20-Mar-2017 06:21 AM
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जब इस देश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) योजना लागू की गई थी तो कहा गया था कि यह गरीबों के उद्धार के लिए मील का पत्थर साबित होगी, लेकिन यह योजना गल्तियों का स्मारक साबित हो रही है। खुद वर्तमान केंद्र सरकार ने भी इसे यूपीए की गल्तियों का स्मारक कहा था, लेकिन यह सरकार भी गल्तियां कर बैठी है। जहां योजनाओं-परियोजनाओं के लिए खरबों रूपए का प्रावधान बजट में किया गया है, वहीं मजदूरों की मजदूरी में कहीं एक तो कहीं पांच तो कहीं 18 रूपए की बढ़ोत्तरी की गई है। यह मनरेगा के तहत बीते 11 साल की सबसे कम बढ़ोतरी है जो एक अप्रैल से लागू हो जाएगी।
यह कैसी विसंगति है कि एक तरफ सरकार सरकारी कर्मचारियों को सातवां वेतनमान दे रही है वहीं मजदूरों की मजदूरी में इतनी कम बढ़ोत्तरी की गई है कि उससे वे अपने बच्चों की एक कॉपी भी नहीं खरीद सकते। वर्ष 2005 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने मनरेगा की शुरुआत की थी। इसका मकसद देश में जरूरतमंद परिवारों को कम से कम सौ दिन का रोजगार उपलब्ध कराना था। योजना के तहत न्यूनतम मजदूरी देने का प्रावधान है। इसमें मजदूरी की दरें राज्यवार संशोधित होती हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार मनरेगा के तहत असम, बिहार, झारखंड, उत्तरखंड और उत्तर प्रदेश में दैनिक मजदूरी एक रुपये, ओडिशा में दो रुपये और पश्चिम बंगाल में चार रुपये बढ़ाई गई है। मप्र में पांच रुपए वहीं अन्य राज्यों की तुलना में केरल और हरियाणा में सबसे ज्यादा 18 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। इसके तहत मनरेगा मजदूरों को अब असम में 183, बिहार और झारखंड में 168, ओडिशा में 176, उत्तराखंड में 175, मप्र में 172 और पश्चिम बंगाल में 180 रु. मिलेंगे। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इस बार मनरेगा की दैनिक मजदूरी 2.7 प्रतिशत बढ़ाई गई है, क्योंकि महंगाई दर खास तौर पर पूर्वोत्तर राज्यों में काफी कम रही है। हालांकि, केवल महंगाई दर के आधार पर वेतन बढ़ोतरी की इस दलील पर सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि सरकार अपने कर्मचारियों के मामले में इस दलील को नहीं मानती जिसने सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के आधार पर महंगाई भत्ते के रूप में अपने कर्मचारियों का वेतन 20 फीसदी बढ़ाया है।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की गारंटी देने वाली योजना की दैनिक मजदूरी में सालाना बढ़ोतरी हैरान करने वाली है। अर्थशास्त्री एस महेंद्र देव की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति ने सुझाव दिया था कि मनरेगा के तहत मजदूरी, राज्यों में न्यूनतम मजदूरी के बराबर या उससे अधिक होनी चाहिए और इसमें हर साल सीपीआई-ग्रामीण के आधार पर संशोधन किया जाना चाहिए। फिलहाल मनरेगा के तहत हर राज्य में अलग-अलग मजदूरी मिलती है। उदाहरण के तौर पर हरियाणा में 269 रुपये तो मप्र में 172 रूपये प्रतिदिन मिलते हैं। इस भारी अंतर को पाटने के लिए फिलहाल सरकार कोई कदम उठाती हुई नजर नहीं आ रही है। समस्या मनरेगा के तहत दैनिक मजदूरी में कम बढ़ोतरी की ही नहीं है, बल्कि इसमें और राज्यों द्वारा तय की जाने वाली न्यूनतम मजदूरी में अंतर भी लगातार बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए असम में न्यूनतम मजदूरी 240 रुपये है, जबकि मनरेगा की नई मजदूरी 183 रुपये ही पहुंच पाई है। इसी तरह बिहार में न्यूनतम मजदूरी 181 रुपये है, जबकि मनरेगा की दैनिक मजदूरी 168 रुपये पर अटकी है। यह अंतर मनरेगा की मजदूरी को राज्यों के कृषि मजदूरों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांकÓ (सीपीआईएएल) से जोडऩे के बाद पैदा हुआ है। मजदूर किसान शक्ति संगठन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे का कहना है कि यह सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें किसी श्रमिक को राज्य की न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान बंधुआ मजदूरी जैसा बताया गया है। उनके मुताबिक केंद्र सरकार ने 2014 में महेंद्र देव समिति की सिफारिश के आधार पर मनरेगा मजदूरी और न्यूनतम मजदूरी के अंतर को घटाने की बात मानने के बाद कोई कदम नहीं उठाया है। निखिल डे का यह भी कहना है कि महेंद्र देव समिति ने 2014 को आधार वर्ष मानकर मजदूरी की दो तरह की दरें लाने और इनकी समीक्षा ग्रामीण मजदूरों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांकÓ के आधार पर करने की सिफारिश की थी जो सीपीआईएएल से ज्यादा होता है।
अधिकारियों का कहना है कि समिति की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, क्योंकि वित्त मंत्रालय ने आधार वर्ष के आधार पर मनरेगा मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी के बराबर लाने की सिफारिश पर सवाल उठाया था। इसके लागू होने पर पहले ही साल राजकोष पर कम से कम 3,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आता। हालांकि, मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अतिरिक्त सचिव नागेश सिंह के नेतृत्व में एक समिति न्यूनतम मजदूरी तय करने की एक समान प्रक्रिया लाने के लिए राज्यों से बात कर रही है। अगर इसमें सफलता मिलती है तो मनरेगा की मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी के बराबर लाया जा सकता है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम में मध्यप्रदेश में जॉब कार्डधारी श्रमिकों को एक अप्रैल, 2017 से प्रतिदिन न्यूनतम मजदूरी 172 रुपये की दर से मिलेगी। फिलहाल इस योजना में न्यूनतम मजदूरी दर 167 रुपये प्रतिदिन निर्धारित है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने निर्देश दिये हैं कि मनरेगा श्रमिकों को एक अप्रैल, 2017 से बढ़ी हुई दरों पर मजदूरी भुगतान की सूचना व्यापकता से पहुंचायें।
भारत सरकार ने गत 28 फरवरी, 2017 को जारी अधिसूचना में एक अप्रैल, 2017 से लागू होने वाली मनरेगा मजदूरी की न्यूनतम दरों का राज्यवार निर्धारण किया है। आयुक्त मध्यप्रदेश राज्य रोजगार गारंटी परिषद जी.व्ही. रश्मि ने इस संबंध में समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत को विस्तृत दिशा-निर्देश दिये हैं। निर्देश में कहा गया है कि वे उनके कार्यक्षेत्र की समस्त जनपद पंचायत और ग्राम-पंचायतों में मनरेगा मजदूरी की नई न्यूनतम दरों का व्यापक प्रचार-प्रसार करें। साथ ही प्रत्येक ग्राम-पंचायत कार्यालय के सूचना-पटल पर संशोधित न्यूनतम मजदूरी की एक अप्रैल से लागू होने वाली नई दरों की जानकारी प्रदर्शित की जाये।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के सभी 51 जिलों में मनरेगा का क्रियान्वयन हो रहा है। इस योजना में करीब 62 लाख 89 हजार जॉब कार्डधारी श्रमिक पंजीकृत हैं। मौजूदा वित्तीय वर्ष 2016-17 में अब तक 936.85 लाख मानव दिवस का रोजगार सृजन हुआ है। इसमें से 150.42 लाख मानव दिवस का रोजगार अनुसूचित-जाति तथा 329.36 लाख मानव दिवस का रोजगार अनुसूचित-जनजाति के श्रमिकों को दिया गया है। चालू माली साल में मनरेगा में श्रम कार्य करने वालों में 41.76 फीसदी महिला श्रमिक शामिल हैं। इन्हें 391.31 लाख मानव दिवस का रोजगार मुहैया करवाया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि केंद्र सरकार ने मनरेगा की जो मजदूरी बढ़ाई है वह मजदूरों की खुशहाली के लिए पर्याप्त है?
मंत्री पर मनरेगा का भ्रष्टाचार छुपाने
का आरोप
उधर, विचार मध्यप्रदेश ने मंत्री गोपाल भार्गव पर विधानसभा में मनरेगा में हुए भारी भ्रष्टाचार को छुपाने का आरोप लगाया है। संस्था के विनायक परिहार, पारस सकलेचा, अक्षय हुंका एवं आजाद सिंह डबास ने कहा है कि मध्यप्रदेश के 230 जन प्रतिनिधियों के सामने एक लिखित सवाल के जवाब को गलत देकर न सिर्फ पूरे प्रदेश को गुमराह करने की कोशिश की गई, बल्कि विधानसभा के अंदर झूठ बोलकर विधानसभा रूपी मंदिर, जिसमें पूरे प्रदेश की आस्था है, उससे भी खिलवाड़ किया है। यह कोई साधारण प्रश्न नहीं है, बल्कि लाखों मजदूरों को मनरेगा के माध्यम से मिलने वाले पैसे से सम्बंधित है। मनरेगा में विलम्ब से होने वाले भुगतान को लेकर उच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट आदेश पारित किए हैं। संस्थान ने कहा कि सवाल मनरेगा में भुगतान में होने वाली देरी को लेकर पूछा गया था कि श्योपुर जिले में मनरेगा में कुल कितनी क्षतिपूर्ति राशि दी जाना थी? जिसके जवाब में पंचायत मंत्री की तरफ से स्पष्ट जवाब दिया गया कि श्योपुर जिले में कोई क्षतिपूर्ति
राशि अधिरोपित नहीं है। जबकि श्योपुर जिले में विगत दस वर्षों के मनरेगा मजदूरों को करोड़ों की मजदूरी का भुगतान विलंब से किया गया है।
मप्र में मनरेगा की मजदूरी सबसे कम
इस बार केंद्र सरकार ने मप्र के मनरेगा मजदूरों की मजदूरी में सबसे अधिक 5 रूपए की बढ़ोतरी की है। उसके बाद भी मध्यप्रदेश में मनरेगा की मजदूरी देश के बाकी राज्यों की अपेक्षा सबसे कम है। यहां पहले प्रतिदिन 167 रुपए मजदूरी दी जाती थी, जो कि इसी साल एक अप्रैल से 6 रूपए की बढ़ात्तरी के साथ 172 रुपए हो जाएगी। पिछले साल 8 रुपए दैनिक की बढ़त के बाद मप्र में मनरेगा मजदूरी 167 रुपए दैनिक हुई थी। जबकि हरियाणा में सबसे ज्यादा मजदूरी 259 रुपए प्रतिदिन दी जा रही है। वहीं चंड़ीगढ़ में ये 248, गोवा में 229 रुपए दैनिक है। गुजरात में मजदूरों को 188 रुपए, राजस्थान में 181 रुपए, उत्तरप्रदेश और ओडि़शा में 174 रुपए दिए जाते हैं।
-विकास दुबे