18-Mar-2017 10:43 AM
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दरअसल भारतीय राजनीति में बड़बोलापन हावी होता जा रहा है। बड़बोलेपन के शिकार नेता हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। इसी से प्रेरित होकर उज्जैन में आरएसएस के एक स्थानीय प्रचार प्रमुख कुंदन चंद्रावत ने एक सभा को संबोधित करते हुए फतवा जारी कर दिया कि जो भी केरल के मुख्यमंत्री विजयन का सिर काट कर लाएगा, उसे मैं एक करोड़ रुपए दूंगा! फिर क्या था उनके इस बयान पर जोरदार बवाल मच गया। राष्ट्रवाद के विचारों वाले संगठन संघ पर उंगली उठने लगी। लेकिन संघ ने मौके की नजाकत को भांपते हुए चंद्रावत को बाहर का रास्ता दिखा दिया। साथ ही यह संदेश भी दे दिया कि ऐसा बड़बोलापन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यह विचित्र है कि जिस केरल को कुदरती खूबसूरती के लिए ‘भगवान का घर’ के नाम से जाना जाता है, वहां आज राजनीतिक हिंसा की समस्या दिनोंदिन जटिल होती जा रही है। बीते दो-तीन दिनों के दौरान वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सत्तारूढ़ माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच जिस तरह हिंसा हुई है, उससे एक बार फिर यही जाहिर हुआ है कि दोनों पक्षों के बीच वर्चस्व की लड़ाई और हिंसक तेवर में कमी नहीं हो रही है। हद तो तब हो गई जब कोझिकोड के नदापुरम इलाके में आरएसएस के दफ्तर के पास देसी बम से हमला किया गया और उसमें तीन लोग घायल हो गए, वहीं शायद इसके जवाब में विष्णुमंगलम इलाके में माकपा के दफ्तर को जला कर खाक कर दिया गया और डीवाइएफआई के दो कार्यकर्ताओं को काट डाला गया। हैरानी की बात है कि माकपा और आरएसएस के बीच लंबे समय से तीखी और हिंसक भिड़ंत होती रही है, लेकिन आज तक दोनों में से शायद किसी भी पक्ष ने इसके हल की ओर बढऩे की जरूरत नहीं समझी।
यह मामला तब सामने आया, जब उज्जैन में आरएसएस के एक स्थानीय प्रचार प्रमुख कुंदन चंद्रावत ने एक सभा को संबोधित करते हुए फतवा जारी कर दिया कि जो भी केरल के मुख्यमंत्री विजयन का सिर काट कर लाएगा, उसे मैं एक करोड़ रुपए दूंगा! हालांकि बवाल मचने पर आरएसएस ने कुंदन चंद्रावत के बयान से अपना पल्ला झाड़ लिया, लेकिन ऐसी बातें न सिर्फ हिंसा भडक़ने की आंशका के मद्देनजर, बल्कि किसी भी स्थिति में कही जाती हैं, तो इसके असर का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह बेवजह नहीं है कि इस बयान के बाद हिंसा का दौर फिर तेज हो गया है। यों केरल में पहले ही माकपा और आरएसएस के कार्यकर्ता आमने-सामने रहते हैं और इसका एक लंबा इतिहास है। पिछले पांच दशक से जारी हिंसा में करीब डेढ़ दशक पहले कुछ सालों तक एक-दूसरे पर हिंसक हमले में कमी आई थी। लेकिन लगभग तीन साल पहले राजनीतिक गतिविधियां फिर से आपसी संघर्ष में बदल गर्इं। यहां तक कि उन मंदिरों को भी इसकी चपेट में लेने की खबरें आर्इं, जहां जाने वाले श्रद्धालुओं में से शायद ही कोई इस टकराव में कोई पक्ष होते हों।
करीब छह महीने मंदिर परिसरों में हथियार छिपाने और आरएसएस की शाखाओं में इसका प्रशिक्षण देने के आरोप सामने आने के बाद केरल में देवोस्वोम विभाग ने इस पर पाबंदी लगाने का प्रस्ताव रखा था। दूसरी ओर, माकपा पर भी सुनियोजित तरीके से आरएसएस के खिलाफ हिंसा करने की शिकायतें आम रही हैं। आज हालात यह है कि दोनों ही पक्ष अपने दो सौ से लेकर तीन सौ कार्यकर्ताओं के मारे जाने का दावा करते हैं। हालांकि यह ध्यान रखने की बात है कि माकपा और आरएसएस के बीच लंबे समय से जारी इस हिंसक संघर्ष के बावजूद इसका स्वरूप अब तक सांप्रदायिक नहीं हुआ है। लेकिन सबसे ज्यादा साक्षरता वाले केरल में अगर यह समस्या गहराती जा रही है, तो यह चिंता की बात इसलिए है कि वर्चस्व के लिए की गई हिंसा किसी एक जगह और एक चरित्र में स्थिर नहीं रहती है। सवाल है कि केरल में दोनों पक्षों में से कौन यह सचमुच चाहता है कि इस हालत में सुधार हो! क्या राजनीतिक वर्चस्व के लिए लोकतांत्रिक तरीके से जनता के बीच पैठ बनाने की बजाय हिंसक संघर्ष ही एकमात्र रास्ता रह गया है? हालांकि विवादित बयान देकर सुर्खियों में आए उज्जैन के कुंदन चंद्रावत को दायित्व से मुक्त कर संघ ने यह संकेत दे दिया है कि उसे हिंसक राजनीति पसंद नहीं है।
वामदल हो रहे हिंसक
जानकारों का कहना है कि वामदल पिछले कुछ सालों से हिंसक होते जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल, केरल और नक्सली गतिविधियां इसके प्रमाण है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक डॉ. प्रकाश शास्त्री कहते हैं कि संघ कभी भी हिंसा के पक्ष में नहीं है। उज्जैन में जनाधिकार समिति के धरने में विवादित बयान देने के कारण संघ के बारे में भ्रम निर्माण हुआ है। इसलिए भाषण देने वाले चंद्रावत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दायित्व से मुक्त किया जाता है। वह कहते हैं कि एक व्यक्ति भावनाओं में बहकर कुछ अनाप-शनाप बोल जाता है तो उसे संघ का विचार मानना भ्रम है। ऐसे व्यक्तियों की संघ में भी कोई जरूरत नहीं है।
-श्यामसिंह सिकरवार