नारी शक्ति लाचार क्यों?
03-Mar-2017 09:30 AM 1234958
यह वाकई आश्चर्य की बात है कि मदर टेरेसा, कस्तूरबा गांधी और सरोजिनी नायडू के देश में बालिकाओं पर इतने अत्याचार हो रहे हैं व उनके साथ भेदभाव किया जाता है। सच तो यह है कि बालिका ही मां बनकर पूरे परिवार का लालन-पालन करती है। एक बालिका को शिक्षित करने से पूरा परिवार शिक्षित होता है और मानवीय गुणों को अपनाता है। बालिकाओं का शोषण व कन्या भ्रूण हत्या समाज की सर्वाधिक विषाक्त घृणित बुराइयों में से एक है और सच तो यह है कि 21वीं सदी के इस दौर में भी हमारा देश व दुनिया के कई अन्य देश भी इस बुराई से उबर नहीं पाए हैं, जिसका एक प्रमुख कारण अशिक्षा भी है। बेटी को आज के वैश्विक युग की आवश्यकता के अनुकूल उच्च, तकनीकी तथा आधुनिक शिक्षा दिलाकर आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमें जी-जान से कोशिश करनी चाहिए। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। फिर न कहना कुछ कर न सके। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने बालिकाओं के बारे में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी में 50 मिलियन बालिकाएं व महिलाओं की गिनती ही नहीं है। प्रत्येक वर्ष पैदा होने वाली 12 मिलियन लड़कियों में से एक मिलियन अपना पहला जन्मदिन नहीं देख पाती हैं। 4 वर्षो से कम आयु की बालिकाओं की मृत्यु दर बालकों से अधिक है। 5 से 9 वर्षो की 53 प्रतिशत बालिकाएं अनपढ़ हैं। 4 वर्षों से कम आयु की बालिकाओं में 4 में से 1 के साथ दुव्र्यवहार होता है। प्रत्येक 6वीं बालिका की मृत्यु लिंग भेद के कारण होती है। इस सबके पीछे मुख्य कारण अभिभावकों की यह गलत धारणा भी है कि लड़कों से ही उनका वंश आगे बढ़ता है। भ्रूणहत्या सिर्फ जीवन की हत्या ही नहीं है, वरन वह जीवन की भगवत्ता, गरिमा तथा तेजस्विता का भी अपमान है। मन तथा हृदय के कोमल भावों की भी हत्या है। परमात्मा ने हर जीव के जोड़े बनाकर इस धरती में भेजे हैं। इसी प्रकार स्त्री-पुरुष का जोड़ा भी है। दोनों के मिलन से ही मानव जाति का जीवन क्रम चलता है। इस जीवन क्रम को तोड़कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मत मारो। स्त्री-पुरुष का निरंतर घटता अनुपात आने वाले भयानक संकट की ओर संकेत कर रहा है। प्रत्येक व्यक्ति जो संवेदनशील है, वह भ्रूणहत्या जैसे जघन्य अपराध से विचलित हुए बिना नहीं रह सकता है। यदि पुरुष के बिना मानव जाति की प्रगति संभव नहीं है तो स्त्री के बिना भी मानव जाति का अस्तित्व नहीं बच सकता है। यदि स्त्री को मां के गर्भ में ही भ्रूण के रूप में ही मारा जाता रहेगा तो संसार में स्त्री जाति का अस्तित्व कैसे बचेगा? अत: यदि स्त्री को बचाना है तो स्त्री भ्रूण को मारे जाने से बचाना होगा। लड़का और लड़की जैसे लिंग भेद की मानसिकता को लेकर यदि इसी प्रकार स्त्री भ्रूण को मारा जाता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब मां, बेटी, बहन, पत्नी के रूप में भी स्त्री नहीं मिलेगी। स्त्री तो जननी है। स्त्री का मातृत्व ही तो वह शक्ति है जो मानव जाति को पीढिय़ों-दर-पीढिय़ां बढ़ाती जा रही है। किसी ने सही ही कहा है, मातृ शक्ति यदि नहीं बची तो बाकी यहां रहेगा कौन? प्रसव वेदना, लालन-पालन, सब दुख-दर्द सहेगा कौन? मानव हो तो दानवता को त्यागो फिर ये उत्तर दो - इस नन्हीं सी जान के दुश्मन को इंसान कहेगा कौन? आधी आबादी विश्व की रीढ़ विश्व की आधी आबादी महिलाएं विश्व की रीढ़ होती हैं। महिलाओं में भावनात्मक शक्ति तो होती ही है, वे आंतरिक तौर पर भी बहुत मजबूत होती हैं। किसी भी व्यक्ति में इन बातों का होना सबसे बड़ी मजबूती है। सारे विश्व में आज बेटियां विज्ञान, अर्थ व्यवस्था, प्रशासन, न्यायिक, मीडिया, राजनीति, अंतरिक्ष, खेल, उद्योग, प्रबंधन, कृषि, भूगर्भ विज्ञान, समाज सेवा, आध्यात्म, शिक्षा, चिकित्सा, तकनीकी, बैंकिग, सुरक्षा आदि सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों का बड़े ही बेहतर तथा योजनाबद्ध ढंग से नेतृत्व तथा निर्णय लेने की क्षमता से युक्त पदों पर असीन हैं। 21वीं सदी में सारे विश्व में नारी शक्ति के अभूतपूर्व जागरण की शुरुआत हो चुकी है। इसलिए हम यह पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि एक मां शिक्षित या अशिक्षित हो सकती है, परंतु वह एक अच्छी शिक्षक है। -ज्योत्सना अनूप यादव
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