16-Feb-2017 09:00 AM
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व्यापमं घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने सामुहिक नकल कर एमबीबीएस में दाखिला लेने वाले 634 छात्रों का दाखिला रद्द कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले से इन छात्रों का भविष्य अंधकार में पड़ गया है। क्योंकि जो पढ़ाई पूरी कर चुके हैं उनकी मेडिकल डिग्री निरस्त होगी और जो फिलहाल पढ़ाई कर रहे हैं उनका एडमिशन रद्द हो जाएगा। लेकिन इस फर्जीवाड़े के असली दोषी ये छात्र नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस फर्जीवाड़े का असली दोषी कौन है?
इतिहास के सबसे बड़े शिक्षा घोटाले की सजा सिर्फ उन छात्रों को मिलती दिख रही है जिन पर प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए अनुचित साधनों को अपनाने का आरोप था। जबकि जो लोग इस बड़े रैकेट के पीछे थे, उनमें से काफी लोग अब भी पाक-साफ बनकर मौज से घूम रहे हैं। ज्ञातव्य है कि जिन छात्रों का दाखिला रद्द का निर्देश कोर्ट ने दिया है वे 2008 से 2012 के हैं। इस दौरान सुधीर सिंह भदौरिया व्यापमं के डायरेक्टर और परीक्षा नियंत्रक (2008-2011) थे। इस दौरान जो भी फर्जीवाड़ा हुआ है उसके बराबर के दोषी भदौरिया और वे अफसर थे जो उस दौरान व्यापमं में महत्वपूर्ण पदों पर थे। लेकिन सरकार या किसी जांच एजेंसी ने आज तक भदौरिया से पूछताछ तक नहीं की है। उल्ललेखनीय है कि सुधीर सिंह भदौरिया ने अपनी बेटी मेघना भदौरिया और पूर्व सीनियर सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा ने अपनी बेटी नेहल महिंद्रा का आंसर शीट के गोले भरकर 2013 में एडमिशन सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में कराया था। मामला जांच में सामने आने के बाद कॉलेज प्रशासन ने दाखिला निरस्त कर दिया, लेकिन दोनों की पुत्रियों को गिरफ्तार नहीं किया गया। यही नहीं भदौरिया से भी पूछताछ नहीं की गई। जबकि 2012-13 में दो घोटाले सामने आने के बाद डॉ.पंकज त्रिवेदी को जेल भेज दिया गया। लेकिन भदौरिया आज राजीव गांधी कॉलेज में प्रोफेसर हैं। अगर भदौरिया इस फर्जीवाड़े के दोषी नहीं थे तो आखिर दोषी कौन था।
ज्ञातव्य है की एमबीबीएस में एडमीशन का मामला सामने आने के बाद जांच के लिए अफसरों की एक समिति बनाई थी। अफसरों की समिति ने साफ तौर पर माना था कि एमबीबीएस में दाखिला दिलाने में गड़बड़ी की गई है। शुरूआती जांच में 141 उम्मीदवार सामने आए थे और उसके बाद यह आंकड़ा लगातार बढ़ता गया। बाद में पता चला कि 2008 से 2012 के बीच 634 छात्रों के एडमीशन फर्जी तरीके से किए गए थे। समिति की जांच में इतना बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आने के बावजूद अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई। उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा विभाग के अफसरों ने अपने स्तर पर इस मामले में कार्रवाई क्यों नहीं की थी। कभी भी विभागीय स्तर पर जांच कराने की जहमत क्यों नहीं उठाई। वास्तव में 2008 से 2012 के बीच पदस्थ रहे जिम्मेदार अफसरों से पूछताछ भी होना चाहिए थी, लेकिन वह भी नहीं की गई। सरकार की गलती के कारण सुप्रीमकोर्ट ने 634 छात्रों की डिग्री पर रोक लगा दी है। उनमें से ज्यादातर छात्र एमबीबीएस कर चुके हैं। तकरीबन तीन सौ ऐसे छात्र हैं, जिनकी डिग्री अभी पूरी नहीं हुई है। ऐसे में इन छात्रों का भविष्य अंधकार में डाल दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब गेंद सीबीआई के पाले में है। सीबीआई को तय करना है कि वह फर्जी तरीके से प्रवेश लेने वाले 634 छात्रों के खिलाफ क्या कार्रवाई करती है। उधर प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पूर्व में व्यापमं) के डायरेक्टर भास्कर लक्षकार के मुताबिक ये एक सामूहिक नकल का प्रकरण है। इस मामले में विधि विभाग निर्णय करेगा कि छात्रों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाए। लक्षकार के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी मिलते ही वो सभी मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन और चिकित्सा शिक्षा विभाग को आगे की कार्रवाई के लिए पत्र लिखेंगे।
डीमेट के फर्जी छात्रों पर
कब आएगी आंच
पीएमटी में नकल करने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने 634 छात्रों के प्रवेश निरस्त कर दिए हैं, लेकिन निजी कॉलेजों में फर्जी तरीके से दाखिला लेने वाले छात्र डॉक्टर बन गए। कुछ अभी पढ़ाई कर रहे हैं। गलती पकड़ में आने के बाद प्रवेश एवं फीस विनियामक समिति (एएफआरसी) ने कॉलेजों पर सिर्फ जुर्माना लगाकर छोड़ दिया। अपील कमेटी के कहने के बाद भी इन छात्रों के प्रवेश निरस्त नहीं किए गए हैं। 2015 तक निजी मेडिकल कॉलेजों में 42 फीसदी सीटें स्टेट कोटे की होती थीं। इन सीटों पर दाखिले पीएमटी/एआईपीएमटी से होते थे। स्टेट कोटे की सीटों के लिए काउंसलिंग राज्य सरकार करती थी। निजी कॉलेजों में सीटें आवंटित होने के बाद छात्र कॉलेजों में जाकर दाखिला लेते थे। 2013 में 158 छात्रों के प्रवेश अवैध मिले। एएफआरसी ने छह प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों पर 13 करोड़ 10 लाख रुपए जुर्माना लगाया था। 2009 से 2013 के बीच 721 छात्रों के स्टेट कोटे की सीटों पर दाखिल होने की शिकायत हुई थी, लेकिन जुर्माना सिर्फ 158 सीटों पर ही लगा। उधर, एएफआरसी की अपील कमेटी के अध्यक्ष पीके दास ने इन छात्रों का दाखिला निरस्त करने के लिए भी कहा था, लेकिन कॉलेजों ने छात्रों का प्रवेश निरस्त नहीं किया। न ही प्रदेश सरकार ने इसके लिए पहल की।
-श्यामसिंह सिकरवार