शशिकला का खेल खत्म
16-Feb-2017 07:01 AM 1234798
तमिलनाडु की राजनीति लगता है इन दिनों चक्रवातों के दौर से गुजर रही है। अन्नाद्रमुक नेता जे. जयललिता के निधन के बाद से प्रदेश उठापटक के ऐसे दौर से गुजर रहा है, जहां शासन प्रणाली ठप पड़ी है। अन्नाद्रमुक गुटबाजी के ऐसे दलदल में फंस चुका है जहां से निकलना मुश्किल नजर आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पार्टी महासचिव और मुख्यमंत्री पद की दावेदार शशिकला नटराजन को जेल की सलाखों के पीछे भेजे जाने से संकट और गहरा गया है। जयललिता के निधन के बाद शशिकला यानी चिन्नम्मा की राजनीतिक उड़ान भरने के साथ ही चारों खाने चित हो गई है। फिलहाल के राजनीतिक हालात तो यही इशारा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देशवासियों का न्यायपालिका के प्रति भरोसा और मजबूत हुआ है। ट्रायल कोर्ट के जॉन माइकल कुन्हा ने जयललिता, शशिकला और अन्य को आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार दिया था। लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट के जज सी. कुमारास्वामी ने दोषियों को बरी कर दिया था। कर्नाटक सरकार की अर्जी पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला भ्रष्ट राजनेताओं के लिए सबक है कि वे कानून के हाथों बच नहीं सकते हैं। देखने में आया है कि भ्रष्ट राजनेता अकसर अल्प अवधि की सजा काटकर बाहर आ जाते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शशिकला के मामले में भारी भरकम जुर्माना भी लगाया है। ये नसीहत है कि भ्रष्ट राजनेता अपनी काली कमाई को परिवार वालों तथा अपने भविष्य के लिए बचा नहीं पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की राजनीति पर जरूर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। कभी जयललिता के विश्वासपात्र रहे ओ. पन्नीरसेल्वम को शशिकला धड़े ने अलग थलग कर दिया है। शशिकला समर्थक विधायकों की बड़ाबंदी जारी है। पन्नीरसेल्वन के लिए सबसे बड़ा फायदा और दिक्कत काफी अजीबोगरीब है। तमिलनाडु में आज की तारीख में यदि हम जमीनी हकीकत देखें तो पाएंगे कि आम जनता या दूसरे शब्दों में कहें कि अन्नाद्रमुक का अधिकांश काडर पन्नीरसेल्वम के साथ है लेकिन विधायकों का उन्हें पर्याप्त संख्या में साथ नहीं है। इसे हम राजनीतिक विरोधाभास ही कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होने की कवायद में जुटे पन्नीरसेल्वम को आज विधायकों का साथ चाहिए न कि वोटरों का। उधर, विधायकों का मानना है कि उन्हें मई, 2016 के विधानसभा चुनाव में शशिकला एंड कंपनी के कारण टिकट मिला था और अम्मा यानी जयललिता के करिश्मे के कारण उन्हें जीत मिली थी। इसलिए वे शशिकला खेमे के साथ बने हुए हैं। शशिकला खेमे ने ई. पलनिसामी को विधायक दल का नेता चुनकर मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया है। भारतीय राजनीतिक इतिहास में ये अपनी तरह का अनूठा मामला बनकर सामने आया है। माना जा रहा है कि फैसले के बाद अन्नाद्रमुक पर भ्रष्ट होने का ठप्पा लग जाएगा, लेकिन मैं इससे पूरी तरह से सहमत नहीं हूं। यदि हम देखें तो तांसी घोटाले के बाद वर्ष 2011 में जयललिता ने चुनाव जीता था। कोडाइकनाल होटल मामले में आरोपों के बावजूद जयललिता ने चुनाव में जीत हासिल की थी। लेकिन हां, शशिकला खेमे को खासा आघात सहना पड़ेगा। शशिकला को जनाधार प्राप्त नहीं है। शशिकला कुनबे के साथ अपनी नजदीकियों के कारण जयललिता को वर्ष 1996 के चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा था। यहां तक कि जयललिता अपनी बरगूर सीट भी हार गईं थीं। राजनीतिक रूप से देखें तो हाल के राजनीतिक घटनाक्रम से द्रमुक को खासा फायदा मिला है। लेकिन अन्नाद्रमुक शेष अवधि के दौरान यदि राजनीतिक स्थिरता प्राप्त कर लेती है तो फिर द्रमुक के पास से ये फायदा निकल जाएगा। कांग्रेस तो फिलहाल दर्शक की भूमिका में ही है और आगे भी रहेगी। भाजपा के पास भी इस राज्य में फिलहाल आशा जगाने के लिए कुछ खास नहीं है। अब आइए, जानें कि शशिकला के पास अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने के लिए क्या विकल्प हैं- पहला, वे सुप्रीम कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका लगा सकती हैं। लेकिन अभिसमयों के अनुसार याचिका फैसला सुनाने वाली बेंच के समक्ष ही लगाई जा सकती है, लेकिन जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष जल्द ही रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में उन्हें जल्द याचिका लगाने और सुनवाई का इंतजार करना होगा। दूसरा-शशिकला खुद को राजनीतिक रूप से शहीद बताने के जतन कर सकती हैं। इससे उन्हें भविष्य में राजनीतिक फायदा मिल सकता है। बहरहाल, तमिलनाडु की राजनीतिक उठापटक का समाधान अब विधानसभा से ही तय होगा। लेकिन एक तो तय है कि राजनीतिक महत्वकांक्षा व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है और शशिकला के साथ ऐसा ही कुछ हुआ है। पन्नीरसेल्वन के पीछे कौन? दो के झगड़े में तीसरा फायदा उठाता है इसका प्रभाव इन दिनों तमिलनाडु में देखने को मिल रहा है। तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के दो नेताओं की आपसी टक्कर का फायदा कोई तीसरा उठाने की जुगत में लगा हुआ है। यह तीसरा कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो नहीं हैं। यह सवाल देश की राजनीतिक वीथिका में गूंज रहा है। दरअसल जयललिता के निधन के बाद जिस तरह प्रधानमंत्री ने पन्नीरसेल्वन के साथ सहानुभूति दिखाई और बाद में पन्नरीसेल्वन उनसे मिलने दिल्ली गए उससे यह कयास लगाए जाने लगे थे कि कहीं भाजपा तमिलनाडु में अपनी जड़े जमाने के लिए पन्नीरसेल्वन को मोहरा न बना दे। आज तमिलनाडु की राजनीति में यह दृश्य नजर आ रहा है। -इन्द्र कुमार
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