16-Feb-2017 07:41 AM
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मप्र में कांग्रेस को सत्ता से दूर हुए 13 साल से अधिक का समय बीत रहा है, लेकिन पार्टी अभी तक पटरी पर नहीं आई है। पार्टी में भाजपा को परास्त करने के लिए एक होने की अपेक्षा पद पाने के लिए अधिक मशक्कत की जा रही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के निधन के बाद कांग्रेस अब तक पूर्णकालिक नेता प्रतिपक्ष का चयन नहीं कर पायी है। शीतकालीन सत्र में कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन के सहारे काम चलाने के बाद अब बजट सत्र की अधिसूचना जारी होने पर भी नेता प्रतिपक्ष के चयन में लेटलतीफी नजर आ रही है।
बजट सत्र महत्वपूर्ण होता है और कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष की जगह पूर्णकालिक नेता प्रतिपक्ष होना चाहिए, ऐसे में एक बार फिर कांग्रेसी खेमे में नेता प्रतिपक्ष पद के लिए जोर आजमाइश शुरू हो गयी है। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरुण यादव के जरिए विधायक जोड़-तोड़ में जुट गए हैं। फिलहाल आधा दर्जन दावेदार विधायक इस दौड़ में शामिल हैं और अपने गुट के नेताओं के जरिए दिल्ली परिक्रमा में जुटे हुए हैं। वर्तमान समय में नेता प्रतिपक्ष के लिए पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन, मुकेश नायक, गोविंद सिंह, रामनिवास रावत और महेंद्र सिंह कालूखेड़ा जोर आजमाइश कर रहे हैं।
आलम यह है कि नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए विधायक अपने गुटों के मुखिया के साथ दौड़ लगा रहे हैं। कांग्रेसी खेमे में चर्चा है कि नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हाईकमान एक साथ कर सकता है, लेकिन दूसरी तरफ ये भी चर्चा है कि पांच राज्यों के चुनावों के दौरान प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को हटाकर कांग्रेस कोई ऐसा संदेश नहीं देना चाहेगी, जो इन चुनावों में जातिगत या वर्ग विशेष के वोटों को प्रभावित कर सके। ऐसे में पार्टी सिर्फ नेता प्रतिपक्ष के नाम पर मुहर लगाएगी और चुनाव तक के लिए प्रदेश अध्यक्ष का फैसला टाल देगी। इन हालातों में जो गुट हाईकमान में अपनी दावेदारी मजबूती से रख पाएगा, उस गुट का विधायक नेता चुना जाएगा। हालांकि जिस तरह के आसार दिख रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि इस बार भी कांग्रेस सदन में बिना नेता प्रतिपक्ष के ही उतरेगी।
उधर नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए दावेदार नेता और उनके समर्थक दिग्गज लगातार प्रयास कर रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट से महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा और रामनिवास रावत का नाम सामने आ रहा है। महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा वरिष्ठ विधायक हैं और संसदीय मामलों में उनका अनुभव काफी अच्छा है। वहीं रामनिवास रावत अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ जनहित के मुद्दों को सदन में पुरजोर तरीके से उठाने के लिए जाने जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ गुट से मौजूदा कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन का नाम सामने आ रहा है। हालांकि कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष होते हुए बाला बच्चन मानसून सत्र में जाने-अंजाने में सिंहस्थ का मुद्दा धराशायी कराने में सत्ता पक्ष की सियासी चाल का शिकार हो चुके हैं और पार्टी के साथ अपनी भी किरकिरी करा चुके हैं।
इसके अलावा मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के खेमे से पवई विधायक मुकेश नायक का नाम आगे बढ़ा सकते हैं। पूर्व मंत्री मुकेश नायक एक अच्छे वक्ता हैं और काफी लंबा संसदीय अनुभव उनके साथ है, लेकिन उनकी पैरवी अरुण यादव के अलावा कोई दूसरा नेता करे, ऐसी उम्मीद कम है। दूसरी तरफ प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश दिग्विजय सिंह समर्थक गोविंद सिंह का नाम आगे बढ़ा रहे हैं, हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया से गोविंद सिंह की अदावत पुरानी है और सिंधिया गुट अगर अपने विधायक को नेता प्रतिपक्ष नहीं बना पाया, तो ऐसे में गोविंद सिंह को भी नहीं बनने देगा। एक नाम अजय सिंह राहुल का सामने आ रहा है, जो विवाद की स्थिति में सब गुटों को साधने के लिए कारगर साबित हो सकता है। क्योंकि अर्जुन सिंह के पुत्र होने के साथ-साथ अजय सिंह को नेता प्रतिपक्ष पद का अनुभव है और सदन में उनकी सक्रियता कई बार शिवराज सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर चुकी है। अब देखना यह है कि किसका बेड़ा पार होता है।
कोई खतरा मोल नहीं
लेना चाहती कांग्रेस
उधर खबर यह है कि कांग्रेस आलाकमान सर्वसहमति से नेता प्रतिपक्ष बनाना चाह रहा है इसके लिए सभी दिग्गिज नेताओं से सुझाव मांगे गए हैं। कांग्रेस अब नेता प्रतिपक्ष का चयन करेगी और सदन में मजबूत इरादों के साथ उतरेगी। क्योंकि नोटबंदी, कटनी हवालाकांड के अलावा कई ऐसे मुद्दे हैं, जो सरकार के लिए मुसीबत बन सकते हैं, लेकिन ये तब संभव होगा, जब विपक्ष मजबूती के साथ इन मुद्दों को सदन में उठाएगा। और यह तभी होगा जब कांग्रेस के पास दमदार नेता प्रतिपक्ष होगा।
-भोपाल से अरविंद नारद