03-Mar-2017 08:39 AM
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मप्र में पन्ना की धरती हीरा उगलती है। एक अरब का कारोबार सालाना होता है। अकेले 55 करोड़ का एनएमडीसी ही करती है। 50 किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्रफल में हीरा पाया जाता है। लेकिन 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक के हीरा भंडार क्षेत्र में आठ साल खनन करने के बाद भी रियो टिंटो करीब ढाई लाख रुपए की कीमत के 27 सौ कैरेट हीरे ही निकाल पाई। कंपनी बंद करने के बाद रियो टिंटो ने हीरे जमा कर जो दरियादिली दिखाई है वह संदेह के घेरे में आ गई है।
ज्ञातव्य है की अपने हीरे के लिए विश्वभर में ख्यात पन्ना की धरती हर साल एक अरब के हीरे उगलती है। इसके बावजूद यह प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में आता है। दरअसल, यहां हीरे का सबसे अधिक अवैध धंधा होता है। इस कारण मुंबई और सूरत के व्यापारी यहां से ब्लैक में हीरे खरीदकर मालामाल हो रहे हैं। ऐसे में करीब आठ साल के प्रास्पेक्टिंग के बाद भी महज ढाई लाख रुपए की कीमत के हीरे जमा करने वाली हीरा खनन कंपनी रियो टिंटो की दरियादिली संदेह के घेरे में आ गई है।
दरअसल 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक के हीरा भंडार क्षेत्र में रियो टिंटो सरकारी अनुमति लेकर करीब आठ साल तक प्रास्पेक्टिंग के लिए बोर होल व अन्य जरियों से खुदाई करती रही है। लेकिन प्रोजेक्ट बंद करने के ऐलान के बाद हीरा कार्यालय पन्ना में उसके द्वारा करीब ढाई लाख रुपए की कीमत के 27 सौ कैरेट हीरे जमा कराए गए थे। इस पर जेल मंत्री कुसुम महदेले ने शक जताया है। बेशकीमती हीरों के गायब किए जाने के संदेह पर हामी भरते हुए कहा, इस पूरे मसले की जांच की मांग उठाएंगी। इस बारे में वे जल्द ही खनिज विभाग को पत्र लिखेंगी।
निवेश और लागत में कटौती करने का बहाना कर अगस्त 2016 में छतरपुर जिले के बंदर स्थित हीरा खनन परियोजना को बंद करने का ऐलान करने वाली रियो टिंटो कंपनी की तल्खी भी सामने आई है। मीडिया रिलीज में कंपनी ने कहा कि हमने सरकार को बंदर प्रोजेक्ट को गिफ्ट कर दिया है। इसके साथ ही वह मशीनरी भी देने को तैयार हो गई है। दरअसल, पन्ना की हीरा खदानों में सरकार से अधिक माफिया को फायदा हो रहा है। यही कारण है कि देशभर के हीरा व्यापारी खरीदारी के लिए आते हैं। कुछ की खदानें भी हैं। एनएमडीसी भी खदानें चलाती है। जितनी खदानें वैध हैं, उससे कई गुना अवैध रूप से संचालित है। वैध खदानों से निकला हुआ हीरा भी अवैध कारोबारियों को पहुंचाया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि रियो टिंटों ने भी 8 साल तक पन्ना की खदानों से अरबों का हीरा निकाला और सरकार को जमकर चूना लगाया।
हीरा कारोबार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि हीरे का अवैध कारोबार कितने का है, सर्वे नहीं हुआ है। पर, अनुमान है कि हीरों के अवैध उत्खनन और बिक्री का कारोबार 40 से 50 करोड़ रुपए का सालाना तक है। जिले में सौ से अधिक हीरा कारोबारी हैं।
मजदूरों के हिस्से में सिर्फ बदहाली
हीरों की धरती पर बेबसी पलती है। हीरे से मजदूरों के घरों में बीमारियां पनाह लेती हैं। यहां से निकली दौलत से सरकारी खजाने मालामाल हैं। व्यापारियों की तिजोरियां लबालब हैं। महाराजा छत्रसाल को मिले वरदान से पन्ना की जमीन में हीरे निकलने लगे। जिले का क्षेत्रफल 7 हजार 135 वर्ग किमी है। हजार से अधिक गांव हैं। जिसमें 12 लाख से भी अधिक आबादी निवास करती है। खदानों की संख्या लगभग 4 हजार है। जिसमें 28 हजार से अधिक हीरा मजदूर काम करते है। पहले मां-बाप और फिर होश संभालते ही बच्चे हीरे की तलाश में मिट्टी खोदने लगते हैं। हीरा निकला तो दूसरों का नहीं निकला तो मजदूरी का भरोसा नहीं। करोड़ों के हीरे निकालकर दूसरों के हवाले करने वाले अपनी बदहाली पर खून के आंसू रोते हैं। उनके हिस्से में गंभीर बीमारियां आती हैं। सिलिकोसिस, एनीमिया और कुपोषण मजदूर परिवारों का नसीब बन गया है। उनके बच्चे दूध को तरसते हैं। महिलाएं खदानों और गरीबी में पिस रही हैं। जिन पर सरकार को तरस आता है, न व्यापारियों को। उनके लिए सरकार की योजनाएं बेमानी हैं। पसीना बहाने वाले हीरा मजदूर खदान चलाने वालों की नजर में हमेशा संदिग्ध होते हैं। निगाह रखी जाती है कि, कहीं हीरा मिलने पर पार न कर दें। उनकी पहरेदारी इतनी सख्त होती है कि, तलाशी से लेकर महज संदेह के आधार पर ही मारपीट तक की जाती है। हीरा मजदूर अमानवीय यातनाएं झेलने को मजबूर हैं। उनके चेहरों में हीरे की चमक नहीं बल्कि मजदूरी, उदासी व लाचारी झलकती है।
-रजनीकांत पारे