शिवराज तम्बू बाकी सब बम्बू
03-Mar-2017 09:38 AM 1235034
मप्र में भाजपा लगातार चौथी बार सरकार बनाने की कवायद में जुट गई है। इसके लिए मैदानी स्तर पर तैयारियां तो पहले से ही शुरू हो गई हैं। साथ ही अब सरकार और संगठन मिलकर मंत्रियों और विधायकों को सक्रिय करने में जुट गए हैं। लेकिन सरकार और संगठन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके मंत्रियों और विधायकों की प्रदेश ही नहीं उनके विधानसभा क्षेत्र में भी साख गिर रही है। इसलिए पार्टी ने पचमढ़ी में विधायक प्रशिक्षण वर्ग में जहां सभी को चौथी बार सरकार बनवाने के लिए सक्रिय होने का निर्देश दिया वहीं सबको आइना दिखाते हुए कहा कि अकेले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के भरोसे कब तक काम चलेगा। प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने तो बिना लाग लपेट के कह दिया कि आप लोग किसी मुगालते में न रहें, सरकार तो अकेले शिवराज के दम पर चल रही है, शिवराज तम्बू हैं, विधायकों और कार्यकर्ताओं को बम्बू बनना होगा, तभी सरकार ठीक से चल सकती है। संगठन के पास सबकी परफार्मेंस रिपोर्ट है, उसी के आधार पर टिकिट दिये जाएंगे। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के ऐसा कहने से कई बातें एक साथ उजागर हुईं। इनमें से पहली जो आखिरी भी है वह है कि हाल फिलहाल मध्य प्रदेश भाजपा में शिवराजसिंह चौहान पहले और आखिरी विकल्प हैं, इसलिए किसी और को मुंगेरीलाल सरीखे सपने देखने की जहमत नहीं उठानी चाहिए। दूसरा संदेशा यह दिया गया कि ये बातें महज बकवास और कोरी अफवाहें हैं कि आरएसएस और शिवराज के बीच कोई अनबन है। तीसरी अहम बात यह थी कि इसके बाद भी जिसे  सपने आना बंद न हों, तो उसकी नींद रिपोर्ट कार्ड नाम के चि_े के जरिये उड़ा दी जाएगी, अब जिसे जो करना हो कर ले। विधायकों के लिए यह प्रशिक्षण वर्ग चेतावनी और मुख्यमंत्री के लिए वरदान साबित हुआ, जिसमें हमेशा की तरह हीरो शिवराज  सिंह चौहान ही रहे। लाख टके के इस सवाल का जबाब किसी के पास नहीं कि आखिर क्यों भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को शिवराज की सर्वमान्यता का नवीनीकरण कराना पड़ा, वह भी धोंस धपट वाले लहजे में। दरअसल एमपी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। बहुत कुछ होने के बाद भी कुछ होता नहीं दिख रहा है, जिससे जनता त्रस्त हो चली है। सिवा शिवराज के किसी के पास कोई अधिकार नहीं है, नौकरशाही हावी हो रही है और सूबे की कानून व्यवस्था चरमराने लगी है। अगला साल चुनावी है लिहाजा भाजपा ने अपने इस गढ़ को बनाए रखने कसरत अभी से शुरू कर दी है और यह ऐलान भी कर दिया है कि भाजपाई जिम के ट्रेनर शिवराज ही रहेंगे। इधर परेशानी वे राजनैतिक विश्लेषक खड़ी कर रहे हैं जो दबी जुबान में यह मशवरा देने लगे हैं कि अगर भाजपा को प्रदेश अपने हाथ में रखना है तो सीएम बदल देना चाहिए, क्योंकि लोग शिवराज से ठीक वैसे ही ऊब चले हैं जैसे साल 2003 में दिग्विजय सिंह से ऊब गए थे। इतिहास तो नहीं पर हालात अपने आप को दोहरा रहे हैं, मसलन कर्मचारी सातवां वेतन आयोग लागू न होने से खफा हैं, उन्हे मालूम है कि सरकार यह घोषणा चुनाव के पहले कर देगी, पर यह हक वक्त पाए दे दे तो उसमें निष्ठा बनाए रखी जा सकती है। किसानों की परेशानियां जस की तस हैं और दलित वर्ग भाजपा से छिटकने लगा है और काम उतने हुये नहीं हैं जितने कि गिनाए जाते हैं। यह ठीक है कि कांग्रेस की हालत पतली है पर लोकतन्त्र में कुछ भी हो सकता है। अरविंद केजरीवाल ने सूबे पर नजरें गड़ा दी हैं और अगर कमलनाथ या ज्योतिरादित्य सिंधिया में से किसी एक ने प्रदेश कांग्रेस की कमान संभाल ली, तो बदलाव की मानसिकता में आ रहा वोटर उनसे चेटिंग शुरू न कर दे। लेकिन भाजपा शिवराज के बारे में कुछ सुनने को तैयार नहीं तो कुछ विधायकों और कई कार्यकर्ताओं को भी महसूस होने लगा है कि पार्टी में आंतरिक लोकतन्त्र नाम की व्यवस्था खत्म हो चली है। अगर शिवराज की ही पालकी ढोने मजबूर किया जा रहा है, तो दूसरे दर्जे के नेताओं से मौका छीनना इसे क्यों न कहा जाये। चुनाव के वक्त जिन कार्यकर्ताओं की तारीफ में कसीदे गढ़े जाते हैं, आज उसके कहने पर राशन कार्ड भी नहीं बन रहा, तो प्रचार के वक्त वोटर को क्या मुंह दिखाएंगे। पचमढ़ी में कुछ विधायकों ने मंत्रियों की शिकायत की तो उन पर ध्यान नहीं दिया गया उलटे नसीहत विधायकों को ही दे दी गई। ऐसे में इसी तम्बू के नीचे बम्बू बनकर खड़े रहने की मजबूरी बड़ी उठा पटक की भी वजह बन सकती है। एक पूर्व भाजपा विधायक की मानें तो पार्टी अति आत्म विश्वास का शिकार हो चली है। पचमढ़ी में किसी को मुंह खोलने की इजाजत नहीं थी, पर  कान खुले रखने सभी को निर्देश थे। हमने सुना पर हमारी कौन सुनेगा, वे अध्यक्ष महोदय जो सीएम की चाटुकारिता करते रहे, ताकि अध्यक्ष बने रहें, तो बेहतर होगा कि अध्यक्ष भी शिवराज को ही बना दिया जाये। इस नेता के मुताबिक जब बुरा वक्त आता है तो अच्छे-अच्छे तम्बू उखड़ जाते हैं। शिवराज का जरूरत से ज्यादा गुणगान और महिमामंडन यूं ही होता रहा तो उनसे चिढऩे वालों की तादाद और बढ़ेगी, इसलिए वक्त रहते पार्टी को संभल जाना चाहिए। उधर, भाजपा में असंतुष्टों की संख्या को देखते हुए कांग्रेसी भी सक्रिय हो गए हैं। अगर भाजपा ने अपनी स्थिति में सुधार नहीं किया तो 2018 आते-आते उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। अपनी पाठशाला में ये क्या पढ़ा गए शिवराज ! 2018 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए पचमढ़ी में विधायकों की ट्रेनिंग में छह बिंदुओं पर खास जोर रहा-सदन में विधायकों की भूमिका और उनके अधिकारी, मीडिया प्रबंधन, आपसी समन्वय, समय का प्रबंधन और व्यक्तित्व विकास। इस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहले तो विधायकों के लिए आचार, विचार, व्यवहार और अध्ययन पर ध्यान देने की सलाह दी, विधायकों को अध्ययन बढ़ा कर तथ्यों और तर्क के साथ अपनी बात रखने की सामथ्र्य और बढ़ानी चाहिए। ऐसा करने से हम कहीं भी अपनी बात लेकर जाएंगे तो उसे न मानने का कोई कारण किसी के पास नहीं रहेगा। इससे समाज में हमारी छवि निखरेगी और जब हमारी छवि निखरेगी तब निश्चित ही भाजपा की छवि भी और निखरेगी। फिर उन्होंने व्यावहारिक रास्तों की बात करते हुए कहा कि कमाओ लेकिन ध्यान रहे लोगों की नजर में मत चढ़ो और लगे कि कहां थे कहां पहुंच गये। शिवराज ने विधायकों से साफ तौर पर कहा -आर्थिक रूप से मजबूत तो बनो लेकिन गाड़ी, मकान, दुकान मत लो जो जनता को दिखे। पैसे कमाने के टिप्स देने को हुए तो शिवराज खुद ही किरदार भी बन गये-समझाया कि वे चाहें तो उनके जैसे भी बन सकते हैं बशर्ते उस रास्ते पर चलें जो उन्होंने खुद अपने जीवन में अपनाया। शिविर में श्रोताओं के रूप में शामिल विधायक चाहें तो इसे मुख्यमंत्री बनने का नुस्खा भी समझ सकते हैं। फिर शिवराज ने समझाया कि किस तरह खुद उन्होंने और उनके एक मंत्री ने अपना बिजनेस खड़ा किया। शिवराज ने बताया, मैंने फूलों की खेती की, वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार ने फलों की खेती की, आप लोग भी ईमानदारी से काम करें। उन्होंने कहा मैंने अपना परिवार छोड़ दिया है। मैं संयुक्त परिवार नहीं रखता वरना ये लोग फोन पर कहेंगे कि मैं सीएम हाऊस से बोल रहा हूं। जानकारों का कहना है कि शिवराज को ये बातें इसलिए कहनी पड़ी क्योंकि अवैध रेत खनन को लेकर इन दिनों वो विपक्ष के निशाने पर हैं। ताकि सरकार की फजीहत न हो इस दो दिनी प्रशिक्षण शिविर में मुख्यमंत्री सहित अन्य पदाधिकारियों ने विधायकों को नसीहतों की घुट्टी पिलाई ताकि सरकार की फजीहत न हो। मुख्यमंत्री तो इस शिविर में पूरी तैयारी के साथ आये थे। उनके पास केस स्टडी भी थी कि किस विधायक का कौन सा बयान मीडिया में सुर्खियां बना। शिवराज ने कई विधायकों का नाम लेकर उनके बयान की ओर ध्यान दिलाया और कहा कि उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि कौन सी बात कहां कहनी है। शिविर में जब बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने माइक संभाला तो कुछ ज्यादा ही सख्ती से पेश आये। बीजेपी अध्यक्ष ने सीधे-सीधे फरमान जारी किया कि विधानसभा के अंदर मुश्किल और सरकार को शर्मिंदा करने वाले सवाल तो वे हरगिज ना पूछें। ये विधायक शिविर में तो कुछ नहीं बोले लेकिन पत्रकारों से मिलते ही नाम न छापने की शर्त रखते हुए पूरी पोल खोल दी। विधायकों ने बताया कि जब भी वे भ्रष्टाचार का कोई मामला उठाते हैं, नजरअंदाज कर दिया जाता है। जब मंत्रियों से भ्रष्ट अफसरों के तबादले की सिफारिश की जाती है तो उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। फिर ऐसे में उनके पास विधानसभा में सवाल पूछने के अलावा चारा ही क्या बचता है। विधायकों की यह व्यथा इस बात का संकेत है कि भाजपा सरकार में एक वर्ग खुश है तो एक वर्ग नाखुश। यह नाखुशी पार्टी पर भारी न पड़ जाए। -श्याम सिंह सिकरवार
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