03-Mar-2017 09:23 AM
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मप्र राज्य मंत्रालय की सत्कार शाखा में अतिथियों के सत्कार के नाम पर हुए फर्जीवाड़े का हिसाब नहीं मिलने से महालेखाकार कार्यालय भी चकरघिन्नी बन गया है। आलम यह है कि उप महालेखाकार (लेखा) ग्वालियर ने सामान्य प्रशासन विभाग की सत्कार शाखा को कई पत्र भेजकर खर्च की गई राशि का ब्यौरा मांगा है, लेकिन विभाग कोई जवाब नहीं दे पा रहा है। सामान्य प्रशासन विभाग की लेटलतीफी और निष्क्रियता से महालेखाकार कार्यालय इस बहुचर्चित घोटाले का आडिट नहीं कर पा रहा है।
उल्लेखनीय है कि मंत्रालय में स्थित सत्कार शाखा द्वारा अतिथियों के सत्कार के नाम पर वर्ष 2004-05, वर्ष 2005-06, वर्ष 2006-07 में 21 करोड़ रूपए का भुगतान किया गया है। इनमें से 7,59,00,000 रूपए का हिसाब विभाग द्वारा महालेखाकार कार्यालय ग्वालियर को नहीं दिया गया है। इसको लेकर महालेखाकार कार्यालय तीन दर्जन से अधिक बार रिमाईंडर भेज चुका है लेकिन उक्त रकम की जानकारी आज तक नहीं भेजी गई है। दरअसल, सत्कार शाखा में 7,59,00,000 रूपए का हिसाब ही नहीं है। विभाग में हिसाब नहीं होने के कारण वर्तमान सत्कार अधिकारी भी असमंजश में हैं। सूत्र बताते हैं कि जैसे-तैसे हिसाब बनाकर महालेखाकार कार्यालय को भेजने के लिए उन पर ऊपर से दबाव भी आ रहा है। यही नहीं सूत्र बताते हैं की खुद महालेखाकार कार्यालय ने सलाह दे डाली है की किसी भी मद में शासकीय खर्च दिखाकर उक्त रकम का हिसाब बनाकर भेज दें। लेकिन जब पूर्व के दो राज्य शिष्टाचार अधिकारियों ने इस रकम का हिसाब नहीं भेज पाए तो वर्तमान अधिकारी भला इस ततैया के जाल में हाथ क्यों डालें।
उप महालेखाकार (लेखा) ने अपने मुख शीर्ष के मद-2 में वर्ष 2004-05 में 4,60,00,000, मद-5 में वर्ष 2005-06 में 2,74,00,000 और मद- 03 में वर्ष 2006-07 में 25,00,000 रूपए के खर्च का जिक्र किया है, लेकिन अग्रिम निकासी (एसी) पर आहरित 7,59,00,000 रूपए के अंतिम विपत्र (डीसी बिल) का कहीं अता-पता नहीं है। आखिर यह रकम गई कहां? इतनी बड़ी रकम कौन डकार गया? इस रकम की जानकारी के लिए महालेखाकार कार्यालय ग्वालियर ने दिनांक 29/12/2014 को पत्र क्रमांक-टीसी/07/डीसी बिल/डी-1585, दिनांक 29/09/2016 को पत्र क्रमांक-टीसी-1डी/41, दिनांक 01/12/2016 को पत्र क्रमांक-टीसी/ 1-43 के माध्यम से खर्च का हिसाब मांगा था, लेकिन आज तक जवाब नहीं भेजा गया। जबकि राज्य शिष्टाचार शाखा ने 7,59,00,000 रुपए का आहरण किया परंतु आहरण का हिसाब महालेखाकार कार्यालय को नहीं भेजा। इस बात को एक दशक से अधिक हो गए। जब तक लेखा हिसाब नहीं मिलेगा तब तक ऑडिट भी रुका रहेगा। सत्कार शाखा के वर्तमान अधिकारी हिसाब दें तो कैसे दें। दरअसल, इस खर्च के हिसाब की कैश बुके पहले ही चोरी हो चुकी हंै। बगैर अलमारी का ताला तोड़े चोरी हुई कैश बुक कांड का वर्ष 2006 के अक्टूबर माह में पाक्षिक अक्स ने जो मामला उजागर किया था उस समय आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा इस मामले में एफआईआर दर्ज की गयी थी। अधिकारी कैश बुक चोरी का पुख्ता प्रमाण जुटाने की बजाय इसका खात्मा लगाने की जुगत में जुट गए। लेकिन अदालत से इसे अमानत में खयानत बताते हुए ऐसा करने से मना किया। लेकिन कुछ समय बाद अधिकारियों ने फिर से खात्मे के लिए मामले को कोर्ट में भेजा और कोर्ट ने एफआर काट दी। लेकिन 7,59,00,000 रूपए की राशि का क्या हुआ इसकी चिंता किसी ने नहीं की।
ज्ञातव्य है कि इस बहुचर्चित घोटाले को लेकर विधानसभा में भी एक दर्जन से अधिक बार सवाल उठ चुके हैं, लेकिन करीब 11 साल बाद भी इतनी बड़ी राशि का फर्जीवाड़ा करने वाले का बाल भी बांका नहीं हो सका। न ही सरकार तत्कालीन राज्य शिष्टाचार अधिकारी से इस रकम के खर्च का हिसाब ले सकी। बताया जाता है कि उक्त कैश बुक चोरी कांड के मामले में कुछ आईएएस अफसरों के स्वार्थ जुड़े हुए थे इस कारण पहले ईओडब्ल्यू में मामले को कमजोर किया गया फिर उसका खात्मा करा दिया गया। लेकिन अब इस मामले में महालेखाकार कार्यालय की परेशानी बढ़ गई है। 7,59,00,000 रूपए का डीसी बिल नहीं मिलने से उसकी ऑडिट रूकी हुई है। जानकार बताते हैं कि अगर इस मामले की परतें दोबारा खुल जाए तो कई आईएएस और आईपीएस अफसरों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
जानकारी सत्कार शाखा में जाकर लो
इस मामले में वर्तमान स्थिति की जानकारी के लिए जब सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव सीमा शर्मा से बात की गई तो उनका कहना था कि मैं इस मामले में कुछ नहीं बता सकती। जो भी पूछना है सत्कार शाखा में जाकर पता करो।
-कुमार राजेंद्र