एसीबी ने दी थी क्लीनचिट सीबीआई ने दबोचा
03-Mar-2017 08:52 AM 1234827
छत्तीसगढ़ के आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के साथ उनके साले आनंद अग्रवाल और दिल्ली नोएडा के एक बिचौलिए भगवान सिंह और सईद बुरहानुदीन को सीबीआई ने हाल ही में अपनी गिरफ्त में लिया है। आईएएस पर आरोप है कि उन्होंने इंकम टैक्स के 9 साल पुराने मामले को निपटाने के लिए बिचौलिए के माध्यम से सीबीआई अफसरों को घूस देने की पेशकश की थी। आईएएस अग्रवाल पर आय से अधिक संपत्ति के मामले में राज्य की जांच एजेंसी एसीबी ने भी मामला दर्ज किया था लेकिन पिछले महीने ही एसीबी ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी। इस क्लीन चिट के बाद अभी चंद रोज पहले सीबीआई ने आईएएस को धर-दबोचा तो सवालों का पहाड़ खड़ा हो गया है। सबसे अहम सवाल यहीं कि जब अग्रवाल आयकर विभाग और एसीबी की जांच-पड़ताल से बरी हो गए थे तो फिर उन्हें सीबीआई से पिंड छुड़ाने के लिए घूस देने की पेशकश क्यों करनी पड़ी? अग्रवाल का कहना है कि सीबीआई सिर्फ उनसे इसलिए चिढ़ी हुई है क्योंकि उन्होंने दिल्ली की हाईकोर्ट में सीबीआई के क्षेत्राधिकार को चुनौती दी थी। ऐसे में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि जिस इंकम टैक्स विभाग और एसीबी ने उन्हें लंबी जांच प्रक्रिया से गुजरने के लिए विवश किया, अग्रवाल ने उनके खिलाफ कोई लीगल एक्शन क्यों नहीं लिया? अग्रवाल जब स्वास्थ्य सचिव थे तब एक के एक बाद एक कई घोटाले सामने आते रहे। हालांकि हर तरह की खरीदी की जवाबदेही तात्कालीन स्वास्थ्य संचालक पर थोपी जाती रही, लेकिन तब भी एसीबी उन पर हाथ डालने से बचती रही। उनकी गिरफ्तारी के साथ ही यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि केंद्र से अभियोजन की स्वीकृति मिलने के बाद भी प्रदेश में हुए नान घोटाले के दो आरोपी आईएएस आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा को एसीबी ने अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया है? क्या इन अफसरों की गिरफ्तारी के लिए भी केंद्रीय जांच एजेंसी का मुंह ताकना होगा? जब प्रदेश के मुख्य सचिव सुनील कुमार थे तब अखिल भारतीय सेवा के भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अफसरों में बाबूलाल अग्रवाल का नाम भी विशेष छानबीन समिति के पास भेजा गया था और यह अनुशंसा की गई थी कि उनकी अनिवार्य सेवा समाप्ति के बारे में विचार किया जा सकता है लेकिन तब भी सरकार लंबे समय तक अग्रवाल पर मेहरबान रही और तो और उन्हें बहाल कर उच्च शिक्षा विभाग का प्रमुख सचिव भी बनाया गया। ताजा मामला जिसमें उन्होंने सीबीआई को रिश्वत देने की पेशकश की है वह आयकर विभाग की छापामार कार्रवाई से संबंधित है। वैसे तो आयकर विभाग की नजर आईएएस अग्रवाल पर तब से थीं जब उन्होंने 2008 में अपने परिवार के एक सदस्य का 85 लाख का बीमा करवाया था। आयकर विभाग ने अपने दो साल की निगरानी के बाद 4 फरवरी 2010 को अग्रवाल और उनके परिजनों के कई ठिकानों पर दबिश दी तब उनके सीए के घर से विभिन्न बैंकों के 220 से ज्यादा फर्जी बैंक खाते पकड़े गए और यह पता चला कि उनके पास ढाई सौ करोड़ से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति है, लेकिन थोड़े ही दिनों में आयकर विभाग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि अग्रवाल के पास कुल 93 करोड़ रुपए की अनुपातहीन संपति है। आयकर विभाग की रिपोर्ट के बाद निलंबित किए गए अग्रवाल बहाल कर दिए गए। थोड़े ही दिनों बाद सरकार ने पूरा मामला आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो यानि एसीबी के हवाले कर दिया। एसीबी पूरे मामले की कई स्तरों पर पड़ताल करती रही, लेकिन सबूत नहीं खोज पाई। जबकि इस मामले में सीबीआई को तो पुख्ता सबूत मिले और उसने मामला दर्ज भी किया। अब सीबीआई अग्रवाल के साथ सांठ-गांठ कर भ्रष्टाचार करने वालों की पड़ताल में जुट गई है। एसीबी सरकारी थाना वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा है कि एसीबी को मैं सरकार का थाना मानता हूं। सरकार जैसा बोलती है थानेदार वहीं करते हैं। यह कम गंभीर बात नहीं है कि प्रदेश के जिस आईएएस रणवीर शर्मा को एसीबी ने रंगे हाथ रिश्वत लेते हुए पकड़ा था उसे मंत्रालय में अटैच कर दिया गया और उसके चपरासी को जेल की हवा खानी पड़ रही है। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व मुख्य सचिव ने विशेष छानबीन समिति के पास प्रदेश के कई दागदार अफसरों की सूची भेजी थीं, लेकिन सरकार ने किसी भी दागदार अफसर पर ठोस कार्रवाई करने में कोई पहल नहीं की है। -रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला
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