मतलब ब्लास्ट का इंतजार था!
18-Mar-2017 10:26 AM 1234780
शांति के टापू मप्र को भी आतंकी नजर लग गई। अभी तक आतंक के स्लीपर सेल रहे मप्र में पहली बार एक सवारी गाड़ी में विस्फोट कर आतंकियों ने यहां की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दी है। सबसे हैरानी की बात है प्रदेश में सिमी, आतंकी, नक्सली गतिविधियां संचालित हो रही हैं लेकिन मप्र पुलिस के खुफिया तंत्र को इसकी भनक तक नहीं लग पाती है। ट्रेन ब्लास्ट मामले में भी जब खुफिया विभाग के फेल होने की बात उठी तो विभाग के अधिकारियों का कहना था कि इस घटना की सूचना उन्हें थी। तो सवाल उठता है कि अगर पुलिस के खुफिया विभाग को इसकी जानकारी थी तो उसने आतंकियों पर पहले कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या खुफिया विभाग को ब्लास्ट का इंतजार था? दरअसल, पिछले एक दशक में कई ऐसे अवसरों पर देखने को मिला है कि मप्र पुलिस का खुफिया विभाग सूचनाओं को एकत्र करने में विफल रहा है। इस बार भी मप्र पुलिस का खुफिया तंत्र फेल साबित हुआ। आतंकी घटना भले ही मप्र में पहली बार हुई हो, लेकिन सिमी, नक्सलियों और आईएसआई की गतिविधियों को ट्रैप करने में पहले भी खुफिया तंत्र की नाकामी साबित हो चुकी है। जानकारों की मानें तो मप्र पुलिस के इंटेलीजेंस का ढांचा ही बिखर गया है। पुलिस के पास सूचनाएं तक नहीं होती हैं। पुलिस को सूचना देने वाले मुखबिर नहीं हैं। इस वजह से कई गंभीर मामलों में पुलिस को निराशा हाथ लगती है। मध्यप्रदेश में रेल विस्फोट के बाद यहां की पुलिस तत्काल सक्रिय हुई और संदिग्ध दहशतगर्दों को गिरफ्तार कर लिया। उनसे मिली सूचना से पता चला कि उनके दल का सरगना लखनऊ में छिपा है। मध्यप्रदेश पुलिस की सूचना के आधार पर उत्तर प्रदेश के विशेष सुरक्षा दस्ते ने छापामारी की और मुठभेड़ में संदिग्ध आतंकी को मार गिराया। दूसरे शहरों से भी कुछ दहशतगर्दों को गिरफ्तार किया गया। यह निश्चित रूप से मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के सुरक्षा बलों की बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। अक्सर ऐसी घटनाओं के बाद शिकायत रही है कि दो राज्यों के सुरक्षा बलों के बीच उचित तालमेल न होने और सूचनाओं का ठीक से आदान-प्रदान न हो पाने के कारण दहशतगर्द अपनी योजनाओं को अंजाम देने के बाद निकल भागने में कामयाब होते हैं। इससे एक बार फिर रेखांकित हुआ है कि राज्यों की पुलिस और खुफिया एजेंसियों के बीच तालमेल ठीक रहे, तो आतंकवाद या फिर किसी भी ऐसे संगठित अपराध पर नकेल कसने में आसानी होगी। लेकिन देखा यह जा रहा है कि दूसरे राज्यों की पुलिस से तालमेल तो दूर की बात है खुद प्रदेश की पुलिस में ही तालमेल नहीं है। तालमेल का अभाव होने के कारण ही प्रदेश का खुफिया तंत्र लगातार फेल हो रहा है। मुख्यमंत्री के खिलाफ अदालत में केस दर्ज हो जाता है लेकिन खुफिया विभाग को कानोंकान खबर नहीं लगती। हजारों की संख्या में किसान रातों-रात राजधानी पहुंच कर नाकाबंदी कर देते हैं किसी को खबर नहीं होती है। इसके अलावा कई ऐसे गंभीर मामले हैं जहां पुलिस इंटेलीजेंस फेल हो गया। नक्सल हथियार कारखाना वैसे तो मध्य प्रदेश में नक्सल मूवमेंट काफी पहले से है, लेकिन राजधानी और आसपास के इलाके इससे अछूते माने जाते हैं। लेकिन साल 2007 में आई एक खबर ने सभी को चौंका दिया था। भोपाल के बीएचईएल इलाके में नक्सलियों ने अपना कारखाना लगा रखा था। जिसमें आराम से बैठकर नक्सली मशीन गन, रॉकेट लॉन्चर, मोर्टार और ऐसे ही तमाम हथियार बना रहे थे। अब इसे आप नक्सलियों की हिम्मत ही कहेंगे कि वो मध्य प्रदेश की राजधानी में बैठकर अपने लिए खतरनाक हथियार बना रहे थे, या फिर इंटेलिजेंस की नाकामी जो महीनों तक इस बात का पता ही नहीं लगा कि राजधानी की जड़ों में नक्सलवाद अपनी जगह बना चुका है। खंडवा जेल ब्रेक भोपाल जेलब्रेक से तीन साल पहले खण्डवा में भी जेलब्रेक हुआ था। अक्टूबर 2013 में सिमी के 7 कैदी खंडवा जेल से भाग गए थे, जिसमें अबू फैजल भी शामिल था। सिमी कैदियों की इस साजिश का भंडाफोड़ करने में भी पुलिस नाकाम साबित हुई थी। ये सभी कैदी जेल की बाथरूम तोडक़र भागे थे, इससे पहले उन्होंने खासी तैयारी की थी। इस जेल में भी सुरक्षा में हुई चूक को लेकर सवाल उठाए जाते रहे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही था कि पुलिस की नाक के नीचे प्लानिंग करने वाले इन खतरनाक कैदियों के बारे में पुलिस कोई जानकारी ही नहीं जुटा पाई। भोपाल जेल ब्रेक 30-31 अक्टूबर 2016 की दरमियानी रात सिमी के 8 कैदी एक सिपाही की हत्या कर जेल से भागे। पुलिस और एटीएस तुरंत एक्टिव हो जाते हैं, जेल से कुछ किमी दूर ही आतंकियों को घेरकर पुलिस और एटीएस ने मार गिराया। इस मामले में तमाम अधिकारियों की पीठ ठोंकी गई और घटना के वीडियो जमकर वायरल हुए। लेकिन उसके बाद ये भी सामने आया कि ये सुरक्षा में चूक या आतंकियों की अचानक अंजाम दी गई वारदात नहीं थी, इसके लिए वो महीनों से तैयारी कर रहे थे। इसके लिए उन्हें बाहर से मदद मिल रही थी और वो जेल में ही अपनी प्लानिंग कर रहे थे। इसके लिए उन्होंने बकायदा दिन तय कर रखा था, सारी चीजों का ब्लूप्रिंट उनके दिमाग में था, लेकिन पुलिस को इस बारे में कोई खबर नहीं थी। सिमी जैसे आतंकी संगठन से जुड़े लोग इतनी बड़ी प्लानिंग जेल के अंदर रह कर बना लेते हैं और किसी को कोई भनक नहीं लगती। ये बात चौंकाने वाली है और सबसे ज्यादा इंटेलिजेंस के लिए कि आखिर क्यों उनका सूचना तंत्र इतना कमजोर हो गया है कि जेल जैसी महफूज जगह से भी आतंकी अपनी वारदातों को अंजाम दे पाए। आईएसआई एजेंट का नेटवर्क फरवरी 2017 में मप्र में आईएसआई एजेंट का एक नेटवर्क पकड़ाया। मध्यप्रदेश में आईएसआई एजेंट्स का एक नेटवर्क पकड़ा गया, जो कि सेना की खुफिया जानकारियां पाकिस्तान तक पहुंचाया करता था। एक दर्जन से ज्यादा लोगों में एक भाजपा कार्यकर्ता भी शामिल था। करीब 3 सालों से ये आईएसआई के लिए सूचना तंत्र बने हुए थे, लेकिन पुलिस बेखबर थी। जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय एजेंसी से इनपुट मिलने के बाद मप्र एटीएस की नींद खुली और इस नेटवर्क का भंडाफोड़ हुआ। पुलिस और एटीएस को जमकर शाबासी मिली लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये ही तीन सालों से मध्यप्रदेश में ये नेटवर्क एक्टिव था और इसके तमाम एजेंट्स राजधानी भोपाल में बैठकर काम कर रहे थे, लेकिन पुलिस और एटीएस को कोई जानकारी ही नहीं मिल पाई। जब जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय एजेंसी से इनपुट मिला तब जाकर यहां पर कार्रवाई तेज हुई और इस नेटवर्क का खुलासा हुआ। नेटवर्क का भंडाफोड तो हो गया, लेकिन ये कोई नहीं जानता कि भारतीय सेना की कितनी खुफिया जानकारियां पाकिस्तान तक पहुंच चुकी हैं। बीते एक दशक की बात करें तो मध्य प्रदेश में आतंकी नेटवर्क और आतंकी गतिविधियों में जो तेजी देखने को मिली है, वो शायद पहले कभी नहीं देखने को मिली। अभी तक मध्यप्रदेश को प्रतिबंधित संगठन सिमी का गढ़ ही माना जाता था, लेकिन अब ये आईएसआई के नेटवर्क का अड्डा और स्लीपर सेल्स की पनाहगाह भी बन चुका है। मंगलवार को ट्रेन ब्लास्ट के बाद हुए खुलासों से ये भी साफ हो गया है कि मध्य प्रदेश का नाम आईएसआईएस के खुरासान मॉड्यूल में भी शुमार है। अब, जबकि ये बात साफ है मध्य प्रदेश में आतंकवादियों का मूवमेंट बढ़ा है, तो ऐसे में इंटेलिजेंस एजेंसियों की सतर्कता बढऩी भी लाजिमी भी है और जरूरी भी। भोपाल ट्रेन ब्लास्ट के बाद इंटेलिजेंस की चौकसी के कारण ही तमाम संदिग्धों को मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश से पकड़ा जा सका है, जो कि काबिले तारीफ है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि आखिर आतंकियों की इस हरकत के बाद ही इंटेलिजेंस क्यों जागा। यही मुस्तैदी अगर पहले दिखाई जाती तो शायद आतंकियों की इतनी हिम्मत नहीं होती कि वो प्लानिंग कर एक ट्रेन में बम प्लांट कर देते। ट्रेन के यात्रियों की किस्मत अच्छी थी, कि बम पूरी तरह नहीं फटा। लेकिन भोपाल जेलब्रेक कांड में उस प्रहरी की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी, जिसका सिमी के आतंकियों ने बेरहमी से गला काटने के बाद जेलब्रेक किया था। हालांकि जेलब्रेक के कुछ ही घंटों के भीतर उन आतंकियों को मार दिया गया, लेकिन बाद की पड़ताल से ये सामने आया था कि वो कई दिनों से भागने की प्लानिंग कर रहे थे, इंटेलिजेंस को इस बारे में कोई खबर ही नहीं थी। कुल मिलाकर बड़ा सवाल ये है कि क्या मध्य प्रदेश पुलिस का इंटेलिजेंस आतंकियों की प्लानिंग से कमजोर है? ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि बीती कुछ घटनाओं में इंटेलीजेंस पूरी तरह फेल रहा है। जानकारों की मानें तो इसके पीछे प्रदेश पुलिस और इंटेलिजेंस का ध्वस्त सूचना तंत्र है, जो इस तरह की खुफिया जानकारियां जुटाने में हर बार पीछे रह जा रहा है। आतंकियों की बढ़ती गतिविधियां चिंता का विषय मध्यप्रदेश की एक सवारी गाड़ी में विस्फोट, फिर उत्तर प्रदेश के लखनऊ में मुठभेड़ और दूसरे शहरों में संदिग्ध आतंकवादियों की गिरफ्तारी निस्संदेह चिंता का विषय है। शुरुआती खबरों के मुताबिक इस घटनाक्रम में गिरफ्तार और मारे गए दहशतगर्दों के तार आईएसआईएस से जुड़े बताए गए हैं। यों उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में युवाओं पर आईएसआईएस के प्रभाव की आशंका पहले से जताई जा रही है। कुछ युवकों के दूसरे देशों में जाकर आईएसआईएस में शामिल होने की पुष्टि भी हो चुकी है। मध्यप्रदेश में ट्रेन विस्फोट के बाद इस बात के सबूत होने की खबर कि यहां आईएसआईएस से प्रेरित युवाओं का दल सक्रिय है, स्वाभाविक रूप से सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय है। बताया जा रहा है कि ये दहशतगर्द उत्तर प्रदेश में किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की योजना बना रहे थे। उनके पास से लैपटॉप में बम बनाने की विधि, आईएसआईएस का साहित्य और दहशतगर्दी से जुड़ी दूसरी सामग्री बरामद हुई है। गनीमत है कि कोई बड़ा हादसा होने से पहले ही विशेष सुरक्षा दस्ते ने उनकी योजना को नाकाम कर दिया। आतंकी संगठनों की नजर में मध्य प्रदेश की शांति खटक अगर पिछले 4 महीने की घटनाओं पर नजर डालें तो ये साफ समझा जा सकता है कि आतंकी संगठनों की नजर में मध्य प्रदेश की शांति खटक रही है। और इसीलिए वो लगातार यहां किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं या फिर अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहे हैं। बीते महीने हुई आईएसआई के लिए जासूसी करने वाले आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद ये बात भी साफ हो चुकी है कि ऐसे संगठनों की जड़ें प्रदेश में कहां तक धंसी हुई हैं। इस पूरे मामले में ये बात भी साफ नजर आती है कि आतंकी संगठनों से जुड़े लोग भले ही मध्य प्रदेश में वारदात को अंजाम न देते हों, लेकिन वे आराम करने या फरारी काटने के लिए मध्य प्रदेश को सबसे महफूज जगह मानते हैं। हर बार कोई बड़ी वारदात या कोई बड़ा लिंक इंटेलीजेंस की पकड़ में आता है और उसके पीछे के लोगों की धरपकड़ शुरू हो जाती है। -भोपाल से कुमार राजेंद्र
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