मनसे में जगी उम्मीद
16-Feb-2017 07:29 AM 1234825
शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के बीच हाल ही गठबंधन टूटने के बाद दोनों ही पार्टियां मुंबई में अपनी राजनीतिक प्रगति देख रही हैं और स्वाभाविक है दोनों ही पार्टियां बृहन् मुंबई नगर पालिका (एमसीजीएम) चुनाव में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही हैं। शिवसेना और भाजपा तो इस गठबंधन के टूटने से खुश हैं ही लेकिन एक और व्यक्ति हैं जो इससे बहुत खुश हैं, वे हैं-राज ठाकरे! ठाकरे और उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के लिए यह गठबंधन टूटना ऐसा रहा जैसे उनकी मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई हो। गठबंधन टूटने के बाद ठाकरे ने बिना एक क्षण गंवाए अपने भाई उद्धव ठाकरे के साथ संभावित गठजोड़ करने के संकेत दे दिए। उद्धव भी इस समय मुश्किल में है क्योंकि उनके लिए निगम पर कब्जा जमाए रखना बड़ी चुनौती होगी। उद्धव ठाकरे ने भाजपा के साथ गठबंधन तोडऩे के बाद घोषणा की थी कि वे भविष्य में किसी पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे और अपने दम पर ही जीत हासिल करेंगे। लेकिन लगता है उन्हें जल्द ही इस बात का एहसास हो गया कि कहना आसान है करना मुश्किल। इसलिए गठबंधन तोड़ते ही शिवसेना ने मतदाताओं को लुभाने के लिए मराठी मानुसÓ कार्ड खेल दिया। एक ओर, जहां शिवसेना को निकाय चुनाव में अच्छे नतीजों की उम्मीद है, वहीं मनसे के लिए यह राह आसान नहीं लगती। उनकी कश्ती डूबने के कगार पर है। उनका प्रदर्शन हरेक चुनाव के साथ खराब ही होता जा रहा है। राज ठाकरे 2011 के विधानसभा चुनावों में 13 सीटें जीते थे। इससे पहले शायद ही कोई नई पार्टी पहले चुनाव में इतनी सीटें जीती हो और इस सफलता का राज यह था कि राज ठाकरे ने जनता के सामने खुद को शिवसेना के पीडि़त के रूप में पेश किया और इसी वजह से मुंबई के कई मतदाताओं ने उन्हें वोट दिया। इसी प्रकार 2012 के निकाय चुनाव में मनसे के 28 पार्षद चुन कर आए। इसके अलावा राज नासिक नगर निगम का भी चुनाव जीत गए। परन्तु अब लगता है धीरे-धीरे उनका प्रभाव कम होता जा रहा है। राज्य भर में चुंगी वसूलने के बावजूद राज ठाकरे अपनी कुर्सी के साथ न्याय नहीं कर सके। 2014 का विधानसभा चुनाव राज ठाकरे और उनकी पार्टी के लिए तगड़ा झटका साबित हुआ, जब वे केवल एक ही सीट पर चुनाव जीत पाए जबकि 2011 में वे 13 सीटें जीते थे। उसके बाद से ही राज चुनाव जीतने के लिए हर तिकड़म आजमाने में लगे हैं। यहां तक कि वे इस बारे में ज्योतिषियों से भी मिले जिन्होंने उनके पार्टी चिन्ह में कुछ त्रुटियां बताई और उसे ठीक करने का सुझाव दिया। उसके बावजूद पिछले कई सालों से मनसे के लिए कुछ भी नहीं बदला है। अब शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूटने से मनसे को आशा की किरण नजर आई है, जो एमसीजीएम चुनाव में कुछ सीटें जीत जाए, यही बहुत है, बहुमत तो दूर की बात है। जैसे ही 26 जनवरी को उद्धव ने गठबंधन तोडऩे की घोषणा की। राज ने तुरंत ही शिवसेना के साथ संभावित गठबंधन के संकेत दिए। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि वे यह गठबंधन तभी करेंगे जब उद्धव इसके लिए तैयार हों। जब उनसे पूछा गया तो दोनों ने ही ऐसी किसी भी संभावना से इनकार किया। हालांकि शिवसेना अभी मनसे के साथ किसी तरह के गठबंधन के पक्ष में दिखाई नहीं दे रही लेकिन यह जल्द ही अपना मन बदल सकती है। शिवसेना को भाजपा को हराने के लिए मराठी वोटों की जरूरत है, क्योंकि भाजपा को तो गैर मराठी वोट भी मिलेंगे। इस स्थिति में मनसे के प्रस्ताव के अनुसार अगर दोनों मिल कर चुनाव लड़ें तो वे मराठी मतों के बल पर भाजपा को हरा सकते हैं। मनसे के नेता उम्मीद पाले बैठे हैं कि कभी न कभी शिवसेना उनसे गठबंधन करने को जरूर तैयार होगी। इसकी वजह है मराठी वोट। दोनों पार्टियां मराठी वोटों के दम पर चुनाव मैदान में उतरती हैं। इस कारण मराठी वोट बंट जाता है। अगर ये एक साथ चुनाव लड़े तो भाजपा-कांग्रेस राकांपा को कड़ी चुनौती दे सकते हैं। शायद यही वजह है कि मनसे प्रमुख आस लगाए बैठे हैं कि राज ठाकरे एक न एक दिन उनका दरवाजा खटखटाएंगे। गठबंधन जरूरी क्यों? महाराष्ट्र की राजनीति में यह अजीब स्थिति है। 2014 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव की जीत से उत्साहित भाजपा इस निकाय चुनाव में 115 सीटों पर चुनाव लडऩा चाहती है। लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वोटर निकाय चुनाव में किसी पार्टी का भविष्य तय नहीं कर सकते। स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय और राज्य के मुद्दों से अलग होते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव की जीत निकाय चुनाव में भी दोहराई जा सके यह जरूरी नहीं। अगर भाजपा ने इस तथ्य पर ध्यान दिया होता तो गठबंधन नहीं टूटता। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गणेश तोर्सेकर का कहना है कि विधानसभा चुनावों के आधार पर भाजपा मुंबई में पार्टी की ताकत का गलत अंदाजा लगा दिया और वे अपने आपको मुंबई में अपराजेय मान बैठे। वे कहते हैं शिवसेना और मनसे अगर भाजपा को हराना चाहते हैं तो उनका गठबंधन अवश्यंभावी है। तोर्सेकर ने कहा, मुंबई के आम मराठियों की बात करें तो शिवसेना इस शहर की जरूरत है। यहां की जनता अपने इलाके में पुलिस थाने के बजाय शिवसेना की एक शाखा होने को प्राथमिकता देगी। जनता को शिवसेना और शिव सैनिकों पर अटूट विश्वास है। निकाय चुनावों में भ्रष्टाचार, विकास और सड़क जैसे मुद्दे गौण रह जाते हैं। मैं बचपन से ही मुंबई की खस्ताहाल सड़कें और बाढ़ के हालात देखता आया हूं और पिछले सत्तर सालों से यहां के हालात जस के तस हैं। -मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर
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