18-Mar-2017 10:40 AM
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छत्तीसगढ़ सरकार कुछ वक्त पहले तक ही बस्तर के हाई प्रोफाइल आईजी रहे आईपीएस अधिकारी एसआरपी कल्लूरी से बेहद नाराज है। कल्लूरी को एक दिन के भीतर सरकार ने तीन नोटिस थमा दिये हैं और जवाब तलब किया है। ये सभी नोटिस छत्तीसगढ़ के डीजीपी ए एन उपाध्याय की ओर से भेजे गये हैं। पहले नोटिस में कल्लूरी द्वारा सोशल मीडिया में की गई टिप्प्णी पर जवाब तलब है। कल्लूरी के एक ट्वीट को टीवी चैनलों ने जमकर प्रसारित किया जिससे सरकार को शर्मिंदगी हुई है। सरकार ने फरवरी में जारी की गई सोशल मीडिया नीति का हवाला देकर कल्लूरी से पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ कार्रवाई हो। दूसरे नोटिस में पुलिस महानिदेशक उपाध्याय ने कल्लूरी से कहा है कि वह उनसे अनुमति लेकर ही रायपुर मुख्यालय से बाहर जाएं। तीसरे नोटिस में कल्लूरी को जगदलपुर में टाटा कंपनी के कार्यक्रम में बतौर अतिथि शामिल होने पर सवाल किया गया है।
माओवादियों के खिलाफ आक्रामक रणनीति की बातें करने वाले कल्लूरी पिछले महीने मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया के घर पर कुछ स्वयंभू संगठनों के हंगामे के बाद मुश्किल में पड़ गये और उन्हें अपनी टिप्पणियों के कारण पद से हटना पड़ा। कल्लूरी के रवैये और बयान सीएम रमन सिंह के सार्वजनिक बयानों से मेल नहीं खा रहे थे। अब माना जा रहा है कि सरकार काफी ताकतवर हो गई कल्लूरी के कद को छोटा कर रही है। छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल इलाके बस्तर के बीहड़ों में निर्भय वनराज की तरह अकेले घूमने के आदी रहे भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी आईजी एसआरपी कल्लूरी अब राजधानी रायपुर के पुलिस मुख्यालय में बैठकर मुख्यमंत्री जैसी सुरक्षा के घेरे में रहेंगे। इस खबर से सामान्य तौर पर ऐसा महसूस किया जा सकता है कि जैसे जंगल के शेर को सफारी में बैठाकर उसकी सुरक्षा के तौर पर चौकीदारी की जा रही है। लेकिन वस्तुत: ऐसा है नहीं। बस्तर में कल्लूरी अकेले घूम लेते थे क्योंकि नक्सलियों के मन में यह दहशत रहती थी कि भले ही वे अकेले नजर आयें, मगर उन पर सुरक्षा का मजबूत साया मौजूद है।
बस्तर से मुक्त होने के बाद जब कल्लूरी हैदराबाद रवाना हुए तो उन्होंने सुरक्षा लौटाकर यह पैगाम भी दिया कि वे अपनी हिफाजत करने में सक्षम हैं। किन्तु उनके इस कदम से यह ध्वनित हुआ कि वे जिनके खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, उन्हीं की कथित पक्षधर हस्ती को सुरक्षा दिये जाने पर वे नाराज हैं।
लेकिन ऐसा है नहीं। कल्लूरी जानते हैं कि लोकतंत्र में सरकार को सब तरफ ध्यान देना होता है। कल्लूरी लोकसेवक हैं, इसलिए वे अपनी सीमाओं से अवगत हैं। लिहाजा सुरक्षा लौटाने के पीछे यह कारण नहीं हो सकता। यह तो राजधर्म है कि सरकार सभी की सुरक्षा तय करे। अब सरकार ने आईजी कल्लूरी की सुरक्षा बढ़ाकर जेड से जेड प्लस कर दी है तो ऐसा करना बेहद जरूरी था। जब कोई कमाण्डर मोर्चे पर तैनात रहता है तब वह हर क्षण मुस्तैद रहता है और दुश्मन को यह आभास होता है कि उससे लोहा लेना आसान नहीं है।
मगर जब वही कमाण्डर मोर्चे पर न हो तो उसकी सुरक्षा पहले जैसी मजबूत नहीं रह जाती। जरा सी चूक दुश्मन को हमला करने का मौका मुहैया करा देती है। सरकार को खुफिया सूचनायें मिलीं कि नक्सलियों से लम्बे समय तक संघर्ष करने वाले आई जी कल्लूरी की सुरक्षा का खतरा बढ़ गया है तो उन्हें मुख्यमंत्री के समकक्ष सुरक्षा उपलब्ध कराने का फैसला ले लिया गया। अब सरकार का यही फैसला विपक्ष को सताने लगा है। इसलिए सबने कल्लूरी को निशाने पर ले लिया है। लेकिन मुख्यमंत्री रमन सिंह कल्लूरी की नक्सल विरोधी सेवाओं को नकारने को तैयार नहीं हैं।
मुख्यमंत्री कल्लूरी के समर्थन में
एक तरफ मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कल्लूरी की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने बस्तर में पुलिस का मनोबल बढ़ाया तो दूसरी तरफ गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने कल्लूरी पर मानवाधिकार के मामले में माहौल बिगाडऩे का ठीकरा फोड़ दिया। जहां सरकार ने कल्लूरी की सेवाओं का उचित मूल्यांकन करते हुए यह संदेश दे दिया है कि वे सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। दूसरा अर्थ यह है कि सरकार निकट भविष्य में उन्हें कोई ठोस जिम्मेदारी दे सकती है। सरकार मानवाधिकार हनन का हो-हल्ला थमते ही कल्लूरी को वापस बस्तर भेज सकती है। यह इशारा गृहमंत्री पैकरा के इस आशय से मिल चुका है कि जब जरूरी होगा, कल्लूरी को बस्तर भेजा जा सकता है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला