20-Mar-2017 06:26 AM
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मध्यप्रदेश कांग्रेस में इन दिनों अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां तेज कर दी हैं। कांग्रेसियों ने भी अपने गुट बना लिए हैं, ताकि अपने नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ा सकें। पर, आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सीएम पद के लिए जिन नामों को कांग्रेसी आगे बढ़ा रहे हैं, उनको लेकर बड़े कांग्रेसियों ने ही विरोध जताना शुरू कर दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे और वरिष्ठ कांग्रेसी अनिल शास्त्री ने मध्यप्रदेश कांग्रेस में सीएम पद को लेकर चल रही अंतर्कलह को पार्टी के लिए विनाशक बताया है। उन्होंने एक ट्वीट करके अपनी बात रखी। शास्त्री ने ट्विटर पर लिखा...मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ये कह रहे हैं कि चुनाव के पहले मुख्यमंत्री पद का चेहरा तय होना चाहिए। मैं मानता हूं कि ये कदम पार्टी के लिए तबाही भरा होगा।
दरअसल, इन दिनों कांग्रेस में दो गुट बनने की चर्चा है। एक गुट वरिष्ठ कांग्रेसी व गांधी परिवार के वर्षों से करीबी कमलनाथ का है, जबकि दूसरा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का है, जो इन दिनों कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के हम कदम बने हुए हैं। कांग्रेस के पिछले तीन महीने में भोपाल में हुए बड़े प्रदर्शनों में भी पार्टी की भीतरी गुटबाजी सामने आई थी। अभी हाल ही में भोपाल में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी ने शिवराज सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था, तब भी भाजपा ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि अपनों को ताकत दिखाने का प्रदर्शन किया।
शास्त्री की बात में कुछ दम भी दिखता है। दरअसल, मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने की संभावनाएं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर नेताओं में घमासान मचा हुआ है। इस पद की दौड़ में कोई न कोई नाम उभरकर सामने आ रहा है। सबसे ज्यादा इस पद को लेकर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की ही चर्चा हो रही है। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस ने मान लिया है कि मप्र में शिवराज विरोधी लहर चल रही है। बस इसी के साथ कांग्रेस यह सपना संजो कर बैठ गई कि अगली सरकार उनकी बनने वाली है। तमाम कामधाम छोड़कर अब कांग्रेस में कौन बनेगा सीएम केंडिडेट खेला जा रहा है। निश्चित रूप से ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ दो प्रमुख नाम सामने हैं, लेकिन कुछ और भी हैं जिनके नाम सुर्ख होते जा रहे हैं। अरुण यादव इनमें से एक प्रमुख हैं। यादव के साथी नेता इसके कई तर्क जुटा रहे हैं।
टीम यादव के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम पर कांग्रेसी कभी एकजुट नहीं हो पाएंगे। वो एक मासलीडर हैं लेकिन गुटबाजी के कारण उनका कांग्रेस में ही काफी विरोध हो जाता है। कमलनाथ दिल्ली दरबार में भले ही कितनी भी पकड़ रखते हों परंतु मध्यप्रदेश में उनकी कोई खास पकड़ नहीं है। छिंदवाड़ा और आसपास को छोड़ दें तो शेष मध्यप्रदेश में आम जनता कमलनाथ को पहचानती तक नहीं। वो ना तो जोशीले भाषण दे पाते हैं और ना ही सरकार को कभी ठीक ढंग से घेर पाते हैं। अत: कमलनाथ को जिताऊ केंडिडेट नहीं कहा जा सकता। टीम यादव को लगता है कि अरुण यादव में ऐसी कोई खामी नहीं है। उन्होंने लगभग पूरे मध्यप्रदेश का दौरा कर लिया है। कार्यकर्ता उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। उनके पिता सुभाष यादव भी कांग्रेसी थे, अत: कांग्रेस उनके खून में है। मास लीडर हैं, जनता को जुटाना जानते हैं। मप्र में कांग्रेस के सभी गुटों का समर्थन हासिल कर सकते हैं। युवा हैं, ऊर्जावान हैं और सबसे बड़ी बात कि प्रदेश अध्यक्ष हैं। कांग्रेस की परंपरा रही है कि प्रदेश अध्यक्ष ही मुख्यमंत्री बनता है।
वहीं गुटबाजी की बात करें तो मौजूदा स्थिति में मध्यप्रदेश कांग्रेस पांच गुटों में बंटी हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव के अलावा सुरेश पचौरी जैसे नेताओं के गुट प्रदेश की राजनीति में अच्छा खासा प्रभाव रखते हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश कांग्रेस को लेकर संजीदा हाईकमान गुटबाजी को बढ़ावा देने वाले इन नेताओं के दबाव की राजनीति को ताक पर रखकर खुद फैसला ले सकती है।
बहरहाल, सियासत और समीकरण जो भी कहें, फिलहाल पद के दावेदार विधायकों से ज्यादा इन नेताओं ने हाईकमान पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। दिग्विजयसिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव और सुरेश पचौरी के गुटों में बंटी एमपी कांग्रेस में सबसे मजबूत खिलाड़ी दिग्विजय सिंह ही नजर आ रहे हैं और मौजूदा 56 विधायकों में करीब दो दर्जन विधायक उनके समर्थक माने जाते हैं। इसका प्रभाव उन्होंने अजय सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनवाकर दिखा भी दिया है। लेकिन मिशन 2018 को लेकर दिग्गी राजा कोई बड़ी दावेदारी नहीं कर रहे हैं और ऐसा माना जा रहा है कि उनका मूक समर्थन कमलनाथ खेमे को है, क्योंकि दिग्विजय सिंह जब सीएम थे, तब कमलनाथ ने भी उनकी भरपूर मदद की थी। एक चर्चा ये भी है कि दिग्विजय सिंह अपने बेटे जयवर्धन सिंह की भविष्य की राजनीति के लिहाज से मौजूदा राजनीति से तालमेल बिठा रहे हैं और वो अपने बेटे के भविष्य को ध्यान रखकर प्रदेश की राजनीति में हस्तक्षेप करेंगे। दिग्विजय सिंह की सियासत को लेकर पहले से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी और उनके मन में क्या है, ये उस दिन ही तय हो पाएगा। जब मुख्यमंत्री के दावेदार का नाम सबके सामने आएगा।
बाकी बचे करीब तीस विधायकों में कमलनाथ, सिंधिया, अरूण यादव और सुरेश पचौरी के समर्थक विधायक हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि 2013 के विधानसभा की तरह इस बार भी कांग्रेस आलाकमान कोई रिश्क नहीं लेगा और नेताओं को कोई न कोई जिम्मेदारी देकर चुनावी मैदान में उतारेगा। शायद यही वजह है की अनिल शास्त्री मप्र कांग्रेस में सीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा को विनाशक बता रहे है।
नेताओं में एक राय नहीं!
मध्य प्रदेश कांग्रेस में एक बार फिर मध्य प्रदेश कांग्रेस की गुटबाजी खुल कर सामने आ गई है। पिछले दिनों ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि कांग्रेस को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर देना चाहिए। वहीं कमलनाथ ने दो टूक अंदाज में कहा कि मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने की जरूरत नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कांग्रेसी कब एक राय होंगे।
मुश्किल में मोहन प्रकाश
मप्र कांग्रेस में एक तरफ दिग्गजों में वर्चस्व को लेकर अंदर ही अंदर जंग चल रही है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव मोहन प्रकाश को प्रदेश कांग्रेस प्रभारी के पद से हटवाने के लिए कई विधायक लामबंद हो गए हैं। इसमें प्रदेश कांग्रेस के सभी गुटों से जुड़े विधायक शामिल हैं। इस संबंध में करीब 31 विधायकों के हस्ताक्षर वाला एक पत्र राहुल गांधी को भेजा गया है। जिसमें मोहन प्रकाश को प्रदेश की जिम्मेदारी दिए जाने के बाद कांग्रेस की स्थिति को बताया गया है। साथ ही विधानसभा, लोकसभा, नगरीय निकाय चुनाव के अलावा उपचुनावों में मिली हार को मोहन प्रकाश से जोड़ कर इस पत्र में उल्लेख किया गया है।
ज्ञातव्य है कि मोहन प्रकाश को बीके हरिप्रकाश की जगह पर प्रदेश कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया था। जून 2013 में उन्हें प्रदेश कांग्रेस का प्रभार सौंपा गया था। इसके बाद ही नवम्बर 2013 में विधानसभा चुनाव हुए। लोकसभा के चुनाव 2014 में हुए। इन दोनों चुनावों में पार्टी को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद नगरीय निकाय के चुनाव हुए। इसमें भी पार्टी किसी भी नगर निगम में अपने महापौर के उम्मीदवार को जितवा नहीं सकी। इसके अलावा उपचुनावों में भी पार्टी को ज्यादातर हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि जिस नेता का यहां की जनता और यहां के नेताओं पर असर न पड़े उसके बलबूते भाजपा का मुकाबला कैसे किया जा सकता है। अब देखना यह है कि आलाकमान विधायकों की गुहार को कितना तवज्जो देता है।
-भोपाल से अरविंद नारद