03-Mar-2017 08:47 AM
1234848
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के कुख्यात बाहुबली पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को सीवान जेल से दिल्ली की तिहाड़ जेल शिफ्ट करने का आदेश दे दिया है। ये महज संयोग ही है कि शहाबुद्दीन ऐसे दूसरे कुख्यात राजनेता है जिन्हें बिहार की जेलों से दिल्ली के तिहाड़ जेल में शिफ्ट करने का आदेश कोर्ट ने दिया है। इससे पहले सांसद पप्पु यादव को पटना के बेउर जेल से दिल्ली के तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया गया था। वो भी सुप्रीम कोर्ट का आर्डर था और ये भी सुप्रीम कोर्ट का ही आर्डर है।
इतिहास अपने आप को दोहराता है। फर्क सिर्फ इतना है कि 2005 में जब सुप्रीम कोर्ट ने पप्पु यादव को शिफ्ट करने का आदेश दिया था उस समय बिहार में विधानसभा के चुनाव चल रहे थे। उस समय शासन तो चुनाव आयोग का था लेकिन ज्यादा प्रभाव लालू और राबडी के 15 वर्ष के शासन का था। अब बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की सरकार है। हालांकि उस समय स्पष्ट जनादेश न मिलने के कारण चुनाव आयोग को फिर से उसी साल 2005 अक्टूबर में चुनाव कराना पड़े थे, उसके बाद बिहार में नीतीश कुमार का शासन आया जो अब तक जारी है। पर 12 साल के इस अंतराल में क्या वाकई कुछ नहीं बदला। सुप्रीम कोर्ट को फिर आदेश देना पड़ा कि शहाबुद्दीन को तिहाड़ शिफ्ट किया जाए। जैसे पप्पु यादव को किया था।
2005 नवंबर में जब नीतीश कुमार की सरकार आई थी तो सबसे पहले आरजेडी के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन पर कार्रवाई हुई थी। 11 सालों तक वो सलाखों के पीछे रहा। लेकिन इसमें 10 सालों तक किसी ने शहाबुद्दीन की चर्चा तक नहीं सुनी। लेकिन बिहार में राजनीतिक परिस्थितियां बदलते ही शहाबुद्दीन की चर्चाएं शुरू हो गईं। जेल में उनके दरबार की चर्चा मुलाकातियों की चर्चा, और इस बीच में घटनाएं भी हुईं। सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या हो गई। शहाबुद्दीन को एक-एक कर सभी मामलों में जमानत मिलती गई। सरकार ने शहाबुद्दीन की जमानत याचिका रद्द कराने में वो रूचि नहीं दिखाई। जब पीडि़त परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई तब सरकार की नींद खुली। ये तमाम बातें सोचने पर मजबूर करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने चंदा बाबू और पत्रकार राजीव रंजन की पत्नी आशा रंजन की अपील पर बिहार से बाहर की जेल में शहाबुद्दीन को ट्रांसफर करने का फैसला सुनाया और बिहार सरकार से कहा कि वह उन्हें तिहाड़ भेजने का इंतजाम करे। ऐसे में एक बार 10 सितंबर, 2016 की वह तस्वीर जेहन में कौंधती है, जब शहाबुद्दीन को भागलपुर कैंप जेल जमानत पर रिहा किया गया था। वह शनिवार की सुबह थी और जेल के बाहर कई चमचमाती गाडिय़ां और झक सफेद लिबास पहने नेता बेसब्री से इंतजार कर रहे थे शहाबुद्दीन का। सैकड़ों गाडिय़ों का काफिला जुलूस की शक्ल में निकला, रास्तों के सारे टोल नाके खोल दिए गए थे। तब मीडिया से बातचीत में शहाबुद्दीन ने नीतीश कुमार को परिस्थितिजन्य मुख्यमंत्रीÓ कह दिया था।
फिर क्या था बिहार ही नहीं देशभर में नीतीश को कमजोर मुख्यमंत्री आंका जाने लगा। मुख्यमंत्री को यह नागवार गुजरी और एक बार फिर से शहाबुद्दीन सलाखों के पीछे पहुंंच गए। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उन्हें बिहार
की बजाए दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद किया गया है।
सुशासन बाबू के राज में फिर लौटा कुशासन
12 साल पहले जब नीतीश कुमार के 2005 में सत्ता संभालने के बाद बिहार में स्थितियां बदली थीं। बिहार में कानून का राज चला 93 हजार अपराधियों को स्पीडी ट्रायल करा कर जेल भेजा गया। अपराध का ग्राफ नीचे गिरा। लोग अमन चैन से रहने लगे। 2010 में फिर नीतीश कुमार भारी मतों से चुने गए, जनता ने उन पर विश्वास कर भरपूर समर्थन दिया। लेकिन इसके बावजूद इसे पुलिस की कमजोरी कहें या फिर कोर्ट का फैसला कि एक-एक कर सारे आरोपी जेल से बाहर आते गए। 2005 के शासन में जो पकड़ थी वो 2010 में ढीली पड़ती गई। इसकी वजह राजनीति कहें या फिर कुछ और, इस बीच राजनीति ने भी अपना पूरा रंग दिखाया। जनता दल यू और बीजेपी का गठबंधन टूटा। जीतनराम मांझी की सरकार बनी फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और 2015 में महागठबंधन बना जिसमें नीतीश कुमार की पार्टी के साथ-साथ लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा। जनता ने फिर नीतीश कुमार पर अपना विश्वास दिखाया और बिहार में नए युग की शुरूआत हुई। जनता आरजेडी से थोड़ी डरी थी लेकिन नीतीश कुमार ने विश्वास दिलाया कि उनके रहते कुछ नहीं होगा। महागठबंधन की सरकार बनी और उसके बाद पहिया फिर घूमकर वहीं पहुंच गया जहां 12 वर्ष पहले था।
-कुमार विनोद