03-Mar-2017 08:50 AM
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दशकों से बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने का झुनझुना बजा रहे राजनीतिक दलों ने अब तक कोई भी ऐसा ठोस कदम नहीं उठाया है, जिससे यहां के लोग नगाड़े बजाकर नए राज्य का जश्न मना सकें। बुंदेलखंड राज्य के वकालत करने वाले संगठनों ने भी कोई ऐसा निर्णायक आंदोलन खड़ा नहीं किया, जिससे राजनीतिक दल अपने वादे पूरे करने को मजबूर हों। पिछले कई सालों में अलग बुंदेलखंड राज्य का मुद्दा वादों, इरादों और उम्मीदों की लहरों में गोते खा रहा है।
विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र या विजन डॉक्यूमेंट में बुंदेलखंड राज्य की वकालत नहीं की गई है। इससे अलग राज्य के हिमायती यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वह किसके साथ जाएं। भाजपा ने अपने विजन डॉक्यूमेंट में जरूर बुंदेलखंड के लिए विशेष पैकेज की बात की है, लेकिन अलग राज्य का वादा नहीं किया, जबकि उमा भारती कई मंचों से बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने का वादा कर चुकी हैं। क्षेत्र के विकास के लिए युवा बुंदेलखंड राज्य को जरूरी बताते हैं। नेता इसे भांप कर वादा तो कर देते हैं, लेकिन चुनावी परिणाम आने के बाद इसे भूल जाते हैं। फिर चुनाव नजदीक होने पर उन्हें बुंदेलखंड की याद आ जाती है।
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश दोनों राज्यों के तेरह जिलों को मिलाकर नया राज्य बुंदेलखंड बनाने की मांग लगे समय से हो रही है लेकिन इस मांग को जोरदार ढंग से उठाने वाली उमा भारती ने केंद्रीय मंत्री बनते ही नए राज्य से एमपी के प्रस्तावित जिलों के नाम हटाने का बयान देकर नई बहस छेड़ दी है। मांग ये थी कि नए बुंदेलखंड राज्य में मध्यप्रदेश से सागर, छतरपुर, पन्ना, दमोह, दतिया और टीकमगढ़ और उत्तरप्रदेश से झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, जालौन, चित्रकूट और महोबा जिले होंगे। लेकिन उमा भारती ने कहा है कि पृथक बुंदेलखंड तो बनेगा लेकिन इसमें से एमपी के जिलों के नाम हटाए जा सकते हैं।
उमा भारती के बयान के बड़े मायने है क्योंकि वो केंद्र में वजनदार मंत्री हैं लेकिन सवाल ये है कि एमपी के जिलों को हटाकर नया बुदेलखंड बनाने का विचार कैसे आया। क्या ये एमपी के उन राजनेताओं के विरोध का नतीजा है जो एमपी के बुंदलखंडी जिलों को अलग नहीं होने देना चाहते। क्या ये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की वो मंशा है जो एमपी कथित रूप से एमपी के दो फाड़ के विरोधी हैं। क्या इसमें एमपी के बुंदेलखंड के हिस्से की भावनाएं भी समाहित हैं और क्या एमपी का बुंदेलखंड का हिस्सा नए राज्य में शामिल न होने में ही इस जिलों का भला है। ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब खोजे जाने हैं हालांकि अब तक जब-जब बुंदेलखंड को लेकर लड़ाई लड़ी गई उसमें एमपी के हिस्से भी शामिल थे। यही वजह है कि राजनेता भी हवा का रूख भांप रहे हैं इसलिए सधकर जवाब दे रहे हैं। नेताओं के बयान यह साबित कर रहे हैं कि अलग बुंदेलखण्ड राज्य का झुनझुना केवल चुनावी दिनों में बजाने के लिए हैं।
पृथक राज्य के लिए तैयार नहीं बुंदेलखंड : उमा भारती
बसपा सुप्रीमो मायावती पृथक बुंदेलखंड राज्य की वकालत करती हैं तो वहीं भाजपा की नेता और केंद्रीय मंत्री उमा भारती पृथक बुंदेलखंड राज्य को बेतुका मानती हैं। उमा की दलील है कि बुंदेलखंड का जो क्षेत्र मध्य प्रदेश में आता है, वह पृथक राज्य के लिए तैयार नहीं है। उमा भारती का कहना है कि लगता है मायावती ने बेतुका ऐलान कर दिया है। बुंदेलखंड का जो क्षेत्र मध्य प्रदेश में आता है, वह पृथक राज्य के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वहां विकास की लहर पहुंची है जबकि उत्तर प्रदेश में पडऩे वाले बुंदेलखंड के हिस्से के साथ वैसी बात नहीं है। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड का उत्तर प्रदेश में पडऩे वाला हिस्सा विकास से वंचित है। केन्द्र ने जो धनराशि भेजी, उसका दुरूपयोग किया गया। केन्द्रीय मंत्री दावा करते हुए कहती हैं कि भाजपा छोटे राज्यों की हमेशा से
पक्षधर रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो सप्ताह भर में बुंदेलखंड विकास बोर्ड बनाया जाएगा।
-जबलपुर से सिद्धार्थ पाण्डे