अबकी दारी जोगी के बारीÓ
16-Feb-2017 06:58 AM 1234826
कांग्रेस से अलग होकर अजीत जोगी ने जब से  छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस को गठन किया है वे हर सभा में अबकी दारी जोगी की बारीÓ का नारा दे रहे हैं। जोगी के इस आत्म विश्वास ने कांग्रेस के साथ ही भाजपा की भी नींद उड़ा रखी है। दरअसल, जोगी के बारे में कहा जाता है कि वे राजनीति को प्रशासक की तरह चलाते हैं। अपनी शतरंजी चालों से वे माहिर राजनीतिज्ञ को भी मात दे देते हैं। शतरंज का माहिर खिलाड़ी जब अपनी पहली चाल चलता है तो वह अमूमन आगे की दस चालों के बारे में सोच चुका होता है। यही बात अजीत जोगी के बारे में भी कही जा सकती है। हर खिलाड़ी के मन में जीत का ही सपना पल रहा होता है, लेकिन वह कभी-कभी बुरी तरह हार भी जाता है। यह बात भी अजीत जोगी के बारे में कही जा सकती है। जनवरी, 1998 में मध्यप्रदेश सरकार के विमान से पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया, मध्यप्रदेश के सहकारिता मंत्री सुभाष यादव, राज्यसभा के सदस्य अजीत जोगी और मध्य प्रदेश के तत्कालीन युवा कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह राजपूत दिल्ली से रायपुर जा रहे थे। सुभाष यादव की मां का निधन हो गया था और विमान उन्हें रायपुर के बाद उनके गृहनगर खरगोन ले जाने वाला था। विमान के उड़ान भरने से पहले माधवराव सिंधिया ने कहा, हमारे साथ दो भावी मुख्यमंत्री सफर कर रहे हैं। सुभाष यादव तो जाहिर तौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे और खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। दुख की उस घड़ी में भी सुभाष यादव के चेहरे पर मुस्कान आ गई। लेकिन दूसरा मुख्यमंत्री कौन? माधवराव सिंधिया ने उलझन ताड़ ली और कहा, ये रहे दूसरे। छत्तीसगढ़ के भावी मुख्यमंत्री। तब किसी को नहीं पता था कि छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने वाला है। अभी अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से यह घोषणा होनी बाकी थी कि अगर छत्तीसगढ़ से भाजपा के सभी प्रत्याशी जीते तो छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाएंगे। लेकिन अजीत जोगी को पता था कि राज्य बनेगा और वे पहले मुख्यमंत्री होंगे। जब नवंबर, 2000 में राज्य बना तो ऐसा ही हुआ। वह अजीत जोगी के राजनीतिक उत्कर्ष का चरम था। लेकिन किसे पता था कि वह अजीत जोगी के राजनीतिक पतन की शुरुआत भी थी। शायद उन्हें भी नहीं। ऐसी किसी कल्पना की जरूरत भी नहीं थी क्योंकि तब तक अजीत जोगी प्रशासनिक अधिकारी और फिर राजनीतिज्ञ के रूप में एक लंबी पारी खेल चुके थे। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने कहा, हां, मैं सपनों का सौदागर हूं। मैं सपने बेचता हूं। इस बात में कोई शक नहीं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से छत्तीसगढ़ में विकास कार्यों की शुरुआत की। लेकिन वे अपना सपना लोगों से साझा नहीं कर सके और धीरे-धीरे उन पर लोगों का अविश्वास बढ़ता गया, एक डर मन में समाने लगा। इसी का परिणाम है कि प्रदेश में कांग्रेस पिछले 13 वर्षों से अधिक समय से बेदखल है। अब जोगी नई पार्टी के साथ नई पारी खेलने की तैयारी कर रहे हैं। आलम यह है कि उनकी पार्टी दिन पर दिन मजबूत होती जा रही है। लेकिन चंद माह पहले अस्तित्व में आई पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) में यहां अभी से दो फाड़ वाली स्थिति हो गई है। सीनियर नेताओं के साथ युवा वर्ग का एक बड़ा धड़ा जनरैल सिंह भाटिया के साथ है, जबकि दूसरा गुट युकांध्यक्ष रहे मेहुल मारू के संग है। दोनों गुट अपने मनपसंद मुद्दों को लेकर समय-समय पर आंदोलन-प्रदर्शन कर रहे हैं। दोनों एक-दूसरे को पछाडऩे में भी लगे हुए है। जोगी की पार्टी ने जिस तेजी से यहां प्रभाव बनाया था, वह अब गुटबाजी के चलते फीकी पड़ती नजर आ रही है। नेताओं के बीच खींचतान का असर कार्यकर्ताओं पर पडऩे लगा है। गुट विशेष का छाप लगने के कारण दूसरा खेमा ऐसे कार्यकर्ताओं को पूछता ही नहीं। उपेक्षा के कारण कार्यकर्ताओं में नाराजगी जैसी स्थिति बनने लगी है। ऐसे में इस नई पार्टी में अभी से बगावत दिखने लगी है। या यूं भी कह सकते हैं कि कांग्रेस का रुख छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेेस को भी लग गया है। अगर ऐसी बात है तो जोगी का अबकी दारी जोगी की बारी का सपना साकार कैसे होगा। 2018 के विधानसभा चुनाव में जो होगा सो होगा लेकिन अजित जोगी ने भाजपा और कांग्रेेस की नींद उड़ा रखी है। -रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला
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