20-Mar-2017 06:34 AM
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प्रदेश की सरकार ने चार साल पहले सभी घरों को अटल ज्याति योजना के तहत 24 घंटे बिजली देने की योजना शुरू की थी, फिर देश की मोदी सरकार ने दो साल पहले दावा किया था कि 2017 तक हर गांव में बिजली होगी। लेकिन दोनों सरकारों का दावा खोखला साबित हुए हैं। देश की ऊर्जाधानी के 939 मजरे-टोले ऐसे हैं जहां लोग आजादी के बाद से बिजली की राह देख रहे हैं। भले ही पावर हब की चकाचौंध है, पर आम आदमी के सपने अभी भी अंधेरे में हैं। देश की ऊर्जाधानी का यह रूप चौकानें वाला है। प्रदेश सरकार ने अटल ज्योति योजना के तहत घरेलू उपभोक्ताओं को 24 घंटे थ्री फेज की बिजली सप्लाई का दावा किया था। इसके लिए घरेलू और कृषि लाइन को अलग-अलग किया गया था। दोनों के फीडर भी अलग बनाए गए थे। कुटीर व उद्योग धंधों के लिए भी अलग सप्लाई लाइन डाली गई थी। सूत्र बताते हैं कि कंपनियों के अधिकारियों ने हजारों करोड़ रुपए की इस महत्वाकांक्षी योजना का बंदरबांट कर डाला। शहरी और कस्बों को छोड़कर कहीं भी 24 घंटे बिजली नहीं मिल पा रही है। मेन्टेनेंस और ट्रिपिंग की समस्या सभी जगह है। ग्रामीण इलाकों में औसतन 14 से 16 घंटे ही बिजली मिल रही है।
आजादी के बाद से ही उजाले की आस लगाए बैठे सिंगरौली के 939 मजरे-टोलों में एक बार फिर से उजाले की आस दिखी है। बताया जाता है की चार साल पहले बिजली विभाग के लोग यहां का सर्वे करके गए थे। एक बार फिर से मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने जिले के तीन ब्लॉक बैढऩ, देवसर और चितरंगी में 100 से कम आबादी वाले 364 मजरे-टोले और 100 से अधिक आबादी वाले 575 छोटे गांव चिंहित किए हैं। जहां आजादी के बाद से बिजली नहीं है। इनमें से सौ से कम आबादी वाले 313 मजरे-टोलों में विद्युतीकरण कार्य शुरू हो गया है। इसके लिए डिस्ट्रिक मिनरल फंड से 26 करोड़ की धनराशि मिली थी। जिससे ठेकेदारों से यह कार्य कराया जा रहा है। शेष 51 मजरे-टोले में मार्च से विद्युतीकरण कार्य प्रारंभ करने का बिजली कंपनी दावा करती है। लेकिन सौ से अधिक आबादी वाले 575 छोटे गांवों का विद्युतीकरण कार्य अधर में है। इसकी मुख्य वजह केंद्र की महत्वाकांक्षी दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना है जो सिंगरौली जिले मेें शुरू नहीं हो सकी है।
देश में कैशलेस और डिजिटल इंडिया की बात हो रही है, लेकिन बैढऩ ब्लॉक के तेंदुहा, पिडऱवाह, जिगनहवा, निमिहवां गड़ैई और चितरंगी ब्लॉक में बगदरा, लंघाडोल, मिठुल, भैंसाबूड़ा सहित जिले के नौ सौ से अधिक विद्युतविहीन मजरे-टोलों के लिए ये योजनाएं एक ख्वाब हैं। ऐसे में उनका डिजिटल इंडिया का ख्वाब कैसे पूरा होगा? ज्ञातव्य है कि दो साल पहले दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना को लांच करते हुए केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि देश के 13,500 गांवों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य 2017 तक रखा गया है। इस लक्ष्य में ऊर्जाधानी के छोटे गांव और मजरे-टोले भी शामिल थे। पर अफसोस कि बात है कि ये आदिवासी बाहुलता होने के बावजूद इस क्षेत्र की अनदेखी की जा रही है। इन इलाकों का छात्र मिट्टी के तेल के दीपक की लौ में भविष्य के सपने बुनने को मजबूर है। सरकारी अस्पतालों में बिजली से चलने वाले उपकरणों की मौजूदगी की परिकल्पना भी नहीं कर सकते हैं। स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा की बात तो दूर, यहां के लोग टीवी की दुनिया से भी दूर हैं।
बिजली देश के लिए, बीमारी अपने लिए
अगर देश की ऊर्जा की राजधानी सिंगरौली की बात करें तो यह क्षेत्र हर घंटे 10 हजार मेगावाट बिजली बनाकर देश के बिजली उत्पादन में 10 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी रखता है। यह एशिया में उद्योगों का सबसे बड़ा गढ़ है लेकिन जहां घर-घर में बेरोजगारी है, बदहाली है और बीमारी है। दिन रात बिजली की खेती करने के बावजूद पिछले 70 साल से यहां के कई क्षेत्र अंधेरे में डूबे हैं। जबकि बिजली उत्पादन के कारण यहां होने वाले प्रदूषण के कारण लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हैं। सिंगरौली औद्योगिक क्षेत्र के लगभग 100 किलोमीटर दायरे में शायद ही कोई गांव, कोई इलाका ऐसा हो जहां बड़ी संख्या में बच्चे और व्यस्क गलियों में रेंगते, लाठियों के सहारे चलते और रास्तों पर लुढ़कते न दिख जाएं। यहां के पानी में फ्लोराइड है, जो सीधे शरीर की हड्डियों पर मार करता है।
-नवीन रघुवंशी