02-Feb-2017 10:16 AM
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भाजपा और शिवसेना में तलाक के बाद उम्मीद जगी थी कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने भाई और मनसे प्रमुख राज ठाकरे के साथ गठबंधन करके आगामी चुनाव लड़ेंगे। राज ठाकरे ने इसके लिए प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन शिवसेना ने अकेले ही बीएमसी चुनाव लडऩे का मन बना लिया है। वहीं, दूसरी तरफ राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस भी बीएमसी चुनाव लडऩे को तैयार है। इसके लिए राज ठाकरे ने अपने चचेरे भाई और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को गठबंधन के लिए कई बार फोन किया लेकिन उद्धव ने एक बार भी राज का फोन नहीं उठाया।
दरअसल, भाजपा से गठबंधन टूटने का राज ठाकरे फायदा उठाने की कोशिश में लगे हैं। बीएमसी चुनाव के लिए राज ठाकरे शिवसेना से गठबंधन करना चाहते हैं। बावजूद इसके उद्धव ने उनका फोन नहीं उठाया तो राज ठाकरे ने अपने खास नेता बाला नांदगांवकर को प्रस्ताव लेकर उद्धव के घर मातोश्री भेजा। एमएनएस के नेता बाला नांदगांवकर का कहना है कि मेरे सामने राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे को सात बार फोन किया। हमने एक लाइन का प्रस्ताव दिया था कि हमारी सीटें हमें चाहिए बाकी आप बड़े भाई हो हम छोटे भाई हैं, बाकी हमारी कोई शर्त नहीं है। हालांकि, शिवसेना के तेवरों से ऐसा लग रहा है कि वो फिलहाल मनसे के साथ किसी गठजोड़ के मूड में नहीं है। अब सवाल ये है कि क्या राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र की सियासत में अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। वरना राज ठाकरे को शिवसेना के सामने ऐसे हाथ फैलाने की जरूरत क्यों पड़ती।
शिव सेना भारतीय जनता पार्टी का सबसे पुराना सहयोगी दल है। लेकिन पिछले कुछ सालों से उनके बीच खटपट चल रही है। अब इसका परिणाम ये हुआ कि शिव सेना ने मुंबई और दूसरे नगर निगम चुनावों में भाजपा से नाता तोड़ लेने का फैसला किया है। शिव सेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने नगर निगम चुनावों में अकेले लडऩे का फैसला किया है। फिलहाल इस फैसले का असर राज्य और केंद्र पर नहीं होगा जहां शिव सेना भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों में शामिल है। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि दोनों दलों के बीच रिश्ते में स्थायी दरार पड़ चुकी है। ऐसा संभव है कि राज्य सरकार को आने वाले दिनों में कठिनाइयों का सामना करना पड़े।
लेकिन शिव सेना भाजपा से दूर क्यों जा रही है? इसका साधारण जवाब ये है कि अगर बड़ा भाई छोटा भाई बन जाए और छोटे भाई की भूमिका निभाने पर मजबूर हो तो उसे ये आसानी से स्वीकार नहीं होगा। महाराष्ट्र में पिछले कुछ सालों से शिव सेना के साथ ऐसा ही हो रहा है। एक समय था शिव सेना राज्य में भारतीय जनता पार्टी से कहीं बड़ा दल था। लोकसभा और विधानसभा में इसे भाजपा से अधिक सीटें मिलती थीं। इसके अलावा पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे एक कद्दावर नेता थे। राज्य में उनकी तूती बोलती थी। महाराष्ट्र में साल 1995 में जब पहली बार एक गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी तो शिव सेना भाजपा के बड़े भाई के रूप में सत्ता पर बैठी थी। उस मिली-जुली सरकार में शिव सेना की ज्यादा चलती थी। लेकिन 2014 में ये सब कुछ बदल गया। मई में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने शिव सेना से अधिक सीटें हासिल कीं। भाजपा को मोदी लहर के कारण राज्य की 48 सीटों में से 23 सीटें मिलीं जो पिछले चुनाव से 14 सीटें अधिक थीं। शिव सेना को 18 सीटों पर कामयाबी मिली।
कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों में सीटों की संख्या को लेकर तनातनी बनी रही और आखिरकार भाजपा ने अकेले चुनाव लडऩे का फैसला किया। इसके बावजूद भाजपा ने 122 सीटें हासिल कीं। इस तरह 1990 के चुनाव के बाद (कांग्रेस को इस चुनाव में 144 सीटें मिली थीं) पहली बार किसी पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 100 से अधिक सीटें हासिल कीं। इस चुनाव में शिव सेना को केवल 63 सीटें मिलीं। लेकिन अब सवाल ये पैदा होता है कि अगर शिव सेना नगर निगम चुनावों में भाजपा से नाता तोड़ सकती है तो राज्य और केंद्र में अब तक ऐसा क्यों नहीं किया? विशेषज्ञों के अनुसार ठाकरे को डर इस बात का है कि राज्य स्तर पर भागीदारी तोडऩे से दल के कुछ लोग भाजपा में शामिल हो सकते हैं। शिव सेना के अलग होने पर भाजपा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को सत्ता में भागीदार बना सकती है। इस समय शिव सेना के लिए सत्ता में रहना एक मजबूरी है।
क्या फडणवीस हटेंगे
क्या भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र से हटाने की तैयारी में है? खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबियों में शामिल देवेंद्र फडणवीस को केंद्रीय राजनीति में लाया जा सकता है। भाजपा ने उन्हें धीरे-धीरे राष्ट्रीय छवि वाले बेदाग नेता के रूप में पेश करना शुरू भी कर दिया है। डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने से जुड़ी मुख्यमंत्रियों की समिति में देवेंद्र फडणवीस को शामिल करने का फैसला भी उनके बढ़ते कद का संकेत बताया जा रहा है। उधर, फडणवीस के कुछ फैसले भी इसका इशारा कर रहे हैं कि उन्हें इस बात की भनक है।
-मुंबई से ऋतेन्द्र माथुर