03-Mar-2017 09:19 AM
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मप्र से टाईगर स्टेट का दर्जा छिनने के बाद एक बार फिर से यहां बाघों की संख्या तेजी से बढऩे लगी है। वनक्षेत्रों में बाघों की बढ़ती तादाद से संघर्ष की स्थिति निर्मित हो रही है इस कारण वन्यप्राणी जंगल से बाहर निकल रहे हैं। ऐसे में उनका सामना मनुष्य से होने लगा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि वन्यप्राणी आदमखोर होने लगे हैं। स्थिति ये है कि मप्र देश में दूसरा ऐसा राज्य है, जहां बाघों के हमलों से सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ऐसी सबसे ज्यादा घटना पश्चिम बंगाल में हुई हैं। ये खुलासा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की रिपोर्ट से हुआ है। बाघों के हमलों पर रिपोर्ट बताती है कि पिछले चार साल में पश्चिम बंगाल में 41 और मप्र में 17 लोगों की जान गई, जबकि महाराष्ट्र में ये आंकड़ा 14 है।
मानव-पशु संघर्ष में (बाघ को छोड़कर) चार साल में 212 लोगों की मौत हुई है। ये हमले तेंदुए, लकड़बग्घे, भालू व अन्य वन्यजीवों ने किए। हमलों में 7 हजार 774 लोग घायल हुए थे। अधिकतर हमले जंगलों से सटे गांवों में हुए जिसका शिकार ग्रामीण बने। इनमें वो हमले भी शामिल थे जो वन्यजीवों के आबादी वाले क्षेत्रों में घुसने के चलते हुए।
राज्यों में मानव-पशु संघर्ष के बढ़ते मामलों के बाद पर्यावरण, वन मंत्रालय ने मूल्याकंन रिपोर्ट भेजने को कहा है। रिपोर्ट में उन इलाकों को चिन्हित कर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा गया है, जहां मानव-पशु संघर्ष के सबसे ज्यादा मामले हुए। इसके बाद क्षेत्र विशेष से वन्यजीवों को शिफ्ट करने पर विचार हो सकता है। राजधानी के समसगढ़ में ग्रामीण घर के आंगन में घुसकर बाघ द्वारा मवेशी का शिकार खतरे की घंटी है। यह घटना बता रही है की जंगलों में इंसानी दखल ने अपनी सीमाएं लांघ दी है। राजधानी और आसपास के जंगलों में बढ़ रहे बाघों को उनका ठिकाना और भोजन चाहिए। फिर वह तेजी से सिमट रहे जंगल में मिले या फिर उसके बाहर। हालांकि जिन जंगली इलाकों में गांव वाले और अन्य लोग अपना दावा कर रहे हैं, वह बाघों और अन्य जानवरों का ही हक है।
वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार भोपाल, सीहोर और ओबेदुल्लागंज के दाहोद रेंज की 15 बीटों में ही इस समय 10 बाघ घूम रहे हैं। इस समय इनमें टेरेटरी को लेकर जद्दोजहद चल रही है। केरवा और कलियासोत के जंगलों में तीन बाघ हैं। बाघ टी-1 और टी-121 साथ में रहे हैं, जबकि टी-121 का युवा भाई बाघ टी-122 अपनी टेरेटरी और भोजन के लिए आसपास ही घूम रहा है। समसगढ़ में इसने ही मवेशी को शिकार बनाया है। एक युवा बाघ का इलाका 25 से 40 वर्ग किमी तक होता है। ऐसे में जंगलों में घुस गए कब्जेदारों और लोगों से इनकी भिड़ंत तो होगी ही। पूर्व एपीसीसीएफ पीएम लाड का कहना है कि राजधानी के कलियासोत, केरवा, चीचली, मेंडोरा सहित वीरपुर, कठौतिया और उसके आसपास के जंगलों को सरकार जितनी जल्दी रिजर्व फॉरेस्ट घोषित कर देगी। उतना ही बचत यहां की जनता को होगी।
इधर युवक को लील गया मगरमच्छ
वन्यप्राणियों की तरह जलीय जीव भी आदम खोर होते जा रहे हैं। अभी हाल ही में चंबल नदी में ट्यूब पर बैठकर मछली पकड़ रहे एक युवक को मगरमच्छ पानी में खींच ले गया। जिसका कोई पता नहीं चला। बताया जाता है कि उक्त युवक को मगरमच्छ खा गया। माकड़ौद निवासी गोपाल आदिवासी 40 वर्ष पुत्र चेतू आदिवासी शाम को गांव से कुछ दूर मौजूद चंबल नदी में मछली पकडऩे के लिए गया था। जब वह नदी में ट्यूब पर बैठकर मछली पकड़ रहा था, तभी अचानक से मगरमच्छ झपट्टा मारकर गोपाल आदिवासी को खींचकर पानी के अंदर ले गया। यह पहला मामला नहीं है ऐसी घटनाएं निरंतर सामने आ रही हैं। नदी किनारे बैठे या नदी पार करते लोगों पर मगरमच्छों के हमलें आम हो गए हैं। दरअसल नदियों में हो रहे अवैध खनन और जलीय जीवों की कमी के कारण मगरमच्छ और घडिय़ाल आदमखोर होते जा रहे हैं।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया