डिनर डिप्लोमेसी का दिखावा
03-Mar-2017 09:32 AM 1234983
अगर किसी व्यक्ति का दिल मजबूत होता है तो वह बड़े से बड़ा झंझावात का सामना दिलेरी से कर लेता है। इसी तरह राजनीति में यह भी देखा गया है कि देश के दिल यानी मप्र पर जिस पार्टी की राजनीतिक पकड़ मजबूत होती है वह देशभर में शासन करने की स्थिति में आ जाता है। शायद यही वजह है की प्रदेश में पिछले 13 साल से सत्ता से दूर रही कांग्रेस के एक बार फिर से मप्र पर अपनी पकड़ बनाने के लिए उतावलापन दिखा रही है। इसके लिए प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को आलाकमान ने एकता की घुंटी पिलाकर प्रदेश में सक्रिय होने का निर्देश दिया है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी की ओर से उन राज्यों में पार्टी को एकजुट करने का प्रयास शुरू हो गया है, जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं। अगले साल कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होंगे। इन चारों राज्यों में कांग्रेस एक बड़ी ताकत है। एक तरह से ये चार उन गिने चुने राज्यों में हैं, जहां क्षेत्रीय पार्टियां नहीं हैं या कमजोर हैं और कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा के साथ है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने इन चारों राज्यों में पार्टी नेताओं के एक साथ मिलने, गुटबाजी बंद करने और मिल कर पार्टी को सत्ता में लाने के लिए काम करने को कहा गया है। तभी आलाकमान के निर्देश पर प्रदेश कांग्रेस ने 22 फरवरी को विधानसभा घेराव का कार्यक्रम रखा और पार्टी के दिग्गज नेताओं कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरूण यादव, अजय सिंह को अपनी एकता दिखाने का अवसर दिया। दिग्गजों ने आलाकमान से एक कदम आगे निकलकर 21 फरवरी को पीसीसी में रात को डिनर का आयोजन कर लिया। इसमें राजधानी के करीब आधा सैकड़ा चुनिंदा पत्रकारों को भी आमंत्रित कर लिया गया। सबको उम्मीद थी की अगले दिन होने वाले बड़े प्रदर्शन से पहले दिग्गज नेता एक साथ मिल बैठकर मीडिया से चर्चा करेंगे, साथ ही यह संदेश देंगे की उनके बीच में कोई खाई नहीं है। लेकिन डिनर डिप्लोमेसी में भी नेता एक-दूसरे से कटे-कटे दिखे। आलम यह था कि नेता अपने समर्थकों से घिरे रहे। मीडियाकर्मी इस आस में थे की कब सारे नेता एक साथ उनसे रूबरू होंगे, लेकिन देखा यह गया कि सबने अपनी अलग-अलग मंडली जमा रखी थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी को एक-दूसरे से कोई सरोकार नहीं है। हालांकि कई बार नेता यह दिखाने के उपक्रम भी करते रहे कि हम सब एक है। इससे पूरी डिनर डिप्लोमेसी दिखावा साबित हुई। 22 फरवरी को विधानसभा घेराव के दौरान भी अपनी डफली अपना राग वाली स्थिति देखने को मिली। राजधानी के टीनशेड पर आयोजित कार्यक्रम में दिग्गज नेता भले ही एक मंच पर एक साथ बैठे लेकिन उनके समर्थक अलग-अलग दिखे। समर्थक अपने-अपने नेता के नारे लगाते रहे जिससे एक बार तो अप्रिय स्थिति भी निर्मित हो गई, तब सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाथ जोड़कर सबको शांत कराया। किसी मोस्ट अवेटेंड मल्टीस्टारर फिल्म की तरह कांग्रेस का बहुप्रतीक्षित शक्ति प्रदर्शन बिना व्यवधान संपन्न हुआ। अगर प्रदर्शन के बाद पीसीसी में समर्थकों के बीच चले लात घूंसे जैसी, कोई खबर ना आई हो तो इसे सफल प्रदर्शन ही कहा जाएगा। नेताओं के दिल में चाहे जो कुछ रहा हो, लेकिन मंच पर कांग्रेस नेता साथ भी दिखे और उनके हाथों में हाथ भी दिखे। पर सवाल फिर वही कि क्या नेताओं के ये हाथ और साथ की सेल्फी 2018 के विधानसभा चुनाव की गारंटी हो सकती है? क्योंकि इस शक्ति प्रदर्शन के बाद भी संशय तो बना ही हुआ है। और बना हुआ है ये सबसे बड़ा सवाल कि जिस शिवराज सिंह चौहान के नाम पर क्षत्रपो में बंटी कांग्रेस मिनटों में एक मंच पर सिमट आती है। उस शिवराज सिंह चौहान से मुकाबले के लिए कांग्रेस के पास कौन सा ट्रम्प कार्ड है? शिवराज भाजपा का वो मंतर हैं जो पिछली दो पारियों से प्रदेश में अपना असर बनाए हुए हैं और हैरानी की बात ये है कि कांग्रेस के पास इस जोरदार मंतर का अब तक कोई तोड़ नहीं है। जो दिखाई दे रहा है वो इतना कि कांग्रेस के पास फिलहाल दो चेहरे हैं। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया। इन्ही में से एक शिवराज को शिकस्त दे पाएगा, इसमें गुंजाइश है। वजह कमलनाथ अब भी हवाई बाबा हैं, और सिंधिया श्रीमंत। और शिवराज के तोड़ के लिए तो कांग्रेस का कोई जमीनी नेता ही चाहिए। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के लिए सभी नेताओं का एकजुट होकर, एक साथ आगे बढऩा जितना कठिन है। उससे कठिन है जनता के भरोसे की जमीन पर खड़ा हो पाना। इस लिहाज से देखें तो भोपाल में हुए कांग्रेस के प्रदर्शन में कार्यकर्ताओं की भीड़ के पैमाने पर मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी का अनुमान बहुत जल्दबाजी कहलाएगी। कांग्रेसी कार्यकर्ता भोपाल बड़ी तादात में आए, क्योंकि उनके आका का हुकुम हुआ था।  कांग्रेसियों को अर्से बाद ये उम्मीद भी बंधी है कि मुमकिन है कि अपने भी दिन आ जाएं। लेकिन कांग्रेस के अच्छे दिन तो उसी सूरत में आएंगे जब कांग्रेस के ये कद्दावर मध्यप्रदेश में जनता के बीच जाकर भरोसे की एक नई इबारत लिख पाएं। क्योंकि ये भरोसा ही है जो शिवराज की सबसे मजबूत ढाल है। शिवराज, जिन्हें, कांग्रेस फिलहाल अपने निशाने पर लिए बैठी है। वो शिवराज जो तमाम घोटालों से घिरे होने के बावजूद काजल की कोठरी में बेदाग निकल आते हैं इसलिए कि जनता इस भरोसे पर खड़ी है कि शिवराज पाक साफ हैं, जो घपले घोटाले हैं वो आसपास वालों की कारस्तानी है। एकजुट होकर मंच से हर कांग्रेसी, भाजपा के नाम पर केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर अपना निशाना साधता है लेकिन तीर फिर भी निशाने पर नहीं लगता। इसलिए नहीं लगता कि कांग्रेसियों के सामने ही सबसे बड़ा संघर्ष जनता के भरोसे को जीतना है। वो भरोसा जो दिग्गी राज के दस साल में पूरी तरह टूट चुका था। फिर बाद के भाजपा राज के इन तेरह सालों में कांग्रेस और जनता के बीच इस भरोसे की खाई बढ़ती चली गई। इधर खाई बढ़ी और उधर शिवराज ने बहुत खूबी से एक तरफ अपने और जनता के बीच संवाद के नए सेतू गढ़े तो दूसरी तरफ इस खाई को लगातार बढऩे दिया। कांग्रेस को अपने और जनता के बीच बढ़ गई ये खाई पहले पाटनी होगी। इतने सालों में शिवराज ने जिस पर बेहद मजबूत पुल बना लिया है। गुटों में बंटी कांग्रेस के लिए शिवराज का मुकाबला करना टेढ़ी खीर से कम नहीं है। फिर भी यह देखने लायक होगा की कांग्रेस ने जो एकता का दिखावा किया है वह क्या गुल खिलाता है। थाली में बाकी क्यों नहीं...? कांग्रेस की एकता के लिए आयोजित डिनर डिप्लोमेसी में एकता का एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसे लोगों ने बाद में मजाक बना दिया। दरअसल प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचोरी थाली में खाना खा रहे थे उसी दौरान सांसद कमलनाथ भी वहां पहुंचे और उनकी थाली में खाना खाने लगे। यह देखकर हर कोई कल्पना करने लगा कि कांग्रेस में ऐसी एकता पहले कभी नहीं देखी गई। लेकिन यह एकता नहीं बल्कि उसका प्रदर्शन था। अगर वास्तव में कांग्रेस के सारे दिग्गज एक होते तो वे भले ही एक साथ नहीं बैठे लेकिन एक साथ या फिर एक ही थाली में खाना खाकर एकता की मिसाल पेश कर सकते थे। यही नहीं इस अवसर पर कमलनाथ ने अपने क्षेत्र छिंदवाड़ा का जिक्र करते हुए बताया कि वहां ब्लॉक से लेकर जिलास्तर तक कांग्रेस किस तरह संगठित है। लेकिन वे एक छोटे से भोज में अपनी एकता नहीं दिखा सके। यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तो पिछले गेट से अपने पुत्र के साथ निकल लिए। वहीं मोहन प्रकाश अलग तो अरुण यादव अलग नजर आए। अजय सिंह के कंधे पर फिर विपक्ष की पतवार विधानसभा-2018 की कांग्रेस ने तैयारी शुरू कर दी है। मप्र विधानसभा के अंदर सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस ने दूसरी मर्तबा चुरहट विधायक अजय सिंह को पतवार थमाई है। लंबे समय से मंथन के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अजय सिंह को मप्र नेता प्रतिपक्ष की औपचारिक घोषणा की। इससे पूर्व 2013 की विधानसभा का चुनाव भी कांग्रेस अजय सिंह राहुल को नेता प्रतिपक्ष के रूप में आगे कर चुनाव लड़ी थी। लंबे समय से चल रही कवायद के बीच अंतत: प्रदेश कांग्रेस ने विधानसभा नेता प्रतिपक्ष के रूप में अजय सिंह को कमान सौंपी है। इस पद की दौड़ में बाला बच्चन, रामनिवास रावत, महेंद्रसिंह कालूखेड़ा, मुकेश नायक सहित कई नेता लामबंद थे। हालांकि पार्टी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह, कमलनाथ की सहमति से यह निर्णय हुआ है। लेकिन अजय सिंह की नियुक्ति का साइड इफेक्ट दिखने लगा है। जहां सदन में बाला बच्चन ने चुप्पी साध ली है वहीं वे अब पहले जितना सक्रिय नहीं है। लेकिन यह सभी जानते हैं कि अजय सिंह के नेताप्रतिपक्ष बनने से कांग्रेस आक्रामक हो गई है। क्योंकि पूर्व में भी नेताप्रतिपक्ष रहते हुए अजय सिंह सदन के अंदर व्यापमं घोटाला व डंपर घोटाले का मुद्दा उठाकर शिवराज सरकार को घेरा था। यह और बात रही कि कांग्रेस को चुनाव में सफलता नहीं मिली, लेकिन विंध्य क्षेत्र के रहने वाले अजय सिंह दो सीट से कांग्रेस को विंध्य में 12 सीट हथियाने में सफल रहे। इस सफलता के कारण कांग्रेस आलाकमान ने दोबारा अजय सिंह को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है। नेता प्रतिपक्ष बनाए गए अजय सिंह इस बार अलग रंग में नजर आ रहे हैं। विधानसभा में अपना पदभार ग्रहण करने के पूर्व पीसीसी में आयोजित स्वागत कार्यक्रम में उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के साथ 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने का संकल्प लिया। प्रदेश कार्यालय में यादव ने सिंह के पिता स्व. अर्जुन सिंह और उनके पिता स्व. सुभाष यादव के आत्मीय रिश्तों को याद करते हुए कहा कि आज संयोग है कि उन्हीं दो स्वर्गीय नेताओं के पुत्र आप के बीच उपस्थित हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं को विश्वास दिलाया कि वे दोनों मिलकर मिशन-2018 के तहत प्रदेश में कांग्रेस की सरकार स्थापित करेंगे। वहीं अजय सिंह ने कहा कि यादव और उनके समक्ष वर्ष 2018 को लेकर बहुत काम हैं, जिसे वे मिलजुल कर और समन्वय के साथ पूरा करेंगे। उन्होंने कहा कि 14 साल का वनवास अब खत्म होने को है, जिसे हम सभी को मिलकर राज्याभिषेकÓ के रूप में तब्दील करना होगा। उधर अजय सिंह को नेताप्रतिपक्ष की कुर्सी मिलने के बाद प्रदेशभर में कांग्रेसी सक्रिय हो गए हैं। लेकिन कयास यह लगाए जा रहे हैं कि अजय सिंह ने अरुण यादव के साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ जो शंखनाद किया है वह आगे जारी रहेगा। क्योंकि पार्टी में अरुण यादव को हटाने के लिए अलग ही अभियान चल रहा है। -भोपाल से अरविंद नारद
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