उजड़ जाएगा बाघों का संसार
18-Mar-2017 11:00 AM 1234900
मप्र में तेजी से जंगल सिमट रहे हैं। ऊपर से विकास कार्यों के लिए वनक्षेत्रों की बलि चढ़ाई जा रही है। इससे बाघ सहित अन्य वन्यप्राणियों के संसार पर खतरा मंडरा रहा है। ऐसा ही एक खतरा पन्ना टाइगर रिजर्व के ऊपर मंडरा रहा है। आने वाले दिनों में पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों को रहवास की बड़ी समस्या होने वाली है। जिसे लेकर प्रबंधन भी चिंतित है। दरअसल, रिजर्व फारेस्ट क्षेत्र में केन, बेतवा लिंक परियोजना के तहत बांध प्रस्तावित है। जो डोढऩ गांव में बनेगा। केन्द्र सरकार से परियोजना को मंजूरी मिल चुकी है। कार्य के लिए टेंडर हो चुके हैं। आगामी कुछ ही महीनों में काम शुरू होने की उम्मीद है। जैसे-जैसे वक्त गुजर रहा है, प्रबंधन की चिंता बढ़ती जा रही है। बांध बनने से बाघों के रहवास का 72 वर्ग किमी क्षेत्रफल डूब जाएगा। रिजर्व क्षेत्र के जंगल में बसे 6 गांव भी नहीं रहेंगे। टाइगर रिजर्व के जिस क्षेत्र में परियोजना का बांध बनाने की शुरूआत हो चुकी है उसमें बाघिन टी-6 के अलावा बाघ टी-412, टी-411, टी-431, टी-432 और टी-433 समेत अन्य बाघों का रहवास है। बाघिन टी-6 ने हाल में ही चार शावकों को जन्म दिया है। बांध बनने से इन्हें इस क्षेत्र से जाना होगा। जो बाघ-बाघिनों की यहां बसी दुनिया के लिए बड़ा नुकसान होगा। प्रबंधन बाघों के यहां बसे कुनबे के नए रहवास और व्यवहार में संभावित परिवर्तन को लेकर असमंजस में हैं। परियोजना के बांध से टाइगर रिजर्व की चिंता का कारण यह भी है कि, पहले से ही बाघों की बढ़ती संख्या के हिसाब से जंगल कम पड़ रहा है। प्रबंधन युवा हो रहे बाघों को फ्री जोन देने की कोशिश में है। उस पर उसके हिस्से का बड़ा जंगल बांध के डूब क्षेत्र में आने से बाघों को रिजर्व फारेस्ट में बनाए रख पाना और मुश्किल होगा। संभावना इस बात की है कि ज्यादातर बाघ-बाघिन रिजर्व फारेस्ट से निकल कर आसपास के जंगलों में ठिकाना बना सकते हैं। इससे रिजर्व फारेस्ट में बाघों की संख्या कम हो सकती है। पीसीसीएफ वन्य प्राणी जितेन्द्र अग्रवाल कहते हैं कि अब तक कोर एरिया के गांवों की शिफ्टिंग होती थी, अब बफर क्षेत्र के जिन गांवों के लोग इच्छुक हैं, उन्हें शिफ्ट किया जाएगा। सतपुड़ा नेशनल पार्क, संजय टाइगर रिजर्व और नौरादेही अभयारण्य को बाघों के लिहाज से विकसित किया जा रहा है। बाघों की केयरिंग कैपिसिटी पर मंथन चल रहा है। उधर केन, बेतवा लिंक परियोजना से रिजर्व क्षेत्र में रहने वाले वनवासियों पर भी विस्थापन का खतरा मंडराने लगा है। जानकारों का कहना है कि इससे न केवल वनवासियों के सामने रहवास की बल्कि रोजगार और कामकाज की समस्या भी सामने आएगी। यानी यह परियोजना वन्यप्राणियों के साथ वनवासियों के संसार पर भी खतरा है। नेशनल पार्कों की स्थिति कभी टाइगर स्टेट के रूम में ख्यात रहे मप्र में आज भी बाघों की दहाड़ कम नहीं हुई है। लेकिन एक बार जो तमगा छिन गया सो छिन गया। कान्हा नेशनल पार्क में 83 बाघ और 40 शावक हैं, यह पार्क 2117 वर्ग किमी में फैला हुआ है। बांधवगढ़ नेशनल पार्क में 60 बाघ और 35 शावक हैं। यह पार्क 1530 वर्ग किमी में फैला हुआ है। पेंच नेशनल पार्क में 51 बाघ और 20 शावक हैं। यह पार्क 1179 वर्ग किमी में फैला हुआ है। पन्ना नेशनल पार्क में 21 बाघ और 11 शावक हैं, यह पार्क 1597 वर्ग किमी में फैला हुआ है। संजय टाइगर रिजर्व में 8 बाघ और 5 शावक हैं। यह पार्क 1644 वर्ग किमी में फैला हुआ है।  वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के अनुसार बाघ शावक 10 से 11 माह के होने पर मां से अलग जंगल में स्वतंत्र जीवन जीने लगते हैं। उन्हें शिकार सीखने फ्री जोन की जरूरत होती है। 14 माह के बाद जब बाघिन को भरोसा होने लगता है। शावक शिकार करने लगते हैं तो वह उन्हें छोडक़र भी चली जाती है। -सिद्धार्थ पाण्डे
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