कैंपस में हिंसक सियासत
18-Mar-2017 10:38 AM 1234790
पिछले एक साल से निरंतर विश्वविद्यालय के कॉलेज कैंपस को हिंसक राजनीति का केंद्र बनाने की कोशिश तेज होने लगी है। स्कूल कॉलेजों के छात्र संगठनों में अक्सर मतभेद होते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से ये मतभेद फसाद में बदलते जा रहे हैं। कई फसाद कॉलेजों से उठकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे। इन मामलों में कई बार लोकप्रिय हस्तियों ने तो अपनी टिप्पणी दी ही राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टियों ने भी अपना-अपना स्वार्थ साधा है। कुछ ऐसा ही मामला दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में नजर आ रहा है। जहां छात्र संघ के निशाने पर आई एक छात्रा को लेकर लोकतांत्रिक मर्यादाओं को दर किनार कर टीका-टिप्पणी की जा रही है और मामले को तूल दिया जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में एक सेमिनार होने वाला था। इसमें जेएनयू के स्टूडेंट लीडर उमर खालिद और शहला राशिद को इनवाइट किया गया था। छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एबीवीपी ने इसका जमकर विरोध किया, क्योंकि खालिद पर जेएनयू में देशविरोधी नारेबाजी करने का आरोप है। इसके बाद छात्र संगठन आएसा और एबीवीपी के बीच हिंसा हुई। इस झड़प के बाद गुरमेहर कौर नाम की छात्रा ने अपना फेसबुक प्रोफाइल पिक्चर बदला और सेव डीयू कैम्पेन शुरू किया। उसने लिखा कि मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ती हूं। एबीवीपी से नहीं डरती। मैं अकेली नहीं हूं। भारत का हर स्टूडेंट मेरे साथ है। एबीवीपी का बेगुनाह छात्रों पर किया गया हमला परेशान करने वाला है। इसे रोका जाना चाहिए। यह हमला प्रोटेस्ट कर रहे लोगों पर नहीं था, बल्कि यह डेमोक्रेसी के हर उस विचार पर हमला था। उनकी इस पोस्ट के बाद उन्हें जान से मारने और बलात्कार करने की धमकी दी गई। यह मामला अब तक कैंपस तक ही था। लेकिन गुरमेहर इसी अकांट पर यह लिखा कि उनके पिता की जान पाकिस्तान ने नहीं बल्कि युद्ध ने ली। उसके बाद वह चर्चा में आईं। दरअसल गुरमोहर कौर शहीद कैप्टन मंदीप सिंह की बेटी हैं। वह कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स के कैम्प पर 1999 में आतंकी हमले में शहीद हो गए थे। उनके इस पोस्ट का मखौल उड़ाया गया। पहले वीरेंद्र सहवाग ने एक तरह से इस बयान का मजाक बना दिया, फिर अभिनेता रणदीप हुड्डा, कुश्ती की खिलाड़ी बबीता फोगाट ने गुरमेहर पर पाकिस्तान के प्रति नरम होने का आरोप लगाया। मुक्केबाज योगेश्वर दत्त ने गुरमेहर की तुलना ओसामा बिन लादेन और हिटलर से कर दी। गृह राज्यमंत्री किरन रिजीजू ने उनके दिमाग को गंदा करने की बात कही तो कई दूसरे नेता भी गुरमेहर के पक्ष-विपक्ष में उतर गए। कॉलेज कैंपस में इससे पहले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जेएनयू में छात्र संगठन का अपने देश के खिलाफ नारे लगाने का मामला गरमाया था। जिसमें जेएनयू छात्र संघ के नेता कन्हैया कुमार को निशाना बनाया गया था। यह मामला भी राष्ट्रीय स्तर पर उछला। कन्हैया के साथ कोर्ट में झड़पें हुईं थीं। उन्हें देशद्रोही करार दिया गया। इस संघर्ष के बाद भी राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक पार्टियों भाजपा और माकपा के बीच बयानों का सिलसिला चला था। अभी ज्यादा पुराना मामला नहीं हुआ है जब हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला नामक दलित छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। उसकी हत्या के बाद जिस तरह बयानों का दौर चला था उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। कालेजों में बढ़ रहा है वैचारिक असहिष्णुता का माहौल जानकारों की मानें तो जिस तरह से पिछले कुछ समय से छात्र राजनीति मुख्यधारा की राजनीति से संचालित होती आ रही है। उससे कॉलेजों में वैचारिक असहिष्णुता का माहौल बढ़ा है। उनमें हिंसक झड़पें आम हो चली हैं। यह अक्सर देखा गया है कि जब भी विद्यार्थियों में भिडंत होती है तो राजनीतिक दल अपने-अपने छात्र संगठनों के बचाव में उतर आते हैं। हाल ही में हुई घटनाओं में यही देखने को मिल रहा है। जानकारों की मानें तो पिछले कुछ सालों में देशभक्ति के नाम पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद उग्र तेवर अख्तियार करता देखा जा रहा है और यह भी कि उसके बचाव में भाजपा भी हर मामले के बाद खड़ी नजर आती है। मौका पड़ता है तो लोकतांत्रिक मर्यादा की परवाह किए बगैर बयानबाजी भी खूब करती है। अब तक यह होता रहा है कि समाज के जिम्मेदार नागरिक और खासतौर पर जानी-मानी हस्तियां जो खेल, कला और साहित्य से जुड़ी हैं, वे विभिन्न मामलों पर तार्किक बयान देते आए हैं। लेकिन यह पहला मामला है जब वीरेंद्र सहवाग और रणदीप हुड्डा जैसे लोगों ने मामले को हल्के में लेने की कोशिश की। -दिल्ली से रेणु आगाल
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