी दावेदारी पर कायम रहे। माना जा रहा है कि मुन्ना सिंह भदौरिया की नाराजगी बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है। ऐसे में भाजपा पशोपेश में है कि कैसे भी मुन्नासिंह भदौरिया को मनाया जाए, ताकि चुनाव में भितरघात न हो सके।
वहीं दूसरी सीट बांधवगढ़ में भी भाजपा की परेशानी कम नहीं है। भाजपा ने कैबिनेट मंत्री ज्ञानसिंह के पुत्र शिवनारायण सिंह टिकट दिया है। इसको लेकर पार्टी में विरोध था लेकिन सरकार ने वादे के मुताबिक उन्हें टिकट दिया है। ज्ञातव्य है कि सरकार ने शहडोल उपचुनाव जीतने के लिए ज्ञान सिंह को बलि का बकरा बनाया था। इसलिए लोकसभा चुनाव न लडऩा चाह रहे मजबूरी में चुनाव लडऩे और सांसद चुने जाने के बाद भी ज्ञान सिंह मंत्री पद पर काबिज हैं और सिर्फ इसलिए कि उनके बेटे शिवनारायण सिंह को टिकट दिया जाए। ज्ञानसिंह लगातार अपने बेटे के टिकट के लिए दबाब बना रहे थे, जबकि उमरिया जिले का स्थानीय भाजपा संगठन उनको टिकट दिए जाने का विरोध कर रहा था। दूसरी तरफ पार्टी के सर्वे में भी उनकी स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए पार्टी किसी महिला प्रत्याशी को उतारने का मन बना रही थी। हालांकि ज्ञानसिंह ने ऐलान कर दिया था कि अगर उनके बेटे को टिकट नहीं दिया गया तो वो सांसद पद से इस्तीफा देकर राजनीति से सन्यास ले लेंगे। ऐसे में पार्टी ने उनके पुत्र को टिकट तो दे दिया है अब उसे जीताने की जिम्मेदारी भी ज्ञान सिंह को ही उठानी होगी। दरअसल, इस आदिवासी सीट पर भी कई दावेदार सामने थे, लेकिन पार्टी ने एक बड़ा जुआ खेल दिया है।
कांग्रेसी दिग्गजों के लिए परीक्षा की घड़ी
अटेर और बांधवगढ़ उपचुनाव कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, अरुण यादव के लिए अपनी एकता दिखाने के साथ ही इन सीटों को जीतने की चुनौती है। जानकारों का कहना है कि अगर कांग्रेसी दिग्गज पूरी एकता के साथ मैदान संभालते हैं तो वे मैदान मार सकते हैं। लेकिन यह सभी जानते हैं कि वर्चस्व की लड़ाई में व्यस्त ये नेता एक मंच पर होकर भी एक नहीं हो सकते। इसलिए दोनों जगह के कार्यकर्ता भी अनजाने भय से ग्रस्त है। हालांकि आलाकमान ने कांग्रेसी दिग्गजों को 2018 के घमासान से पहले इन दोनों सीटों को जीतकर प्रदेश में कांग्रेस की ताकत का अहसास कराने का निर्देश दिया है।
यूपी चुनाव ने खड़ी की चुनौती
मप्र में चुनाव जीतना शिवराज सिंह चौहान के लिए बाएं हाथ का खेल है। ऐसा पार्टी मानती आ रही है। लेकिन उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम ने मप्र सरकार और भाजपा संगठन के सामने इन दोनों सीटों को जीतने की चुनौती खड़ी कर दी है। चुनौती इसलिए है कि अटेर में कांग्रेस को सहानुभूति की लहर का फायदा मिलेगा। साथ ही यहां कांग्रेस पहले से ही मजबूत है। ऐसे में प्रथम दृष्टया यहां भाजपा की जीत मुश्किल लग रही है। यह क्षेत्र ब्राह्मण बहुल है। इसका फायदा स्व. सत्यदेव कटारे के पुत्र हेमंत कटारे को मिलना तय माना जा रहा है। वहीं बांधवगढ़ में भी भाजपा के प्रत्याशी के खिलाफ माहौल है। ऐसे में पार्टी के सामने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही एकमात्र ऐसे विकल्प हैं जो इन दोनों सीटों पर भाजपा को जीत दिला सकते हैं। अब देखना यह है कि पार्टी इस चुनौती को कैसे पार करती है।
गोविंद सिंह की उपेक्षा पड़ सकती है भारी
अटेर के सियासी गणित में कांग्रेस उलझती नजर आ रही है। उप चुनाव से गोविंद सिंह की दूरी कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया से अदावत के कारण गोविंद सिंह अटेर से अपने को दूर रखे हुए हैं। जबकि यहां पर ब्राह्मण और ठाकुर मतदाताओं की बहुतायत है। अगर ठाकुर वोट पूरी तरह कांग्रेस से कट गया तो उसके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है। उधर भाजपा की कोशिश है कि वह ठाकुर-ब्राह्मण बाहुल्य सीट पर दोनों जातियों को साधकर चले। इसलिए पार्टी ने जहां ठाकुर उम्मीद खड़ा किया है वहीं चुनावी कमान ब्राह्मण नेताओं को सौंपने की तैयारी कर रही है। अब देखना यह है कि बाजी किसके हाथ लगती है।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया