18-Mar-2017 10:35 AM
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बिहार कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा प्रश्नपत्र लीक मामले में वरीय आईएएस अधिकारी और आयोग के चेयरमैन सुधीर कुमार की गिरफ्तारी के बाद राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक वीथिकाओं में भूचाल आ गया है। साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आईएएस अफसरों की दांत काटी रोटी के रिश्ते में कड़वाहट भी आ गई है। जानकारों का कहना है कि इस विवाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काम करने का तरीका बिहार के लिए मील का पत्थर साबित होगा और नीतीश को आर-पार की लड़ाई लडऩी ही होगी। दरअसल, बिहार में नौकरशाही की तरफदारी के लिए जितनी तोहमत नीतीश कुमार पर लगाई गई हैं उतनी शायद ही किसी और मुख्यमंत्री पर लगी होंगी। जब से वे मुख्यमंत्री बने हैं तभी कहा जाता रहा है कि सरकार चलाने के मामले में वे नौकरशाहों की ज्यादा सुनते हैं और राजनेताओं की कम। बिहार के हाल के घटनाक्रम को देखते हुए यह बात बड़ी मानीखेज हो उठी है। भ्रष्टाचार के आरोप में राज्य के कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष सुधीर
कुमार की गिरफ्तारी के बाद बिहार सरकार और सूबे के आईएएस एसोसिएशन के बीच तनातनी चल रही है।
पुुलिस के मुताबिक किरानी या क्लर्क के पद पर बहाली की परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक करने के मामले में सुधीर कुमार के खिलाफ ऐसे सबूत मिले हैं जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। सुधीर कुमार की गिरफ्तारी के बाद तकरीबन 50 आईएएस अधिकारी इसके विरोध में उतर आए। उन्होंने धमकी दी कि मंत्रीगण अगर मौखिक आदेश देते हैं तो हम उसे नहीं मानेंगे। बिहार सरकार के इकबाल के खिलाफ बुलंद होती विद्रोह की यह चुप्पा आवाज एक अमंगल की सूचना है और इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती और सौभाग्य कहिए कि नीतीश कुमार ने अमंगल के इस संकेत की अनदेखी नहीं की। उनकी मंशा मामले से एकदम सीधे निबटने की है। बिहार विधानसभा के अपने भाषण में नीतीश कुमार ने साफ संकेत दिए कि संवैधानिक रीति से चुनी गई सरकार की खिलाफखर्जी को बख्शा नहीं जायेगा। सूबे की विधानसभा में उन्होंने कहा कि ‘मुझे आईएएस एसोसिएशन का ज्ञापन अभी नहीं मिला है लेकिन जब मिलेगा तो मैं इसके एक-एक शब्द को पढक़र कदम उठाऊंगा जो आगे के लिए प्रशासन के मामले में मील का पत्थर साबित होगा।’
जाहिर है, मामले पर कुछ आईएएस अफसरों ने जो रवैया दिखाया उसे लेकर नीतीश कुमार के मन में नाराजगी है। आईएएस ऑफिसर अपने साथी के साथ हो रही तथाकथित ज्यादती के बारे में ज्ञापन लेकर राजभवन तक चले आए। उनका यह बर्ताव कुछ ऐसा था मानो वे आईएएस अधिकारी नहीं मजदूर-संघ वाले हों।
सवाल उठता है कि आखिर राज्य सरकार और नौकरशाहों खासकर आईएएस ऑफिसर के बीच अब तक चले आ रहे दांत काटी रोटी के रिश्ते में कड़वाहट कैसे आ गई? इस सवाल का जवाब बड़ी आसानी से मिल सकता है बशर्ते आप सूबे के जटिल सियासी समीकरण को गौर से देखें। 2005 के बाद मुख्यमंत्री बनने पर नीतीश कुमार के सामने बड़ा सवाल यह था कि जड़ता के शिकार हो चले एक सूबे को कैसे फिर से चलने-फिरने लायक बनाया जाए। लालू-राबड़ी के शासन के समय बिहार पूरी तरह नाकामी के गर्त में जा समाया था। बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश सरकार को मनचाहे अधिकार हासिल थे और उन्होंने राज्य के खोए हुए वैभव की बहाली के लिए सूबे की नौकरशाही को ताकतवर बनाया। लेकिन आज जब नौकरशाही अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर रही है तो उसे सबक सिखाने में भी वे चूके नहीं हैं। हालांकि उनका यह कदम उनकी सरकार के लिए घातक होगा कि नहीं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन सरकार और आईएएस अफसरों की दांत काटी रोटी के रिश्ते में कड़वाहट आ गई है।
मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल ही दिया
खबर है कि आईएएस एसोसिएशन सत्ता-समीकरण की डावांडोल हालत का फायदा उठाने की मंशा से ओछी राजनीति करने पर उतारु हो उठा है। नीतीश बड़े सधे हुए नेता हैं। उन्होंने तुरंत ही इस बीमारी को भांप लिया और बिना लाग-लपेट के यह संदेश सुनाया कि इस अवसर का इस्तेमाल वे अपने गवर्नेस के इतिहास में कुछ इस तरह से करेंगे कि वह आगे के वक्त के लिए मील का पत्थर साबित होगा। उधर सुधीर कुमार की गिरफ्तारी के बाद आईएएस और आईपीएस भी आमने-सामने आ गए हैं। लगता है जैसे सरकार ने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया है।
-विनोद बक्सरी